जिसने इस राज़ को समझा कि मुझे इस देह के भान से डिटैच रहना है, उनकी इस दुनिया में किसी भी बात से अटैचमेंट नहीं रहती। बाबा ने जो हमें 4 सब्जेक्ट दी हैं- उन चारों का ही बैलेंस चाहिए।
हम सभी बच्चों का पहला निश्चय है कि स्वयं ज्ञान सागर बाबा हमें पढ़ाता भी है, वर्सा भी देता है तो मुक्ति-जीवनमुक्ति भी देता है। जब यह निश्चय है तब नशा है और जब नशा है तब उनकी आज्ञाओं पर हम चलते हैं। तीनों रूपों से बाबा हमें रोज़ श्रंृगारता है। सतगुरू रूप से वरदान देता है, जिन वरदानों से हम सभी भरपूर होकर आगे बढ़ते हैं। ज्ञान रत्नों से हमारा श्रृंगार करता है। प्यार का सागर हमें कितनी पालना देता है, आज्ञायें करता है, उससे भी हम आगे बढ़ते हैं। दुनिया के लोग भौतिकवाद में रहते हैं और हम सबको बाबा ने सारी दुनिया की भौतिक बातों से दूर कर दिया है। किसी की बुद्धि में यह नहीं है कि हमें वापस घर जाना है। हमें मूलवतन बुद्धि में याद है। सूक्ष्मवतन भी संगमयुग पर हम बच्चों के लिए है। हम यही पुरूषार्थ करते हैं कि बाप समान फरिश्ता बनें, सम्पन्न बनें और सम्पन्न बनकर वाया सूक्ष्मवतन घर चलें। तभी छोटे-बड़े को बाबा ने यही लक्ष्य दिया है कि बाप समान सम्पूर्ण बनना है। चाहे कोई 25 वर्ष का हो, 5 वर्ष का हो या 5 मास का। सबकी बुद्धि में यही लक्ष्य है कि हमें बाप के समान सम्पूर्ण, कर्मातीत बनना है। जब यह लक्ष्य है तो चेक करना होता है कि हमारी स्थिति ऐसी बनी है या अभी हम बाप से कितना दूर हैं! क्या हम एवररेडी हैं? हम सर्व बंधनों से मुक्त, ईश्वरीय नशे में, एक की ही लगन में इतना मस्त रहते हैं जो आज भी शरीर छूटे तो हमारे कर्मों का हिसाब पीछे न हो। हमने जिस मंजि़ल पर पांव रखा है, उसे पार करना है। हम रोज़ सोचते हैं कि आखिर हमें इतनी ऊंची मंजि़ल पर ले जाने वाला कौन है! जो दुनिया को नहीं मिला, न मिल सकता है वह है हमारा बाबा। जो हमें इतनी सहज नॉलेज देकर अपने समान बना रहा है।
बाबा हमें चार सब्जेक्ट के चार लेसन देता है- हम कितने भी कार्य में रहें लेकिन हमें देह के भान से परे रहना है। देह-अभिमान का भी त्याग हो-यह कहना तो सहज है लेकिन इसी में ही मेहनत है। देह के भान से परे रहो तो सर्व समस्यायें हल हो जायेंगी। खुद लाइट हो जायेंगे। यही है कर्मातीत स्थिति बनाने का पहला साधन व पहली साधना। यही अभ्यास है, यही बाबा की रोज़ की आज्ञा है। अपने से पूछो- रोज़ मैं सवेरे से रात तक इस आज्ञा का पालन करती हँू! जो इस आज्ञा को रोज़ पालन करते, फुल अटेन्शन रखते उनकी सब प्रकार की धारणायें अच्छी होती हैं। जिसने इस राज़ को समझा कि मुझे इस देह के भान से डिटैच रहना है, उनकी इस दुनिया में किसी भी बात से अटैचमेंट नहीं रहती। बाबा ने जो हमें 4 सब्जेक्ट दी हैं- उन चारों का ही बैलेंस चाहिए। लेकिन कभी-कभी सर्विस में तो बहुत आगे इन्ट्रेस्ट बढ़ जाता है। बाकी पीछे की तीनों सब्जेक्ट में अटेन्शन कम हो जाता है। लेकिन चारों सब्जेक्ट एक बैलेंस में रहें यह है पढ़ाई का सार। कोई कहते- मेरा बाबा पर बहुत विश्वास है, लेकिन बाबा से विश्वास माना आज्ञाओं पर विश्वास। बाबा की पहली-पहली आज्ञा है कि इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी नहीं देखो। इस देह में रहते भी देह से ममत्व नहीं रखो। किसी भी व्यक्ति, वैभव से अटैचमेंट न रहे। तो अपने आपसे पूछो किसी भी बात में रिंचक मात्र भी बुद्धि का अटैचमेंट है? अगर स्वयं की स्वयं से भी अटैचमेंट है तो भी रांग है। दूसरे से है तो भी रांग है। अगर कोई कहे हम सर्विस के बिगर रह नहीं सकते, बेचैन हो जाते हैं तो यह भी अटैचमेंट हो गई। यह भी नहीं चाहिए क्योंकि बाबा हमें बहुत-बहुत दूर चैन की दुनिया में ले जा रहा है। किसी भी प्रकार की वहाँ बेचैनी नहीं होगी। अगर कभी यह बेचैनी का शब्द भी आता है तो समझना चाहिए आज स्थिति नीचे-ऊपर है। हम सबको चैन देने वाले हैं, चैन देने वाले अगर बेचैन हो जाए तो समझो गड़बड़ है। बाबा की आज्ञा है- हर बात में डिटैच रहो। सब कुछ करो लेकिन करते हुए भी डिटैच रहो।