आत्मा को पोषित करना उतना ही आवश्यक है… जितना कि शरीर को

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नैचुरोपैथी वाले अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या-क्या खिलाते हैं। जो शरीर को नुकसान न हो। जब हम इस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इतना ध्यान रखते हैं तो जो इस शरीर को चलाने वाली है उसको क्या खिलाना है उसका भी तो हमें ध्यान रखना है।

जैसे ही आत्मा शरीर से निकल गई तो शरीर कुछ नहीं कर सकता। सारी जि़म्मेदारियां खत्म। बच्चे वहाँ हैं लेकिन आप उनके लिए कुछ नहीं कर सकते। पेड़ पानी बिना नहीं रह सकता, गाड़ी पेट्रोल बिना नहीं चल सकती, शरीर भोजन के बिना नहीं चल सकता, लेकिन आत्मा चलती जा रही है जिसका परिणाम आज हमें दिखाई दे रहा है। हम छोटी-छोटी बातों से नाराज़ हो जाते हैं, उदास हो जाते हैं क्योंकि बहुत सालों या शायद कई जन्मों से आत्मा को पोषित करना ही भूल गए हैं हम। आत्मा को पोषित कैसे करना है यह हमें मालूम ही नहीं था।
आत्मा को सकारात्मक चिंतन से पोषित करने के बजाय कई ऐसी चीज़ें डालनी शुरू कर दीं जो उसके लिए सही नहीं हैं तो उसका भी परिणाम दिखाई देने वाला है। हम सुबह उठते थे, तैयार होते थे, काम पर जाते थे, शाम को आते थे परिवार के साथ बैठते थे। ऐसा ही जीवन बहुत सालों से चल रहा था। हमें कभी-कभी थोड़ा गुस्सा आ जाता था, कभी हम थोड़े उदास हो जाते थे, फिर हम ठीक हो जाते थे।
हम बहुत सारे लोगों के साथ सामंजस्य बैठा लेते थे, कभी-कभी नाराज़ भी हो जाते थे लेकिन हम वापस उनके साथ हो जाते थे। हाँ, यह है कि हम रोज़ सुबह-सुबह पूजापाठ
करते थे, फिर सारा दिन सामान्य चलता था। सुबह की वो थोड़ी-सी पूजा-पाठ भी आत्मा के लिए पोषण थी। मन भी ठीक चल रहा था, शरीर भी ठीक चल रहा था। उस समय इलाज कम होते थे। तब इलाज उतना अच्छा नहीं होता था जितना आज हमारे पास है। लेकिन बीमारियां भी कम थीं। रिश्ते भी अच्छे चल रहे थे। पिछले 50 सालों से हमने भले पोषित नहीं किया लेकिन ज्य़ादा कुछ गलत भी नहीं खिलाया। अगर हम पिछले20 साल को देखें तो हमने इसको बहुत ज्य़ादा गलत खिलाना शुरू किया है।
इससे क्या हुआ कि मन की बीमारियां बढ़ गईं, शरीर की बीमारियां बढ़ गईं, रिश्तों में तनाव व कड़वाहट बढ़ते जा रहे हैं। डिप्रेशन रेट बढ़ गया, हृदय रोग बढ़ गए, तलाक बढ़ गए, दुष्कर्म बढ़ गए। आज के बच्चों पर इतना असर क्यों हो रहा है,सूचनाओं का? बच्चों को स्कूल की पढ़ाई मिल रही है लेकिन आत्मा का पोषण नहीं।
छोटी-सी उम्र में ही उनके हाथ में फोन हैं, गैजेट्स हैं। वे आज अगर कार्टून भी देख रहे हैं तो उसमें भी हिंसा है। जब ये सारी चीज़ें आत्मा को बचपन से मिलनी शुरू हो जाएंगी तो आत्मा पोषित कहाँ होगी! मैंने अपनी सारी जि़म्मेदारियां निभाईं लेकिन इससे मेरी आत्मा खुश नहीं है और मैं संघर्ष का जीवन जीती हूँ। इससे तो हम पीछे की पीढ़ी को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है उसे तो हम देखते हैं। उसके लिए समाधान भी ढूंढते हैं लेकिन आत्मा के प्रदूषण के समाधान की तरफ हम ध्यान नहीं देते हैं। अगर हम आत्मा को थोड़े दिन सिर्फ पोषित करना शुरू कर दें तो वह फिर खिल जाएगी। उसका तनाव-अवसाद, बीमारियां ठीक होने लगेंगी, उसके रिश्ते तो बहुत बढिय़ा बन जाएंगे।

ब्र.कु. शिवानी बहन, जीवन प्रबंधन विशेषज्ञा

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