दूसरों तक सकारात्मक ऊर्जा ही पहुंचाएं…

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माता-पिता बच्चों के अच्छे के लिए ही उनको कुछ बोलते हैं, लेकिन उनका जवाब सुनकर हम कहते हैं कैसे हो गए हैं आजकल के बच्चे, हम तो अपने मम्मी-पापा के साथ कभी ऐसा नहीं बोलते थे। हमारे बच्चे क्यों हमें उल्टा जवाब दे रहे हैं निगेटिव तरीके से? हम जो उनको राय दे रहे हैं वो अच्छी है। लेकिन हमारी मन की स्थिति की जो एनर्जी है, वो डिस्टर्ब है। हमारे शब्दों से पहले हमारे मन की स्थिति की एनर्जी जाती है वहाँ पर। किसी के साथ एक्सपेरिमेंट करके देखना। आप एक हफ्ते से उनके बारे में सोच रहे हो ये ऐसा क्यों करता है, ऐसा क्यों बोलता है, इसको ऐसे नहीं करना चाहिए। हम बोल कुछ नहीं रहे हैं सिर्फ सोच रहे हैं उनके बारे में। फिर आप कहो कि आज तो मैं बोल ही देता हूँ उनको जाके। तो हम बड़े प्यार से अपने आपको तैयार करके एक लाइन में उनको बोलते हैं, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन जैसे ही उनको हम वो लाइन बोलते हैं, वहाँ से बहुत सारी लाइनें आ जाती हैं। फिर हम उनको कहते हैं मैं एक लाइन बोला वो भी इतने प्यार से, आपने रिटर्न में इतना कुछ सुना दिया। वो जो रिटर्न में सुना रहे होते हैं वो सिर्फ एक लाइन के लिए नहीं सुना रहे होते हैं। वो एक हफ्ते से जो हम उनको लाइनें मन में भेज रहे होते हैं, उसका रिटर्न वो हमें सुना रहे होते हैं। क्योंकि हमारी मन की सारी लाइनें उन तक पहुंच रही होती हैं।
जब हम ज्य़ादा सोचते हैं तो हमारे रिश्ते मजबूत नहीं रहते। क्योंकि हमारी सारी डिस्टर्ब एनर्जी दूसरों तक पहुंच रही है। पॉवर ऑफ माइंड। उनको एक अच्छी-सी थॉट भेजो कि आप बहुत प्यारे हो, आपके अंदर इतनी विशेषताएं हैं, मुझे ऐसा लगता है कि ये बात करना आपके लिए लाभकारी है। ये आत्मा की गहराई से भेजो। रोज़ भेजो, सारा दिन उनको कुछ बोलो नहीं। रिश्ता धीरे-धीरे स्ट्रॉन्ग होता जाएगा। आप वो रोज़ बीज डालते जाएंगे थॉट्स में। धीरे-धीरे सामने वाले के अंदर उस बात को धारण करने की और फिर उस शिक्षा को अपने जीवन में लाने की ताकत आ जाएगी। ये करते-करते सबसे पहले हमारा मन धीरे-धीरे शांत हो जाएगा।
बच्चे पढ़ते नहीं हैं। एक मंत्र के जैसा बन जाता है घर के अंदर, रोज़ उच्चारण होता है। जो आता है उसको भी सुनाते हैं मेरे बच्चे पढ़ते नहीं हैं। घर के अंदर बहुत भारी एनर्जी क्रिएट हो जाती है कि बच्चे पढ़ते नहीं हैं। वो सारी वायब्रेशन मन की स्थिति पर आती है। वो बैठते हैं पढऩे के लिए, पांच मिनट कोशिश करते हैं, फिर उनको सारी एनर्जी मिलती है। बच्चे पढ़ते नहीं हैं। किताब बंद करते हैं और कहते हैं मैं जा रहा हूँ मेरा पढऩे का मन नहीं है।
अब इसका अपोजिट करो। आप चाहते हैं कि वो एकाग्र होकर, एकरस होकर प्यार से पढ़ें तो उसके लिए कौन-सी सोच डालेंगे उस कमरे के अंदर ताकि वो वायब्रेशन उनकी मन की स्थिति पर असर करे? ये सिम्पल साइंस है। हम सबने यह अनुभव किया है। जब हम मंदिर जाते हैं तो वहां भगवान को याद करना सहज लगता है। घर में मन इधर-उधर भटकता है। ऐसा क्यों? क्योंकि मंदिर में सभी आकर जो बैठते हैं। वो वही थॉट क्रिएट करते हैं। सभी परमात्मा को याद करते हैं।

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