स्व को दो मान… मिलेगा सम्मान

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परमात्मा ने आकर हम सभी को उठाने का एक उचित माध्यम, एक सरल विधि हम सबके समक्ष रखी, वो है स्व को सम्मान देना और स्व को उठाना। हम सभी बहुतकाल से दूसरों को तो ऐसी दृष्टि से देखते ही हैं साथ-साथ हम अपने को भी हीन भावना से देखते हैं। दूसरों को देखने का अर्थ यहां ये है कि जैसे कोई व्यक्ति अगर आपको अच्छा नहीं लगता, किसी को देखकर अच्छे वायब्रेशन नहीं आते, किसी को देखकर अच्छे भाव नहीं बनते, तो इसका अर्थ हम समझ लेते हैं कि शायद यह व्यक्ति ऐसा ही है। लेकिन परमात्मा ने इसका बहुत अच्छा उपाय बताया कि आप जो होते हैं या आप अंदर से जो हैं वही आपको सामने वाले व्यक्ति में नज़र आता है। इससे हुआ ये कि हम सभी थोड़ा-सा सतर्क तो हुए और सोचना शुरु किया कि अगर किसी एक व्यक्ति को देखकर मुझे चिढ़ होती है या गुस्सा आता है तो क्या उसी व्यक्ति को देखकर औरों को भी गुस्सा आता है? शायद नहीं या सौ प्रतिशत नहीं ही आता है। और हमें ज्य़ादातर उन्हीं को देखकर गुस्सा आता है जिनको हम देखते हैं, सुनते हैं, थोड़ा-बहुत जानते हैं। तो इसकी विधि इतनी सुंदर जो परमात्मा ने हम सबको दी, वो ये कि सबसे पहले स्वयं से इसकी शुरुआत करो। स्वयं को पहचानो, स्वयं को जानो क्योंकि जो हम चाहते हैं दूसरों से, वही हमारा जीवन है। लेकिन दूसरा वो हमें प्रदान नहीं कर रहा है तो मैं क्या करूं, कहां जाऊं! बस इसी थीम पर परमात्मा ने कहा कि जो चीज़ आप दूसरों से चाहते हैं, सम्मान, प्यार, शक्ति, एनर्जी, वो हमारे अंदर है। लेकिन कोई भी चीज़ एक दिन में तो हमारे अंदर नहीं आ जायेगी। उसको मुझे स्वयं को बार-बार याद दिलाना पड़ेगा, बताना पड़ेगा बार-बार। और जितनी बार हम खुद को ये बताते हैं कि मैं शांत हूँ, मैं खुश हूँ, मैं प्रेम स्वरूप हूँ, वो चीज़ हमारी आत्मा के अंदर बढ़ती चली जाती है। जब वो बढऩा शुरु करती है तो चाहे कोई मुझे कुछ कहे ना कहे, दे न दे, अपने आप ही हमारा मन प्रफुल्लित रहना शुरु करता है। और इसका अभ्यास एक दिन या सौ-दो सौ बार नहीं करोड़ों बार करना पड़ेगा, तब जाकर हम भरपूरता का अनुभव करेंगे।
अब इस समय होता क्या है कि जितने भी स्वमान शिव बाबा(परमात्मा) ने हम बच्चों को दिये, उन सारे स्वमानों को हमने एक बार देख लिया, दो बार देख लिया, एक-दो बार बोल दिया तो उसे वो स्वीकार होने में टाइम लगता है, उसे वो स्वीकार होते नहीं हैं, क्योंकि मन के अंदर इतने समय से, इतने सालों से हमने दूसरी बातें भरी हुई हैं, तो इन बातों का प्रभाव उतना जल्दी हमारे मन पर नहीं आता। इसलिए उस प्रभाव को लाने के लिए हमें इसको लाखों बार, करोड़ों बार याद दिलाना पड़ेगा। लाखों बार प्रयास करना पड़ेगा। तब वो चीज़ नैचुरल हो जायेगी और हमको स्वत: याद आती रहेगी। सिर्फ एक यही तरीका है जिससे हम उन सभी बातों से निकल सकते हैं जिन बातों से हमें दु:ख हुआ है, तकलीफ हुई है, दर्द हुआ है।
आज इतने सारे डरों के बीच हम जीते हैं जिसमें सबसे बड़ा डर जो मृत्यु का डर है, खोने का डर है, असफलता का डर है, भविष्य की चिंता है, अपमानित होने का डर है, अकेलेपन का डर है, बेवजह उदासी का डर है, असुरक्षा का डर है, मनोबल की कमी का डर, असमर्थ महसूस करने का डर है। ये सारा डर इन स्वमानों के अभ्यास से धीरे-धीरे चला जायेगा लेकिन करना इसको बार-बार है। जितनी बार इसको करते हैं वो पक्का होता चला जाता है और ये हमारे जीवन का अंग बन जाता है।

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