सुनो ज़रा, तुम कहाँ जा रहे हो? मैं अपनी दुकान जा रहा हूँ। अच्छा, और कब तक लौटोगे? मैं आज खूब सारे पैसे कमाकर लौटूंगा, क्योंकि कल मेरे बेटे का जन्मदिन है। उसे बहुत सारे पैसे दूँगा जिससे वो उन पैसों को पाकर खुशी से झूम उठेगा। ओह, अच्छा, क्या पैसे, वस्तु के साथ खुशी भी देते हैं? अरे, कैसी बात कर रहे हैं आप! पैसे खुशी क्यों नहीं देते, अरे साहब, बहुत खुशी और सुकून देते हैं। अच्छा जनाब निकलता हूँ अब।
ज़रा सुनो, कहाँ भाग रहे हो तुम इतनी जल्दी में? मैं, मैं विदेश जाने के लिए हवाई अड्डे जा रहा हूँ। अच्छा, क्या प्राप्त होगा वहाँ जाकर? अरे ये कैसा सवाल है आपका, मैं वहाँ जाकर ढेर सारे पैसे और शोहरत कमाऊंगा। अच्छा, फिर क्या करोगे उन पैसों का? दादा जी, उनसे मैं अपना जीवन सुखी और आनंदमय तरीके से जी पाऊंगा। भला वो कैसे? दादा जी, मैं एक आलीशान घर, एक अच्छी-
सी गाड़ी, खूब अच्छे-अच्छे कपड़े खरीदूंगा जो मेरे कलेजे को ठंडक देंगे। ठीक है, मैं निकलता हँू, बहुत जल्दी में हूँ।
सुनो छोटू, तुम कहाँ जा रहे हो? मैं ना स्कूल जा रहा हूँ और अब मैं पुरस्कार लेकर ही लौटूंगा क्योंकि आज मेरे स्कूल में प्रतियोगिता है। अच्छा, और फिर उस पुरस्कार का करोगे क्या तुम? उसको मैं अपने टेलिविजन के ऊपर रखूंगा जिससे वो मुझे और मेरे परिजनों को हर रोज़ खुशी देगा। अच्छा, चलता हूँ मैं।
अरे देवी, ज़रा सुनो मेरी बात, कहाँ जा रही हो आप? मैं, मैं मंदिर जा रही हूँ। अच्छा, क्या करने? अरे, ये कैसा सवाल है आपका? मंदिर तो हर आदमी सुख और शांति लेने के लिए और अपनी अरदास पूरी करने के लिए जाता है। ओह! अच्छा, लेकिन क्या आप मुझे ये और बता सकती हैं कि ये सुख और शांति देता कौन है और कहाँ-कहाँ मिलती है ये? भ्राता जी, ये सुख और शांति भगवान देते हैं, ना कि कोई मनुष्य और ये मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च में मिलती है, जहाँ-जहाँ ईश्वर, अल्लाह का निवास होता है वहाँ-वहाँ ये मिलती है। अच्छा, कितने दिन तक चलती है,मतलब कितने-कितने दिन बाद लेने जाना होता है? भ्राता जी आप इतने अजीब से सवाल क्यों कर रहे हैं? क्या आप ये सब जानते नहीं? क्या आपने कभी पूजा अर्चना नहीं की अपने जीवन में? मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे आप नास्तिक हैं। हाँ, तुम भी मुझे नास्तिक बोल सकती हो ठीक उसी प्रकार जैसे अन्य व्यक्ति मुझे नास्तिक बोलते हैं,क्योंकि मेरे विचार अन्य लोगों से अलग हैं। मेरा दिल तो ये कहता है, जैसे एक शेर का बच्चा शेर, एक राजा का बच्चा राजा होता है ठीक उसी प्रकार सर्वशक्तिवान के बच्चे मास्टर सर्वशक्तिवान होते हैं। कृपया थोड़ा स्पष्ट कीजिए। करता हूँ, करता हूँ देवी। क्या ये सत्य नहीं कि हम सभी मनुष्य आत्माएं, परमात्मा की संतान हैं और वही हमारे सच्चे पिता हैं और इसलिए हम उनको परमपिता कहकर पुकारते हैं! और जब हम उनकी संतान हैं तो जो शक्ति व गुण परमात्मा में हैं वह सब हम
बच्चों में नहीं होगी! परन्तु हम स्वयं को व स्वयं के स्वधर्म को और अपने सच्चे मात-पिता को पूर्ण रूप से भूल चुके हैं इसलिए हर रोज़ हम परमात्मा के पास जाकर कहते हैं क्रक्रमुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीञ्जञ्ज। तुम ज़रा विचार करो, एक बच्चा अपने पिता के आगे ऐसे कहता है क्या? बल्कि हम तो अपने पिता के आगे बड़े शान से कहते हैं जो आपका है वो मेरा है, और दुनिया के आगे भी बड़ी शान से कहते हैं तुम्हें पता है मेरे पिता राजा हैं, डॉक्टर हैं, बैरिस्टर हैं। तनिक विचार करो कैसा महसूस होता होगा उस सच्चे पिता को जब वो अपने बच्चों को सबकुछ देने के बावजूद भी ऐसे भीख मांगते हुए, रोते हुए देखता होगा तो! वास्तव में हमारे सच्चे माता-पिता, शिक्षक, सतगुरु, मार्गदर्शक वह एक ही निराकार परमात्मा हैं और उन्होंने हमें सुख, शांति, आनंद, प्रेम, शक्ति से भरपूर किया है। परंतु हमसे भूल होने के कारण हम सुख-शांति, आनंद को स्थूल वस्तु, व्यक्ति और जगह-जगह ढूंढने लगे। परन्तु ये भगवान के आगे रोने से, अच्छी वस्तुएं खरीदने से, तीर्थ स्थल पर घूमने से प्राप्त नहीं हो सकती, क्योंकि ये हमारा स्वधर्म है इसको जितना हम स्मृति में लाएंगे उतना ही हम महसूस कर पाएंगे। स्थूल वस्तु की खुशी क्षण भर में समाप्त हो जाती है,परन्तु अपने पिता और उनके गुण व शक्तियों को व स्वयं के स्वधर्म को स्मृति में लाने से ही सुख, शांति व आनंद प्राप्त हो सकता है और वही अविनाशी है। अपने स्वधर्म को याद करना माना अपने गुणों का चिंतन करना, उन्हें महसूस करना और हमारे गुण हैं सुख, प्रेम, शक्ति, आनंद आदि और यही यह सच्चा मार्ग है इनको प्राप्त करने का। ये हमें तीर्थ स्थलों पर भटकने से नहीं बल्कि स्वयं का परिचय प्राप्त करने से ही प्राप्त हो सकती है और हमारा सत्य परिचय हमें हमारे सत्य पिता परमपिता परमात्मा शिव ही देते हैं।