‘योग’ याद की यात्रा है

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ज्ञान के सम्बंध में परमात्मा ने अलग-अलग प्रकार से हमें बताया है। जैसे कभी बाबा ने कहा है, ज्ञान रोशनी है, जैसे रोशनी में हम चीज़ों को ठीक तरह से देख सकते हैं, वैसे ही ज्ञान होने से हम इस विश्व को, शरीर में विराजमान आत्मा को, कर्मों के सिद्धांत को अच्छी तरह जान सकते हैं। तीसरा नेत्र खुल जाता है, इसलिए ज्ञान को तीसरा नेत्र भी कहा जाता है। यह ज्ञान औषधि भी है, आत्मा को जो विकारों के रोग लगे हुए हैं, वो समाप्त हो जाते हैं। इस प्रकार अलग-अलग समय बाबा ने ज्ञान की अलग-अलग परिभाषा दी है। इन सभी को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। इसलिए बाबा कहते हैं, ज्ञान के हरेक प्वाइंट अनमोल रत्न हैं, अविनाशी रत्न हैं। इस बात को याद रखने से हम कोई प्वाइंट मिस नहीं करेंगे। क्योंकि वो मूल्यवान चीज़ है। केवल रत्न ही नहीं हैं बल्कि वो अपने भविष्य का जीवन है। उससे हमें अनेक जन्मों तक सुख, शांति, पवित्रता और सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
इसी तरह बाबा ने कहा है कि याद एक यात्रा है। आमतौर पर बाबा कहते हैं कि क्रयोगञ्ज शब्द कठिन है। अब आप योग शब्द कहते हैं तो लोग समझते हैं कि यह कठिन है। भगवान से योग लगाना, यह तो बड़ा कठिन काम है। इसी संदर्भ में आपको क्रटेढ़ी खीरञ्ज की कहानी का जि़क्र करना उचित होगा। किसी व्यक्ति का एक दोस्त था। वो जन्म से अंधा था। बहुत दिनों के बाद एक दफा आपस में मिले तो उसने दोस्त को कहा कि मेरे पास आना। अंधे दोस्त ने कहा, क्या करोगे? दूसरे ने कहा, तुम्हारी खातिरी करूंगा, महफिल करूंगा, खिलाऊंगा, पिलाऊंगा। उसने कहा, अच्छा क्या खिलाओगे बताओ? उसने कहा, खीर खिलाऊंगा। अंधे दोस्त ने पूछा, खीर क्या होती है? उसने कहा, सफेद होती है। जन्म से अंधा होने के कारण उस बिचारे को क्या पता कि सफेद क्या होता है। उसने पूछा, सफेद कैसी होती है? उसने कहा, जैसे बत्तख होती है। और ज्य़ादा कठिन कर दिया उसके लिए। उस बिचारे को बत्तख क्या होती है वह भी पता नहीं था। फिर उसने प्रश्न पूछा, बत्तख कैसी होती है? दोस्त ने उसका हाथ पकड़कर उसको टेढ़ा मोड़कर दूसरा हाथ उसपर रखा और कहा कि बत्तख ऐसी होती है। फिर उसने कहा, ना भाई, मैं ऐसी टेढ़ी खीर नहीं खाऊंगा, वो तो मेरे गले में ही फंस जायेगी।
बाबा कहते हैं, योग शब्द जब आप कहते हो तो लोग इसे कठिन समझते हैं। कहते हैं, यह तो हमारे वश का नहीं है। जब उसको क्रयादञ्ज कहते हैं, तो सरल समझते हैं क्योंकि याद तो स्वाभाविक है। बच्चा भी अपनी माँ को याद करता है। उसको कोई सिखाता है क्या? माँ को याद करना उसके लिए सहज और स्वाभाविक होता है। अगर हमें मालूम हो कि शिव बाबा से हमारा क्या सम्बंध है, उससे क्या प्राप्ति होती है, और परमात्मा की याद के क्या लाभ हैं, तो क्रयादञ्ज सहज है। इस ज्ञान में अधिक लोग भक्ति मार्ग के आते हैं। जो ज्ञान में आते हैं तो भक्ति का अंत होता है, क्योंकि ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। भक्ति का फल है ही ज्ञान।
भक्त लोग तो यात्रा में लगे रहते हैं कि इस बार हरिद्वार चलेंगे, अगली बार फलानी जगह जायेंगे। इन बातों को ध्यान में रखते हुए बाबा ने कहा है कि क्रयोग एक यात्राञ्ज है। बहुत सरल बना दिया। क्योंकि यात्रा में भक्तों की रुचि होती है। वे समझते हैं कि यात्रा करने से पाप समाप्त होते हैं। वहां महान लोगों के दर्शन होते हैं। जहाँ पर महान व्यक्ति होते हैं, वो पवित्र स्थान होता है। वहां पर जाने से हमें भी अच्छे संकल्प आयेंगे। जीवन अच्छा बनेगा।
किसी को योग सिखाना है तो उस व्यक्ति को प्रेरित करना पड़ता है। जिस चीज़ में जिसकी रुचि हो, उसको वो बात बतानी पड़ती है ताकि वो उसमें दिलचस्पी ले। ज्ञान की प्राप्ति के लिए जिज्ञासा ज़रूरी है। जिसको भूख ही नहीं लगी हो, वो खायेगा कैसे! प्यास ही नहीं लगी हो तो पानी कैसे पियेगा! पहले व्यक्ति को जाग्रत करना पड़ता है। जिसको भूख ही नहीं लगी हो, उसको खिलाना तो है ही ताकि उसको कमज़ोरी न आये। इसलिए पहले उसको ऐसी दवाई देते हैं कि उसकी भूख जाग्रत हो। जिससे उसको कुछ खाने की इच्छा हो। इस प्रकार योग के बारे में, ज्ञान के बारे में अलग-अलग समय पर उनकी अलग-अलग उपमायें बाबा ने दी हैं। उनके अलग-अलग विश्लेषण और विवरण दिये हैं। उन सबको याद रखना ज़रूरी है। ज्ञान की दृष्टि से देखा जाये तो यह हमारा ईश्वरीय विश्वविद्यालय सारे विश्व का आध्यात्मिक विश्वविद्यालय है। जहाँ आध्यात्मिक उच्च शिक्षा प्राप्त होती है, कायदेसिर, सुसम्बद्ध रूप से और इस शिक्षा से उच्च प्राप्ति होती है। यह तो यूनिवर्सिटी है जहाँ क्रयूनिवर्सल नॉलेजञ्ज मिलता है। तो बाबा ने योग को हमारे लिए इतना सहज कर दिया कि योग न कहो, याद कहो। याद करना मनुष्य के लिए सहज है। तो बाबा ने ज्ञान, योग से सम्बंधित जो भी बातें कही हैं उनको अर्थ सहित, यथार्थ रूप में जानना भी, समझना भी और उसका स्वरूप भी बनना है।

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