एक राजा था जिसका नाम था कर्णराज। कर्णराज न्याय प्रिय और बुद्धिमान राजा था। जो अपनी प्रजा के साथ न्याय करने के साथ-साथ उन्हें ज्ञान का उपदेश भी देता था। अपनी प्रजा को सही और गलत का भेद सीखाता था।
कर्णराज को वृक्षों से बहुत प्रेम था और वो अपनी प्रजा को मनुष्य, जानवर तथा वृक्षों में अहम संबंध हैं, इसका पाठ सीखाया करता था। वो हमेशा प्रजा से कहता था कि मनुष्य को पेड़-पौधों का रक्षण करना चाहिए और जानवरों का भी ध्यान रखना चाहिए।
एक बार एक ग्रामीण को अपने घर को बड़ा करना था और उसके इस काम में आँगन में लगा वृक्ष एक बहुत बड़ी बाधा था। उस ग्रामीण ने आम के हरे भरे वृक्ष को काट दिया, जब यह बात राजा कर्णराज को पता चली तो उसे बहुत दु:ख हुआ और उसने सैनिकों को आदेश दिया कि वो उस ग्रामीण को दरबार में पेश करें।
अगले दिन उस ग्रामीण को दरबार में लाया गया। उस ग्रामीण ने राजा कर्णराज से माफी मांगी, अपने बच्चों की दुहाई दी कि उसे माफ कर दें। वो अगली बार ऐसा नहीं करेगा, लेकिन राजा ने एक न सुनी। राजा कर्णराज ग्रामीण को सज़ा देने का तह कर चुके थे। सभी के सामने राजा ने सजा सुनाई, राजा ने उस ग्रामीण से कहा कि तालाब के पास की जगह पर वो प्रति वर्ष 20 वृक्ष लगाये और उनकी देख-रेख करे और यह काम उसे 5वर्षों तक करना होगा, साथ ही सैनिकों को इस काम की निगरानी करने को कहा गया। उस वक्त तो सभी को यह सज़ा सही नहीं लगी,पर पाँच वर्षों के बाद जब तालाब के आस-पास का इलाका देखा गया तो वह हरा-भरा और काफी रोचक था इससे सभी को सीख मिली।
सीख : अगर इसी तरह वृक्ष लगा कर उनकी देख-रेख करें तो हम अपने आस-पास के परिवेश को सुन्दर बना सकते हैं।