वैजयन्ती माला में आने की युक्ति

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कुछ आत्मायें वो भी होंगी जो पूर्व जन्म में भी ब्राह्मण थीं। उन्होंने बहुत अच्छा पुरूषार्थ किया है और देह छोड़ा है। कंटिन्यू होता है। उनकी बहुत सारी धारणायें श्रेष्ठ होती हैं। तो जैसे अष्ट रत्न चारों सब्जेक्ट में फुल होते हैं, किसी धारणा की उनमें कोई कमी नहीं रहती। वे ज्ञान के सब्जेक्ट में भी फुल हो जाते हैं।

हम बात कर रहे हैं विजयी रत्नों की। भारत में विशेष हिन्दु धर्म में, और धर्मों में भी कहीं-कहीं आठ मणकों की माला सिमरी जाती है। स्नान करते हैं उसके आधार से कोई मंत्र जाप करते हैं। 108 ही क्यों? इसको दूसरे शब्दों में वैजयन्ती माला भी कहा जाता है। ये उन आत्माओं की यादगार है जिन्होंने माया पर विजय प्राप्त की। वैजयन्ती का अर्थ है अन्त तक सम्पूर्ण विजय प्राप्त कर ली। इनमें से जो अष्ट रत्न हैं उन्होंने तो लम्बा काल तक इन पर विजय प्राप्त करके इस संसार को बहुत कुछ दिया। वो तो चारों सब्जेक्ट में फुल पास हुए। उनके ही लिए शब्द है फुल पास होना या पास विद ऑनर का जो अवॉर्ड है, जो पदक है वो उन्हें प्राप्त हो जायेगा। लेकिन बाकी जो सौ हैं वो धीरे-धीरे माया पर विजय प्राप्त करते चलते हैं। अन्त तक उनकी सम्पूर्ण विजय हो जाती है। जिनकी विजय जितनी अंत में होती है उनका विजय माला में नम्बर उतना ही पीछे हो जाता है।
मैं एक बात और कह दूं, बाबा ने स्पष्ट किया है अष्ट रत्नों की तो बात छोड़ें लेकिन विजय माला में लास्ट तक भी कुछ सीट खाली रखी जाती हैं कि कोई भी नया आने वाला शिव बाबा का बच्चा तेज पुरूषार्थ करके विजय माला में आने चाहे तो कोई ये नहीं कहेगा कि सीट खाली नहीं है, सीट खाली है। इसलिए जो दो-चार साल से आये हैं, जो आ रहे हैं और जो अभी भी आने वाले हैं उनमें से भी कुछ आत्मायें ऐसी होंगी जो तीव्र गति से पुरूषार्थ करेंगी और विजय माला में सीट ले लेंगी। उनमें से मुझे ऐसा दिखाई दे रहा है कि कुछ आत्मायें वो भी होंगी जो पूर्व जन्म में भी ब्राह्मण थीं। उन्होंने बहुत अच्छा पुरूषार्थ किया है और देह छोड़ा है। कंटिन्यू होता है। उनकी बहुत सारी धारणायें श्रेष्ठ होती हैं। तो जैसे अष्ट रत्न चारों सब्जेक्ट में फुल होते हैं, किसी धारणा की उनमें कोई कमी नहीं रहती। वे ज्ञान के सब्जेक्ट में भी फुल हो जाते हैं।
भगवानुवाच- जैसे मैं ज्ञान का सागर हूँ, अष्ट रत्नों को भी ज्ञान का सागर बना देता हूँ। लेकिन बाकी जो सौ हैं उनकी डिग्रीयां थोड़ी कम होती रहती हैं। लेकिन 75 प्रतिशत से तो ज्य़ादा ही होता है, 75-90-92 यहाँ तक इन आत्माओं की भी डिग्री रहती है। तो इनमें से भी अधिकतर की प्युरिटी और योग की किरणें दूर-दूर तक फैलती हैं। ज्ञान और धारणाओं की किरणें भी बहुत दूर-दूर तक फैलती हैं।
गुण तो धारण हम सभी करते हैं, मैं उदाहरण दे रहा हूँ सहनशीलता। एक व्यक्ति में सहनशीलता इतनी ज्य़ादा है कि उसको पता भी नहीं चलता कि वो सहन कर रहा है और वो सबकुछ सहन करता जाता है। मुस्कुराता रहता है। किसी व्यक्ति में सहनशीलता तो होती है लेकिन 60 प्रतिशत होती है। किसी में 80 प्रतिशत होती है। तो जो विजयी रत्न होंगे उनमें भी वो सद्गुण ज्य़ादा होंगे।

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