बहुत समय पहले की बात है। दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में एक प्रसिद्ध संत रहते थे। संयोगवश एक बार उनके पास राजा का एक सैनिक आया और उनसे पूछने लगा क्रआचार्य! सारी दुनिया में स्वर्ग और नर्क की चर्चा होती रहती है, क्या ये होते भी हैं या नहीं?’
आचार्य ने ध्यानपूर्वक उसको ऊपर से नीचे तक देखा और पूछा, ”तुम काम क्या करते हो?”
उसने उत्तर दिया – ”जी, मैं राजा का सैनिक हूँ और देश की रक्षा करता हूँ।” आचार्य ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, ‘क्या कहा तुमने, तुम सैनिक हो? लेकिन शक्ल से तो तुम कोई भिखमंगे दिखाई देते हो! तुम्हें जिस किसी ने भी भर्ती किया हो, वह अवश्य ही कोई महामूर्ख होगा।’ इतना सुनना था कि सैनिक आग बबूला हो गया और उसका हाथ कमर पर बाँधी हुई बन्दूक की ओर गया। यह सब देखकर आचार्य बोले, ‘अरे! तुम्हारे पास तो बन्दूक भी है। लेकिन चलाओगे कैसे! तुम्हें चलानी भी आती है क्या?
इन शब्दों ने उसकी क्रोध रूपी अग्नि में घी का काम किया। और उसने तुरन्त बन्दूक आचार्य की छाती पर तान दी। तभी आचार्य बोले, ‘लो नरक के दरवाजे खुल गए!’
आचार्य के ये शब्द उसके कानों तक पहुँचे भी न थे कि उसने अनुभव किया कि छाती पर बन्दूक तानी देखकर भी यह आचार्य बिल्कुल शान्त और निर्भय बैठा है। उनका यह आत्मसंयम देखकर वह बड़ा विचलित हो गया। देखते ही देखते उसकी क्रोधाग्नि बिल्कुल शांत हो गई और उसने अपनी बन्दूक वापस कमर में टाँग ली। आचार्य ने यह सब देखा और बोले, ‘लो, अब स्वर्ग के द्वार खुल गए!’



