सहज राजयोग से सहज परिवर्तन ही ज्वाला स्वरूप योग

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ज्वाला भस्म भी करती, तो ज्वाला परिवर्तन भी करती। अग्नि को देखें तो सब किचड़े को भस्म करती है और वही अग्नि परिवर्तन भी करती है। साइंस के साधनों ने भी यह सिद्ध किया है और हम भी देखते हैं, सबसे कॉमन चीज़ जो खाना खाते हैं उसको पकाने का काम कौन करता है, अग्नि ना। आग ही करती है ना। कच्चे को पक्के में बदलना, यह भी आग का ही काम है। जैसे कच्ची ईंट होती है, उसको पक्की बनाने का काम भी आग का ही है। माना कि कच्चे को पक्का करने की परिवर्तन शक्ति आग में है। आध्यात्मिक रीति से अग्नि के ज्वालामुखी रूप को देखें तो उसमें भी भस्म कर परिवर्तन करने की शक्ति है। पुराने पाप कर्म को भस्म कर उसे परिवर्तन कर श्रेष्ठ बनाने की ताकत उसमें है। जब तक ज्वाला स्वरूप की आग न हो, तब तक परिवर्तन होना कठिन है।
हमने बाबा की एक छोटी-सी अवज्ञा की, मान लो कि हमने मुरली मिस की, है तो छोटी बात लेकिन अवज्ञा तो हुई ना! ये छोटा पाप भी बड़ा हो जाता है। क्योंकि जैसे हमें बाबा ने बताया है एक कदम में पदम है। तो एक का पदमगुणा, अंतर है ना! तो प्राप्ति भी इतनी ही है। और कदम में पदम, तो उसके विपरीत अवज्ञा की ओर कदम बढ़ाये तो उसका भी तो उल्टा पदम होगा ना! क्योंकि अवज्ञा किसकी हुई? भगवान की ना! तो भगवान की अवज्ञा को हम साधारण समझें तो वो किसके खाते में जायेगा! उसी तरह मानो हमने साधारण रीति से किसी के सम्बंध में सुना और वो बात हमने भी दूसरों को कह दी। जिसके प्रति कही उसकी गति क्या होगी! वह जब सुनेंगे, इसने हमारे लिए ऐसा कहा। उसने यह कहा। हमने तो साधारण रीति से कहा था, लेकिन थोड़ा-सा, हल्का-सा पाप हो गया ना। किसी की भी ग्लानि कर दी, किसी की इंसल्ट कर दी, किसी को अपशब्द बोल दिये, किसी को बुरी नज़र से देख लिया। गलती हमारी है, हमारी दृष्टि खराब है, तो उसका पाप तो बनेगा ना! और हमारा जो पैरामीटर है तौल का, वो क्रएक का पदमञ्ज का है। तो ऐसे छोटे-छोटे पाप जाने-अनजाने में हम करते रहते हैं तो उसके कितने पदम का हिसाब हो जाता है! तो परमात्मा ने हमें बताया है, श्रीमत से उल्टे चलना, तो उसका भी तो हिसाब होगा ना! चलो थोड़ी-सी बीमारी आई, बुखार आया, हमने मुरली मिस कर दी। मुरली मिस की, वो तो है ही, लेकिन बुखार उतर जाने के बाद फिर जो सुस्ती आती है, अलबेलापन आता है और फिर हम अवज्ञा करते हैं। ये जो सूक्ष्म में पाप के जम्र्स हैं जो कि हमें बोझिल करते हैं, मन को भारी करते हैं, अवस्था को स्थिर से वंचित करते हैं, एकाग्रता को भंग करते हैं, उससे क्या होता है, कई बार हमारा स्वास्थ्य ठीक होने पर भी मन बाबा में नहीं लगता, योग नहीं लगता, इसका कारण यही है, सूक्ष्म में होने वाली अवज्ञायें। तो बाबा कहते हैं कि ज्वाला स्वरूप माना जो परमात्मा ने हमारे लिए दिनचर्या बनाई है उसमें एक्यूरेट चलने की हिम्मत रखना। उसमें कहीं न कहीं अवज्ञा होती है तो ज्वाला स्वरूप तो नहीं हुए ना! अवज्ञा माना ही हम जिस राह पर हैं उससे अ-जागरुक हैं। तो जो होना चाहिए वो नहीं हो रहा है माना कि परिवर्तन भी नहीं होगा और न ही हल्के हो रहे हैं। पाप भी भस्म नहीं हो रहा और परिवर्तन भी नहीं होता है। तो इसीलिए बाबा कहते हैं, ज्वाला स्वरूप योग होना ज़रूरी है और वर्तमान समय इसी की आवश्यकता है। हम विश्व परिवर्तन करने वाले हैं, वो होगा तब जब हमारे अंदर जो हो रहे छोटे-मोटे सूक्ष्म पाप हैं उसको भस्म करें, परिवर्तन करें और बाबा जो चाहते हैं वो ज्वाला स्वरूप योग जीवन में हो। एक घण्टे बैठेंगे उसके लिए नहीं, बल्कि जीवन में श्रीमत की कसौटी पर चलना ही ज्वाला स्वरूप योग है।

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