बाबा खज़ाना देवे और हम न लेवें तो उसे क्या कहेंगे…

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हम सबके अन्दर बाप समान बन एक साथ बहुतों को धक से सुख देने की इच्छा है। बाबा भी कहते हाँ बच्चे दे सकते हो। अनादि और आदि दोनों बाप इक्_े होकर बिछड़ी आत्माओं को प्यार से अपना बना करके कहते हैं कि मेरे बच्चे पवित्र बनो, योगी बनो। और कुछ भी न करो सिर्फ शान्त रहके बार-बार यही अभ्यास करो।
जब साइलेन्स में होंगे तो बाबा मुख से नहीं निकलता है क्योंकि वो साइलेन्स की शक्ति दे रहा है, पवित्रता का बल आत्मा में भर रहा है इसलिए दिल से निकलता है- बाबा 84 जन्म साथ रहेंगे। एक जन्म तो क्या, एक वर्ष भी हम कम नहीं रहेंगे।
हमें तो नशा हो कि यह साकार, अव्यक्त, निराकार तीनों मेरे हैं। तो कभी भी चेहरा ऐसा-वैसा नहीं करेंगे। यह निरादर भी है तो अपवित्रता भी है। तो जो बाबा की याद में प्यार से रहने वाला है, उनमें किसी भी प्रकार की अशुद्धि(अपवित्रता) नहीं होगी क्योंकि किसकी शक्ल ऐसे मुरझाई हुई होती है तो वहम् और रहम पड़ता है।
संगम पर बाबा बच्चों को पावन बना करके राजाई देने के लिए बंधायमान हो गया है। बाबा हमको इतनी बड़ी राजाई देवे लेकिन हम सतयुग के लायक तो बनें। शुद्ध, शान्त तो रहें। बाबा से इनाम लेना हो तो अभी परिवर्तन हो जाओ, पुरानी बातों को विदाई दे बधाईयाँ लो। जो भी किसी के पास पहली और पुरानी बात हो उसे खत्म कर दो। आज भोग लगा दो। मन्सा, वाचा, दृष्टि, वृत्ति सदा सबके हितकारी, सबका भला हो। जैसे बाबा ने मेरा भला किया है, अभी ऐसे सबका भला हो। किसके लिए भी हमें अशुभ सोचना ही नहीं है।
सेवा में या स्व-उन्नति में अलबेले की नेचर बड़ी नुकसानकारक है। बहाने की आदत है तो यह भी अपवित्रता है, सुस्ती भी अपवित्रता है। और यह सब सुनते-सुनते नींद आ जाए तो यह भी अपवित्रता है माना अन्दर में कुछ दाल में काला है। जो इतना बाबा अच्छी तरह से खज़ाना देवे फिर भी हम लेवे नहीं तो क्या कहेंगे! अब लो और बाँटों।

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