गृहस्थ जीवन सुखमय कैसे हो…!!!

0
147

बातें बहुत छोटी हैं लेकिन हमारा स्नेह का नाता बहुत बड़ा है। इगो एक बहुत बड़ी बुराई है। संबंधों का रस जीवन सुखी बनाने वाला है, अपने इगो को डाउन करें।

हमारा जीवन बहुत मूल्यवान है। एक-एक संकल्प का जीवन में परम महत्त्व है। जो हमारे सुन्दर जीवन, हमारी सुन्दर पर्सनैलिटी का निर्माण करते हैं। हमें याद रखना है जो संकल्प हम लगातार कर रहे हैं उनसे एनर्जी पैदा होती है, निगेटिव से निगेटिव, पॉजि़टिव से पॉजि़टिव। और जो बहुत बेकार का सोचते हैं उनसे तो बिल्कुल नष्ट करने वाली, तमोप्रधान एनर्जी पैदा होती है, एकदम काली। ये सब जीवन को, ब्रेन को नष्ट करते हैं। मनुष्य को डिप्रेशन की ओर ले चल रहे हैं आज-कल। हमारे चारों ओर का वातावरण वैसा ही बन जाता है। इसलिए अपने संकल्पों को शुद्ध करने का, उन्हें महान बनाने का एक शुद्ध संकल्प कर लें। जीवन महान बन जायेगा। सफलता लक्ष्मी द्वार पर खड़ी रहेगी। आनंद ही आनंद होगा। आज हम चर्चा कर रहे हैं आजकल संबंधों में पति-पत्नी के बीच में सच्चा प्यार कम होता जा रहा है। लोगों ने प्यार और वासना को मिला दिया था, प्यार माना वासनायें, नहीं। एक व्यक्ति बहुत वासनाओं में डूबा रहता है लेकिन प्यार बिल्कुल नहीं रहता है। प्यार एक पवित्र चीज़ है। प्यार आत्मा की एक मूल क्वालिटी है, और वासनायें तो देह अभिमान है। पतन के गर्त की ओर ले जाने वाली एक बहुत बुरी बीमारी है।
पति-पत्नी का ये नाता बहुत शुद्ध, दोनों एक-दूसरे के गुड फ्रेंड, जीवन साथी, ऐसा कहेंगे जीवन की गाड़ी के दो पहिये। एक पहिया बिल्कुल कमज़ोर या टूटा हुआ, दूसरा पहिया तेज-तर्रार, इगो के कारण कोई भी झुकने को तैयार नहीं रहता। व्यर्थ संकल्पों की बाढ़ आई रहती है। सारा दिन बुरा-बुरा सोचते रहते हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने का सोचते रहते हैं, बात-बात में एक-दूसरे का अपमान करते रहते हैं। एक-दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचाते रहते हैं। कभी पैसे को लेकर झगड़ा, कभी निर्णय को लेकर झगड़ा, पति चाहता है ये काम करूँ, पत्नी कहती है बिल्कुल नहीं। धन भी कहीं न कहीं इस व्यर्थ का, इस टकराव का एक महत्त्वपूर्ण कारण बन गया है।
जब मनुष्य एक-दूसरे की भावनाओं को सम्मान न देता हो, जब वो एक-दूसरे के विचारों पर विचार न करता हो तब संघर्ष चलता है और घर ही युद्ध का मैदान बन जाता है। मैं सभी स्त्री-पुरुषों को कहूँगा कि आपके हर संकल्प का इफेक्ट आपकी संतति पर हो रहा है। चारों ओर वातावरण में हो रहा है। आप ये भोजन बना रही हैं, खिला रही हैं उस पर हो रहा है। इसलिए अपने को सम्भालेंगे। बातें बहुत छोटी हैं लेकिन हमारा स्नेह का नाता बहुत बड़ा है। इगो एक बहुत बड़ी बुराई है। संबंधों का रस जीवन सुखी बनाने वाला है, अपने इगो को डाउन करें। दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं रहता। तो एक निगेटिविटी घर में बनी ही रहती है, लेकिन पहले तो मैं सभी को भारतीय परम्परा की याद दिलाऊं। मात्र शक्ति को अपनी विशेषताओं को जानना चाहिए। मात्र शक्ति सहनशील होती है, महान होती है, अपेक्षाकृत, अधिकृत, नम्रचित्त होती है। पर हमारी एजुकेशन ने दो चीज़ें बहुत बढ़ा दी हैं। नारी शक्ति में धन की लालसा और इगो,यानी अहम। जबकि शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य को नम्रचित्त, विनयी होना चाहिए। विनयी उसके जीवन की सुन्दरता होनी चाहिए। ये इगो टकराता है तो मुश्किलात हो जाती है, और सीधा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, चाहे आप छुपकर भी लड़ते हों। बच्चे स्कूल गये हैं तब आपकी लड़ाई हो रही है तो भी वायब्रेशन का इफेक्ट बच्चे पर पड़ेगा और जहाँ वो बैठे होंगे या स्कूल में पढ़ रहे होंगे तो आपकी यहाँ घर में लड़ाई हो गई वहाँ आपके बच्चों का मन उदास हो जायेगा।
इसलिए दो बुद्धिमानों में एक को तो समझदार होना ही पड़ेगा। होना तो चाहिए दोनों को। और अगर मात्र शक्ति समझदार हो, है, होती है अनेकानेक केसेज में मातायें खुद कहती हैं कि हमें अपने घर को तोडऩा नहीं है, हमें अपने घर का वातावरण भारी, निगेटिविटी से भरा हुआ नहीं बनाना है। मैं सबकुछ करूँगी। एक रहस्य ये भी जान लें सभी। यदि बहनें अपने इगो को डाउन करेंगी तो पुरुष का भी इगो डाउन होगा। लेकिन सदैव चुप रहना कल्याणकारी नहीं होता है। दूसरा व्यक्ति बहुत कुछ बोल रहा है, थोड़ा जब वो शांत हो जाये एक-दो अच्छी बात सुना दो, उनके ही उत्तर में। तुरंत अगर प्रतिउत्तर चालू कर दिया तो झगड़ा होगा, इगो बढ़ जायेगा, टकराव बढ़ जायेगा। इसलिए समझदार को झुक कर चलना है और याद रखेंगे भगवान के महावाक्य,जो झुककर चलता है वो ही तो महान है, जो झुककर चलता है वो ही ऊपर उठा सकता है। आपको अपने बच्चे को गोद में लेना है तो झुकना तो पड़ेगा ही ना! या बिना झुके ही गोद में उठा लेंगी! झुकना सीखें, विचार सुन्दर रहेंगे।
विचारों का टकराव सचमुच जीवन को क्या कहूँ, दुर्गति में ले जा रहा है। कोई बहन कह रही थी कि मेरा पति तो मेरा गला पकड़ लेता है और दबाने को तैयार हो जाता है। फिर उसे रियलाइज़ होता है कि मैं ये क्या कर रहा हूँ,अगर मैंने गला दबा दिया तो फिर क्या होगा! पुलिस, जेल, बदनामी, जीवन नष्ट, भ्रष्ट, बच्चे बिखर जायेंगे। फिर दो-चार दिन के बाद वही गुस्सा फिर से आता है, फिर वही करता है। इसलिए दोनों,मैं कोई मात्र शक्ति का फेवर नहीं ले रहा हूँ, कहीं-कहीं मातायें भी बहुत तेज-तर्रार होती हैं। दोनों आपस में प्यार को बढ़ायें, अंडरस्टैंडिंग को बढ़ायें, और अगर एक चीज़ आप कर लें अच्छा मूड हो ना तो शांत में बैठकर विचार-विमर्श करें। अपने जीवन को कैसे चलाना है, मुझे क्या छोडऩा है, तुम्हें क्या छोडऩा है। हरेक व्यक्ति अपने को चेंज करने का संकल्प करें। तो आपके संकल्प भी सुन्दर होंगे, आपके परिवार का माहौल भी बहुत अच्छा होगा। आपके बच्चों की पालना बहुत अच्छी कर सकेंगे नहीं तो उलझनों में क्या पालना होगी, क्या प्यार दिया जायेगा उनको। और आपका जीवन मन्दिर, परिवार मन्दिर बन जायेगा। मेरी शुभ भावनायें हैं गृहस्थ में रहने वाले सभी भाई-बहनें बहुत सुखी हो जायें। एक-दूसरे को समझकर बिल्कुल दो नहीं एक होकर आगे चलें। और अपने-अपने घरों को स्वर्ग जैसा महान तीर्थ बनायें।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें