मुख पृष्ठब्र. कु. गंगाधरड्रामा होता ही है खुशी के लिए

ड्रामा होता ही है खुशी के लिए

ज्ञान-मार्ग में कई ऐसी बातें हमने सुनी जो कि आश्चर्यजनक हैं। हमें ये भी पता है कि ये स्वयं परमात्मा ने बताया है फिर भी उन बातों पर हमारा सम्पूर्ण निश्चय नहीं बैठ पाता। “ड्रामा बना-बनाया है”, ऐसा शब्द आपने कभी सुना नहीं होगा। भाई, या तो बना हुआ होता है या तो बनाया हुआ होता है। दोनों नहीं होता है ना! लेकिन बाबा की भाषा ही अलग है। यह क्रबना-बनाया ड्रामाञ्ज है। बना-बनाया का मतलब क्या होता है? कोई चीज़ बनी-बनाई होती है क्या? रोटी है, बनी-बनाई होती है क्या? इसको कोई पकाता है, बनाता है। लेकिन बाबा कहते हैं, ड्रामा अनादि है। इसको मैंने भी नहीं बनाया। मैं भी ड्रामा के अनुसार ही चलता हूँ। यह अनादिकाल से चला आता है। यह चला ही नहीं आया है लेकिन ऐसे ही चलेगा। यह कल्प-कल्प ऐसे ही चलेगा। अगर एक मक्खी भी सामने से गुज़रती है तो वो कल्प-कल्प उसी समय पर ऐसे ही गुज़रेगी। यह बदलने वाला नहीं है। फिर बाबा कहता है, यह एक्यूरेट है। कमाल है! एक्सीडेंट हो जाये, टांग टूट जाये और ड्रामा एक्यूरेट है! टांग हमारी टूटी पड़ी है और ड्रामा एक्यूरेट है! उस समय आदमी ऐसा सोचेगा तो कैसा लगेगा!
ब्रह्मा बाबा के जीवन में हमने देखा, पूरे विश्व को परिवर्तन करने की जि़म्मेवारी फिर भी कोई भारीपन नहीं, चिंता नहीं। कारण, ये ड्रामा बड़ा एक्यूरेट है। वंडरफुल है, बना-बनाया है। बना-बनाया क्यों है? अगर आप ये कहेंगे कि भगवान ने मेरा पार्ट खराब दिया, उसको अच्छा दिया। मैं जिस काम में हाथ डालता हूँ नुकसान ही नुकसान है और वो राख में भी हाथ डालता है तो सोना बन जाता है। तो यह ड्रामा है जी! भगवान भी न्याय नहीं करता है! यह क्या बात है जी! यह बना-बनाया ड्रामा है। भगवान ने नहीं बनाया है। नहीं तो दोष उसपर आता है।
भक्ति मार्ग में एक कहानी सुनाते हैं, एक व्यक्ति ने भगवान से प्रार्थना की, क्रहे प्रभु, मेरे पड़ोसी की भैंस बहुत दूध देती है, मेरी गाय उसके सामने कुछ भी नहीं देती। सेवा भी मैं गाय की बहुत करता हूँ। पड़ोसी बहुत कमाता है भैंस से। तू मेरी भक्ति की परवाह नहीं करता है। तू सोया पड़ा है। क्या बात है? तूने मेरे लिए कुछ नहीं किया। अच्छा चलो, कम से कम यह कर दो कि उसकी भैंस मर जाये।ञ्ज भगवान को कहता है कि पड़ोसी की भैंस मर जाये! भगवान के पास यही काम रह गया है क्या करने को! हुआ क्या कि दो दिन बाद उसकी गाय मर गई, बजाय पड़ोसी की भैंस मरने के। तो कहता है, अरे भगवान, “तुझे गाय और भैंस का भी पता नहीं है! मैंने कहा था भैंस मार दो, तुमने तो गाय मार दी। फिर कहता है, तू कैसा भगवान है! कौन कहता है तुझे भगवान! एक छोटा बच्चा भी जानता है कि भैंस क्या होती है और गाय क्या होती है।ञ्ज लेकिन यह ड्रामा बना-बनाया है, इसीलिए भगवान पर दोष नहीं आता है। हमारे ऊपर भी दोष नहीं आता है क्योंकि ड्रामा में हरेक का पार्ट है। हरेक के पार्ट को देखकर खुश हो जाओ। ड्रामा किया जाता है और देखा जाता है खुशी के लिए, मन बहलाने के लिए। कोई कहता है, ये प्रभु की लीला है, कोई कहता है कि ये चार दिन का नाटक है। ड्रामा के बारे में बाबा के जो शब्द हैं, एक्यूरेट हैं, अनादि हैं और वाह ड्रामा वाह! ऐसा कहकर चलते रहो तो खुश होंगेे। जब खुशी होगी तभी संतुष्ट रह सकते हैं। खुशी तब रहती है जब हम समझेंगे कि ड्रामा होता ही है खुशी के लिए। इसके बिना हर परिस्थिति में संतुष्ट रहना संभव नहीं।
जैसे आत्मा को समझना ज़रूरी है, परमात्मा को समझना ज़रूरी है, कर्मों की गति को समझना ज़रूरी है, भगवान का अवतरण और उसके कत्र्तव्य स्थापना, पालना और विनाश के राज़ को समझना ज़रूरी है, उतना ही ड्रामा के राज़ को समझना भी ज़रूरी है। ये कोई कम महत्त्व की बात नहीं है। कितने लोग इस ज्ञान से चले गये क्यों? क्योंकि वे इस ड्रामा के पट्टे पर टिक ही नहीं सके। नतीजा यह हुआ कि इतना वंडरफुल ज्ञान को छोड़कर, इतने बड़े भाग्य को लात मारकर, इतनी बड़ी तकदीर की लकीर को खत्म कर चले गये। तब भी बाबा कहता है, वाह ड्रामा वाह! आप सोचो, बाबा के दिनों में कितने आये, खून से लिखकर दिया कि हमें निश्चय है कि भगवान ब्रह्मा के तन से पढ़ा रहे हैं, फिर चले गये। कितने-कितने साल बाबा की पालना ली और चले गये! इसलिए बाबा कहते हैं, आश्चर्यवत सुनन्ति, कथन्ति… इत्यादि गीता में भी है। यह ड्रामा खुश रहने के लिए बना-बनाया है। किसी को दोष नहीं दे सकते।

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