मन का शांत रहना- भाग्य है,
मन का वश में रहना- सौभाग्य है,
मन से भगवान को याद करना- अहो भाग्य है और…
जब भगवान ही आपको याद करें, यह तो परम सौभाग्य है।
एक राजा सदा उदास रहता था। लाख कोशिश करने के बावजूद उसे शांति नहीं मिलती थी। एक बार राजा के नगर में एक संत आया। संत के ज्ञानपूर्ण उपदेश से राजा बहुत प्रभावित हुआ। राजा ने संत से पूछा- मैं राजा हूँ, मेरे पास सब कुछ है, किंतु फिर भी मेरे मन में शान्ति नहीं है। मुझे क्या करना चाहिए?
संत ने कहा:- आप एकांत में बैठकर मनन-चिंतन करें। राजा अगले दिन से ही प्रभात के समय अपने कक्ष में आसन जमाकर बैठ गया। कुछ देर बाद ही उसके महल का एक कर्मचारी सफाई के लिए उधर आया।
राजा उससे बात करने लगा। कर्मचारी से राजा ने उसकी परेशानियां पूछी, जिन्हें सुनकर राजा का दिल भर आया। इसके बाद राजा ने हर कर्मचारी के कष्ट व दु:खों का पता लगाया। सभी कर्मचारियों की व्यथा सुनने के बाद राजा ने निष्कर्ष निकाला कि वेतन कम होने से सभी आर्थिक रूप से त्रस्त थे।
राजा ने तत्काल उनके वेतन में वृद्धि कर दी, जिससे वे सभी खुश हो गए और राजा के प्रति आभार व्यक्त किया। अगले दिन जब राजा की संत से भेंट हुई तो उन्होंने पूछा- राजन, आपको कुछ मन की शांति की प्राप्ति हुई?
राजा बोला- मुझे पूर्ण रूप से तो शांति नहीं मिली, परंतु जब मैंने मनुष्यों के दु:खों के स्वरूप को जाना है, मेरे मन से अशांति धीरे-धीरे जा रही है।
तब संत ने समझाया- राजन, आपके मन की शांति के मार्ग को खोज लिया है। बस उस पर आगे बढ़ते जाएं क्योंकि एक राजा तभी प्रसन्न और शांत रह सकता है, जब उसकी प्रजा सुखी हो। कहने का भाव यही है कि मन की शांति स्वयं के सुख से अधिक, दूसरों के दु:ख हरकर उन्हें सुखी बनाने से मिलती है। इसलिए यथाशक्ति सदा दूसरों को मदद करते रहें।
मन को शांतचित्त कर लेना, यह भी शक्ति है
मन को शान्तचित्त कर लेना अर्थात् आत्म-नियंत्रण बना लेना, यह भी एक शक्ति है क्योंकि मन हमारी आत्मा की सूक्ष्म कर्मेंद्रिय है। कोई भी व्यक्ति आत्म-नियंत्रण की शक्ति को रातों-रात हासिल नहीं कर सकता। यह शक्ति सहनशीलता की सभी सीमाएं छूकर, उन्हें पार करके ही मिलती हैं।
इस शक्ति का प्रदर्शन:- किसी ऐसे हालात से प्रभावित न होना और किसी के उकसावे से दूर रहना अर्थात् आत्म-नियंत्रण शक्ति का इस तरह का प्रदर्शन जिसमें प्रतिक्रिया या तो बिल्कुल ही नहीं होगी या फिर बहुत ही नियंत्रित ढंग से होगी। यदि इसकी गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि आत्म-नियंत्रण के लिए मन को साधना ज़रूरी है।
समस्याएं कमज़ोर मन की रचना हैं
जो व्यक्ति अपने मन की स्थिति को कंट्रोल कर सकता है, वह अपने जीवन की भी परिस्थिति को कंट्रोल कर सकते हैं। समस्या कुछ और नहीं है, यह तो हमारे कमज़ोर मन की रचना है। प्रार्थना करते समय व्यक्ति का मंदिर में होना ज़रूरी नहीं, परंतु उसके मन में ईश्वर का होना अति आवश्यक है। कभी-कभी मन को मना लेना ही बेहतर होता है क्योंकि हर बार जि़द्द खुशी नहीं देती।
मन का शांत रहना- भाग्य है, मन का वश में रहना- सौभाग्य है, मन से भगवान को याद करना- अहो भाग्य है और जब भगवान ही आपको याद करें, यह तो परम सौभाग्य है।
मन में सदा शुभचिंतन ही चले
कहा जाता है कि तन और मन को स्वस्थ रखने के लिए दवाई है- शुभचिंतन। इसलिए शुभचिंतक बन सबसे दुआएं कमाओ। मन में सदा श्रेष्ठ विचार, कल्याणकारी भावनाएं और अच्छे अहसासों को ही जगह दें, ताकि दिमाग में सदा पॉजि़टिव तरंगों का ही उदय हो। अस्थिर मन वाले व्यक्ति की सोच भी स्थिर नहीं रहती क्योंकि जो किसी के मन में रहता है, वह दूर रहकर भी पास है। लेकिन जो मन में नहीं रहता वह पास रहकर भी बहुत दूर है। एक कोमल मन से ज्य़ादा आकर्षण के और कुछ नहीं हो सकता।