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परमात्म ऊर्जा

अच्छा डबल निशाना कौन-सा है? जो डबल नशा होगा वही डबल निशाना होगा। एक है निराकारी निशाना। सदैव अपने को निराकारी देश के निवासी समझना और निराकारी स्थिति में स्थित रहना। साकार में रहते हुए अपने को निराकारी समझकर चलना। एक सोल कॉन्शियस व आत्म अभिमानी बनने का निशाना और दूसरा-निर्विकारी स्टेज, जिसमें मन्सा की भी निर्विकारीपन की स्टेज बनानी पड़ती है। तो एक है निराकारी निशाना और दूसरा है साकारी। तो निराकारी और निर्विकारी- यह हैं दो निशानी। सारा दिन पुरुषार्थ योगी और पवित्र बनने का करते हो ना! जब तक पूरी रीति आत्म अभिमानी न बनें तो निर्विकारी भी नहीं बन सकते। तो निर्विकारीपन का निशाना और निराकारीपन का निशाना, जिसको फरिश्ता कहो, कर्मातीत स्टेज कहो। लेकिन फरिश्ता भी तब बनेंगे जब कोई भी मन्सा संकल्प भी इम्प्युअर अर्थात् अपवित्रता का न हो, तब फरिश्तेपन की निशानी में टिक सकेंगे। तो यह डबल निशाना भी सदैव स्मृति में रखना और डबल प्राप्ति कौन-सी है? अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति, उसमें शान्ति और खुशी समाई हुई है। यह हुआ संगमयुग का वर्सा। अभी जो प्राप्ति है वह फिर कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती। तो डबल प्राप्ति है बाप और वर्सा। बाप की प्राप्ति भी सारे कल्प में नहीं कर सकते। और बाप द्वारा अभी जो वर्सा मिलता है वह भी सारे कल्प के अन्दर अभी ही मिलता है। फिर कभी भी नहीं मिलेगा। इस समय की प्राप्ति क्रअतीन्द्रिय सुख और फुल नॉलेजञ्ज फिर कभी भी नहीं मिल सकती। तो दो शब्दों में डबल प्राप्ति- बाप और वर्सा। इसमें नॉलेज भी आ जाती है तो अतीन्द्रिय सुख भी आ जाता है और रूहानी खुशी भी आ जाती। रूहानी शक्ति भी आ जाती है। तो यह है डबल प्राप्ति।
यह सभी दो-दो बातें धारण तब कर सकेंगे जब अपने को भी कम्बाइंड समझेंगे। एक बाप और दूसरा मैं, कम्बाइंड समझने से यह सभी दो-दो बातें सहज धारण हो सकती हैं। यह सभी जो दो-दो बातें सुनाईं वह अच्छी तरह से स्मृति-स्वरूप बनना। तो ज्ञानी हो लेकिन ज्ञान-स्वरूप बनना है। योगी हो लेकिन योगयुक्त, युक्तियुक्त बनना है। तपस्वी कुमार हो लेकिन त्यागमूर्त भी बनना है। त्यागमूर्त के बिना तपस्वी मूर्त बन नहीं सकते। तो तपस्वी हो लेकिन साथ-साथ त्यागमूर्त भी बनना है। ब्रह्माकुमार हो लेकिन ब्रह्माकुमार व ब्राह्मणों के कुल की मर्यादाओं को जानकर मर्यादा पुरुषोत्तम बनना है। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम बनो जो आपके एक-एक संकल्प वायुमण्डल पर प्रभाव डालें। ऐसे पॉवरफुल बनना है। जो फुल होता है वह कभी फेल नहीं होता। फुल की निशानी है- एक तो फील नहीं करेंगे, दूसरा फेल नहीं होंगे और फ्लॉ नहीं होगा। तो फुल बनना है।
बहुत पाठ पढ़ा। पाठ ऐसा पक्का करना जो प्रैक्टिकल एक्टिविटी पाठ बन जाए। एक पाठ होता है मुख से पढऩा, एक होता है सिखलाना। मुख से पढ़ाया जाता है, एक्ट से सिखाया जाता है। तो हर चलन एक-एक पाठ हो। जैसे पाठ पढऩे से उन्नति को पाते हैं ना। इस रीति से आप सभी की एक-एक एक्ट ऐसा पाठ सभी को पढ़ायें व सिखलायें जो उन्नति को पाते जायें। पढऩा भी है और पढ़ाना भी है। सप्ताह का कोर्स तो सभी ने कर लिया है ना! कोर्स का अर्थ ही है अपने मेें फोर्स भरना। अगर फोर्स नहीं भरा तो कोर्स भी क्या किया? निर्बल आत्मा से शक्तिशाली आत्मा बनने के लिए कोर्स कराया जाता है, तो अगर कोर्स का फोर्स नहीं है तो वह कोर्स हुआ?

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