कभी हँसना है कभी रोना है, जीवन सुख-दु:ख का संगम है-ये मान्यता बहुत ही समय से चली आ रही है। और इस मान्यता को लोगों ने अपने अन्दर धारण कर लिया है। लेकिन आप ये देखो कि आज से बीस साल पहले, तीस साल पहले, चालीस साल पहले आपके जीवन में क्या ज्य़ादा था दु:ख या सुख! तो जीवन सुख-दु:ख का संगम है अगर हम ये मान लेंगे तो इसका मतलब ये हुआ कि जो कुछ भी आ रहा है उसको हम स्वीकार करते जायेंगे। मनुष्यों ने बहुत सारे ऐसे पैटर्न बनाये और मान्यतायें बनाई, या ऐसी कहावतें बनाई जिसको अन्दर धारण कर लिया और वैसा ही सोचते हैं। अब एक उदाहरण ले लो कि क्रअब पछताये होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेतञ्ज। तो अगर हम पछतायेंगे नहीं तो चिडिय़ा दुबारा खेत चुगेगी। तो पछताने से तो अच्छा है ना ताकि मैं अलर्ट हो जाऊं, ध्यान रखूँ, ताकि मैं एक-एक चीज़ को हिसाब से डील कर पाऊं।
दुनिया में कोई भी ऐसा पैटर्न बना जिसको हमने अपने अन्दर धारण कर लिया। जैसे कोई अगर आध्यात्मिक पथ पर चलना ही चाहता है तो लोगों ने एक मान्यता बना दी कि क्रनौ सो चूहे खाकर बिल्ली हज को चलीञ्ज। तो हम कहते हैं कि चली तो सही, नहीं तो अठारह सौ खा लेती। तो भाव को समझना है। इस दुनिया में हरेक चीज़ एक फ्लो में आगे बढ़ रही है, तेजी से चल रही है। कोई चीज़ परमानेंट नहीं है, सबको पता है सबकुछ बदल रहा है। मनुष्य भी बदल रहा है तो बदलने की मार्जिन तो है ना! अगर बदलने की मार्जिन है तो क्यों नहीं हम उस बदलाव में अपने आप को शामिल कर पा रहे? अब ज्य़ादा से ज्य़ादा पैटर्न को फॉलो करते हैं। या जो लोगों ने बनाए, मान्यतायें बनाई उसको फॉलो करते हैं। उन पर चलना शुरू कर देते हैं। आध्यात्मिकता एक ऐसी जीवनशैली है जिसमें कभी भी, किसी भी समय शुरू किया जा सकता है। इसलिए जीवन सुख-दु:ख का संगम नहीं है, जीवन सिर्फ सुख से ही बना है। क्योंकि आज हम उस सुख को अनुभव करने की ताकत नहीं रखते इसीलिए हमको दु:ख फील होता है।
तो सबसे पहले अभी के अभी हमें इस मान्यता को तोडऩा है कि जीवन में ये बहुत ज्य़ादा है, ये बहुत कम है। ये हमको परमात्मा ने सिखाया और दु:ख भी तब है जब हमको जागृति नहीं है। जैसे किसी भी बारे में जब हम जान जाते हैं तो उसको उसी हिसाब से यूज़ करते हैं,जैसे हम करना चाहते हैं। फिर कैसे उसमें हमको सुख लेना है, कैसे उसको डील करना है, कैसे उसको ठीक रखना है, ये हम कर पाते हैं। इसीलिए उन सारी कहावतों को जो लोगों ने बना दिया, लेकिन उस पर्टिकुलर व्यक्ति ने, उस विशेष व्यक्ति ने जिन्होंने ये सब बनाया होगा ये उनके लिए सही हो सकता है थोड़ी देर के लिए,लेकिन कोई भी कहावत मनुष्य के ऊपर फिट नहीं बैठती। एक बहुत बड़ा बिलीफ सिस्टम है जो हमको ब्रेक करना चाहिए। जैसे दुनिया में कहते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, लेकिन मैं हमेशा, मतलब हम सभी को इस बात का ध्यान रखना है कि कुछ पाने के लिए क्यों खोना है? कुछ पाने के लिए कुछ करना चाहिए। अगर आप कुछ करेंगे तो निश्चित रूप से आप कुछ पायेंगे भी। तो पाने के लिए खोना शब्द का ही क्यों बार-बार यूज़(प्रयोग)कर रहे हैं? अरे कुछ करेंगे तो पायेंगे ना!
जब हम करना शुरू करते हैं तो उस समय जब हम और चीज़ों में नहीं जुड़ पाते,तो उसको हमने खोना शब्द के साथ जोड़ दिया। इसलिए जो कुछ-कुछ बातें कही गई हैं उसको अगर आपने अपने अन्दर धारण कर लिया तो ज्य़ादातर जीवन में बाधा ही उत्पन्न होनी है। जीवन में संघर्ष है, संघर्ष के बिना जीवन ही नहीं है। ये वो मान्यतायें जो हमने खुद अपने दिल से बनायीं और उसी पैटर्न पर चल रहे हैं। मतलब मान लिया कि संघर्ष है तो संघर्ष आयेगा। और हर पल संघर्ष आयेगा क्योंकि आप दिन रात उसी पैटर्न को वायब्रेशन के द्वारा पूरे विश्व में फैला रहे हैं। जब पूरे विश्व के लोग उसी बात को लेकर चल रहे हैं कि नहीं, बिना संघर्ष के आप जीवन कैसे जी ले रहे हो? संघर्ष नहीं आया आपके जीवन में? तो क्या संघर्ष ज़रूरी है? ऐसा नहीं है जीवन सुखमय है, शांतिमय है, प्रेममय है, आनंदमय है, लेकिन उस बात को अपने अन्दर पैटर्न में डालना ज़रूरी है। तो जब तक आप इन मान्यताओं को तोड़ेंगे नहीं, तब तक आप कोई चीज़ को डील नहीं कर सकते, कोई चीज़ को एन्जॉय नहीं कर सकते। कुछ भी हो वैसे छोटे-छोटे जिसको हम अन्धविश्वास, भ्रांतियां कहते हैं या दुनिया में कहते हैं बिल्ली का रास्ता काटना, किसी का छींक देना, तौलिये को झटक देना किसी के सामने या खाली बाल्टी ला देना ये सब बातें तो अंधविश्वास में थीं, भ्रांतियों में थीं, लेकिन उसके बाद और-और कहावतों ने भी हमारे जीवन को नर्क ही बना दिया। तो आप-हम सब पढ़े-लिखे
समाज में हैं और आप इस समय जो फील करते हैं उसको भी छोड़कर जो लोगों ने कहा वो मान लिया, और वैसे ही जीवन को चलाना शुरू कर दिया।
तो चलो उठते हैं और आज इस पैटर्न को तोड़ते हैंै। सबसे पहले कि जो जिन्होंने कहा, वो कहीं न कहीं उसमें कुछ कमी है उसको सही करते हैं। इसलिए सबसे पहले जीवन में संघर्ष नहीं है, जीवन खुशहाल है। जीवन हमेशा अच्छा रहा है। जीवन में कोई भी चीज़ ऐसी नहीं हुई जो हमारे को दु:ख दे, लेकिन हम उससे दु:ख ले रहे थे,क्योंकि हमको आगे का नहीं पता था। इसलिए कहा जाता है कि हर सुख जो आया चला जायेगा, दु:ख भी आया तो चला जायेगा। तो कोई चीज़ जब परमानेंट नहीं है तो उसको सुख-दु:ख का संगम क्यों कह दिया? इसका मतलब दु:ख के साथ सुख जुड़ा हुआ है, नहीं। हमेशा हम सुख में रहे हैं, भूल गये तो इस चीज़ को ऐसे फील करने लग गये। तो चलो इन सारी मान्यताओं को, सारे पैटर्न को तोड़ें और उन बातों को पकड़ें जिन बातों से हमारा जीवन सुखमय-शांतिमय हो सकता है।