आज भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, रंग होते हुए भी एक बात से सभी सहमत हैं चाहे वो धर्मसत्ता हो चाहे कोई और। चारों ओर दु:ख-अशांति, प्राकृतिक आपदाओं के माहौल के मध्य भी सबकी अंगुली ऊपर की ओर जाती और कहते कि क्रहे ऊपर वाले बचाओञ्ज। सब एक बात से तो सहमत हैं कि कोई न कोई सर्वोच्च सत्ता है जिससे हम सबका कहीं न कहीं रिश्ता-नाता है। और हमारे जीवन की सम्पूर्ण आवश्यकताएं उसी ने ही पूरी की हैं। तब तो सबका सिर ऊँचा होता और पुकारते कि अब बहुत हो गया! अब इस धरा पर आ जाओ और हमें सही राह दिखाकर चैन की दुनिया में ले चलो।
अगर वो आ भी जायेगा तो हमें क्या देगा? क्या शिक्षा देगा जिससे हमारे जीवन में सुख और शांति लौट आये? विशेष बात आज हम जो दु:खी हैं, उसका मूल कारण ढूंढने से पता चलता है कि कहीं न कहीं हमारे जीवनशैली में, परस्पर सम्बंधों में, व्यवहार में अशुद्धि की छाया व्याप्त है। हम सभी की यह चाह है कि इसमें परिवर्तन हो, बदलाव हो। पर बदलाव कैसे होगा, वहां आकर हम सभी रुक जाते। क्योंकि मनुष्य मात्र का यह कार्य रहा ही नहीं। अगर मनुष्य यह कार्य कर सकता तो हमें ऊपर वाले की याद ही क्यों आती! हमने शास्त्रों में भी पढ़ा है, क्रसुख-शांति की जननी पवित्रता हैञ्ज। आज हर कोई सुख, शांति, खुशी की चाह रखता है पर हमारे जीवन में इसका स्थायित्व कैसे हो, ये नहीं जानते। पर जैसे कहा कि जहाँ पवित्रता और शुद्धता है वहां परमात्मा का वास है। सब कोई सुख, शांति, आनंद, प्रेम मांगता, पर कोई ये नहीं मांगता कि हमारे जीवन में पवित्रता हो। जबकि पवित्रता बिना न प्यार है, न प्रेम है, न शांति।
आज हम अशांति और दु:ख के कारण को जड़ से समाप्त करना तो चाहते हैं पर पवित्रता को अपनाने में हमें कठिनाई महसूस होती है। क्योंकि हमारे सामने कोई ऐसा आदर्श नहीं है जहाँ पवित्रता भी हो और जीवनचर्या भी हो। और शर्त ये है कि पवित्रता है तो बाकी सब कुछ है। इसीलिए परमात्मा शिव की इस धरा पर आवश्यकता है ताकि हमें सही व श्रेष्ठ जीवनचर्या का वर दें। और हमें जागृत करें कि पवित्रता का महत्त्व हमारे जीवन में कितना है! पवित्रता से ही जीवन में प्रसन्नता रहती है। बिना पवित्रता प्रसन्नता नहीं। पवित्रता से प्रभु का प्यार भी है और प्रभु का दिया हमें उपहार भी।
आप सोचें, कोई भी महान व्यक्ति व देवी-देवताओं के पास जाते हैं, उनके चित्र देखते हैं तो उनके चेहरे से हमारे चेहरे में भिन्नता महसूस होती है। एक घड़ी भी आप देवी-देवता के चित्र या मूर्ति को ही देखें तो आपको लगेगा कि उनके चेहरे में जो मधुर स्मित की खुशबू है वो हमारे में नज़र नहीं आती। यानी कि हमारे मन में उलझन है, प्रश्न है, इच्छायें हैं, ईष्र्या है, कहीं न कहीं अप्राप्तियां हैं। तभी तो मन में प्रश्न उठता ही रहता है और मन की बेचैनी बनी ही रहती। तो सभी प्रश्नों का हल, सभी समस्याओं का समाधान, अशांति के कारण, दु:ख का हल अगर एक शब्द में बांधें तो वो है पवित्रता। परमात्मा शिव जब इस धरा पर आते हैं तो सबसे पहले सर्व आत्माओं को पवित्रता का वर देते हैं और स्मृति दिलाते हैं, याद दिलाते हैं, आप सबका निज-स्वरूप पवित्रता है। समय चलते भिन्न-भिन्न आकर्षण, इच्छायें व भोग के वश आपकी पवित्रता का बल लगभग पूरा ही समाप्त हो चुका। जब अपनी चीज़ गुम हो जाती तो बेचैनी होती है ना! और जहाँ बेचैनी है वहां शांति, सुख नहीं भासता। आज हम आपको यही बताना चाहते हैं कि हम अपने जीवन में पवित्रता के महत्त्व को जानेंगे, समझेंगे और जीवन में उतारेंगे तो सुख, शांति और समृद्धि परछाई की तरह आपके साथ रहेगी, कभी भी अलग नहीं होगी। 2023 की शिवरात्रि विशेष रूप में खास है, क्योंकि परमात्मा हमें सबकुछ देने भी आया है और यह संदेश भी लाया कि, बहुत हो गया अब, बच्चे बहुत हो गया। अब, खेल समाप्त हो रहा, अब चलो अपने घर। पवित्रता अपनाओ, सुख-शांति पाओ। अब आप क्या चाहते हैं, ये आप पर छोड़ते हैं…।