भारी होने का कारण देह अभिमान

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आज के दौर में मानसिक समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। हर घर में एक न एक मनुष्य मानसिक रोग से ग्रस्त है। इसके मुख्य कारण हैं एक तो पाप का खाता अधिक होना और दूसरा देह अभिमान का होना। वर्तमान समय में छोटे-छोटे बच्चे भी मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं क्यों? क्योंकि उनको अपने मित्रों से, बड़े भाई-बहन से, मात-पिता से मान नहीं मिलता। ये कहावत पहले लागू होती थी कि क्रछोटों को प्यार दो और बड़ों को सम्मानञ्ज परन्तु अब समय के साथ-साथ हमें अपनी कहावत भी बदल लेनी चाहिए क्योंकि आज एक छोटा बच्चा भी सम्मान चाहता है। ये तो बात रही बच्चों की परन्तु आज कल तो हर उम्र का व्यक्ति मानसिक रोगों से ग्रस्त है। क्या कारण है इसका? इसका कारण है हमारा देह अभिमान। हाँ, यही वास्तविकता है। इस वास्तविकता को जितना शीघ्र हम स्वीकार कर लेंगे उतना ही शीघ्र हम अपने मानसिक रोगों से मुक्त हो जायेंगे। हमारा ही देह अभिमान हमें भारी करता है, यही हमें उड़ती कला का अनुभवी नहीं बनने देता है। देह अभिमान माना मुझ देहधारी का अभी-अभी मान। देह अभिमान माना इस देह का अभिमान अर्थात् मैं गोरा, अमीर, सुन्दर, लम्बा। देह अभिमान में आत्मा सिर्फ लेने ही लेने की भावना रखती है जैसे कोई मुझे प्यार दे, सम्मान दे, इज्जत दे परन्तु देही अभिमानी आत्मा सदैव बाप समान देने की इच्छा रखती है,चाहे फिर बात सहयोग की हो, सम्मान की हो, या फिर प्यार की। देह अभिमान ही हमारे सारे दु:खों की जड़ है। किसी ने प्यार से बात नहीं की, ऊँची आवाज़ में बात की, हमारी बात को तवज्जो नहीं दिया, हमारी प्रशंसा नहीं की, यही सब बातें हमें भारी करती हैं। आधे से ज्य़ादा मानसिक रोगों का कारण है ज्य़ादा सोचना व अपने अतीत का बारम्बार चिंतन करना।
प्यारे भाईयों, बहनों जो बीत चुका उसका क्या बार-बार चिंतन करना, किसी ने इज्जत नहीं भी दी तो क्या उसमें इतना सोचना और सोचकर समय गंवाना। देखो बाबा तो रोज़ हमें कितना प्यार व सम्मान देते हैं तो क्या अभी भी किसी देहधारी के प्यार की आवश्यकता है? बाबा की मुरली ही मीठे बच्चे से शुरु होती है व अंत भी मीठे बच्चे से होता है, इसके अतिरिक्त बाबा कितने टाइटल हम बच्चों को प्रतिदिन देते हैं जैसे तुम मेरे लायक बच्चे हो, राज्याधिकारी बच्चे हो, विश्व कल्याणकारी बच्चे हो, शिव शक्ति हो, नयनों के नूर हो, दिलतख्तनशीन बच्चे हो, अब और क्या चाहिए! जिसके गुणगान स्वयं भगवान करता हो तो क्या उसे अभी भी किसी देहधारी से प्रशंसा सुनने की इच्छा बाकी है? सोचो स्वयं भगवान ने ये टाइटल हमें दिए हैं, स्वयं भगवान बोल रहे हैं, तुम मेरे दिलतख्तनशीन बच्चे हो, नयनों के नूर हो, लायक बच्चे हो, राजा बच्चे हो तो फिर यदि कोई देहधारी बोल भी दे कि तुम नालायक हो तो क्या ही फर्क पड़ता है! भगवान हमारे भाग्य के गीत गाते हैं तो क्या हमें अपने भाग्य का नशा नहीं होना चाहिए? अब बहुत सारे ब्राह्मण बच्चे बोल देते हैं भगवान के ज्ञान के लिए कि हमारी बुद्धि इतनी विशाल नहीं है, शक्तिशाली नहीं है और समय नहीं है रोज़ 4 पेज की मुरली सुनने का, परन्तु मनुष्यात्माओं की बातों का चिंतन करने के लिए तो हमारी बुद्धि भी विशाल है, शक्तिशाली है, व समय भी है हमारे पास। मनुष्यात्माओं की बातें तो हमें ना जाने कितने वर्षों से याद हैं, और बाबा के महावाक्य हमें सेंटर से निकलते ही भूल जाते हैं और तो और कई बार तो हम महावाक्य सुनते-सुनते ही भूल जाते हैं। इसका मतलब सिर्फ यही है कि हमारे लिए कुछ खास मायने नहीं रखते बाबा के महावाक्य, हमारे लिए कोई महत्व नहीं है बाबा की मुरली का। कहते हैं ना जिससे हमें प्यार होता है फिर उनकी बातें भी हमें प्यारी लगती हैं, जिनका हम सम्मान करते हैं तो उनकी बातों का भी हम मान रखते हैं। यही इस ज्ञान मार्ग में है अगर हमें बाबा की बातें याद नहीं रहती इसका मतलब हमें बाबा से प्यार नहीं है, अभी भी हमारा प्यार सिर्फ देहधारियों से है तभी उनकी सालों पुरानी सभी बातें मुँह जुबानी हमें याद हैं। ये सब भी इसलिए हैं क्योंकि हम देहभान में हैं।
मीठी-प्यारी आत्माओं अब परचिंतन छोड़, अतीत को छोड़ प्रभु चिंतन में लग जाओ, जैसे-जैसे हम बाबा के करीब आते जायेंगे, हम आत्माभिमानी बनते जायेंगे। इस देह के भान में सिवाय दु:ख के और कुछ है नहीं। आत्माभिमानी बनने से दु:ख की लहर आ नहीं सकती और आत्माभिमानी हम बाबा की मुरली व बाबा की याद से ही बन सकते हैं, इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। बाबा ने कहा है कि तुम बच्चे मास्टर दाता हो और दाता हम कब बनेंगे? जब हम आत्माभिमानी बनेंगे क्योंकि आत्माभिमानी बनने के बाद हमारा भिखारी स्वरूप समाप्त हो जाता है और जब हम लेवता नहीं हैं, तो देवता(देने वाले) हो गए ना! इसलिए अब और किसी से प्यार, इज्जत, सहयोग, सम्मान आदि लेने की इच्छा छोड़ बस एक प्यारे पिता परमात्मा को याद करो और उनकी याद से ही आप ये सब सहज व स्वत: ही प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि सभी आत्माएं स्वयं ही खाली हैं वे आपको कैसे कुछ दे सकती हैं? वह आपसे उम्मीद करती हैं और आप उनसे। ये तो कुछ ऐसा हो गया जैसे खाली सागर से गागर भरना। पहले कभी खाली सागर से गागर किसी को भरते देखा है क्या जो अब आप उम्मीद लगाए बैठे हो। आप ये सदैव याद रखिएगा कि सिर्फ बाबा की याद ही हमें मजबूती और खुशियां प्रदान करती हैं।

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