शिवबाबा ने हमें कहा ओम शान्ति के इस मंत्र को यंत्र बना दो क्योंकि ओम शान्ति का अर्थ है कि मैं शान्त स्वरूप आत्मा हूँ, तो ओम शान्ति कहने से ही अपने स्वरूप की स्मृति आ जाती है कि मैं शान्त स्वरूप आत्मा हूँ । मेरा स्वधर्म ही शान्त है। यह समय ही समस्याओं का है इसलिए समस्या तो आयेगी ज़रूर, लेकिन आप ओम शान्ति के अर्थ स्वरूप में टिक जाओ कि मैं एक शान्त स्वरूप आत्मा हूँ , शान्ति के सागर परमात्मा की बच्ची/बच्चा हूँ। तो इस स्मृति से आपकी समस्या समाधान के रूप में बदल जायेगी। कारण, निवारण में बदल जायेगा क्योंकि स्वरूप की स्मृति आ गयी। दिल की बीमारी वालों के लिए खुशी की दवा पहली खुराक है। तो समस्या समाधान में बदल जायेगी तो खुशी होगी ना, तो ओम शान्ति को यंत्र बना दो।
कलियुग का अन्त होने कारण बातें तो आएंगी, बात आती है, चली जाती है। बात आके चली जाने के बाद अगर हम उसी के बारे में सोचते रहेंगे, वर्णन करेंगे तो हमारी खुशी भी चली जायेगी। कोई हमारे घर में आके एक छोटा-सा रूमाल भी लेके जावे तो आप उसको छोडेंग़े? तो हमारी खुशी, हमारा शुभ चिंतन शान्ति का, उसमें व्यर्थ चिंतन चल जायेगा। और व्यर्थ(वेस्ट) बहुत फास्ट चलने के कारण मन की शक्ति को खो देते हैं इसलिए आप खुशी कभी नहीं गँवाओ। खुश रहना यह बड़े-ते-बड़ी दवाई है। इसके लिए जो बीता सो बीता उसके चिंतन में नहीं जाओ। जो हुआ सो हुआ, फिनिश। बीती को चितवो नहीं। पानी को बिलौने से क्या मिलेगा? बाँहों का दर्द। इसलिए बीती को छोड़ भविष्य को सोचो। मैं आत्मा हूँ, परमात्मा की सन्तान हूँ तो खुशी आएगी तो आपकी यह बीमारी ठीक होती जाएगी। तो जब भी कोई दर्द आपको हो तो उस समय ‘मैं आत्मा हूँ’ यह गोली ले लो क्योंकि आत्मा, परमात्मा की सन्तान होने कारण शान्ति का सागर, सुख का सागर याद आने से खुद भी ऐसे स्वरूप में स्थित हो जाएंगे। तो यहाँ यह खुशी की खुराक खूब खाओ, इसे खाने की विधि है मैं आत्मा, परमात्मा की सन्तान हूँ। जैसे बाप वैसे मुझे बनना है। तो खुशी कभी नहीं छोडऩा क्योंकि खुशी की खुराक छोड़ दी तो क्या होगा? बातें व्यर्थ आती हैं, हालातें आती हैं उसमें ही लगे रहते हैं लेकिन अभी हमको शिवबाबा कहते हैं इन बातों को छोड़ो खुशी की खुराक ही लो। सदा खुश रहो और खुशी बाँटो क्योंकि यह खुशी ऐसी चीज़ है जो जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगी। तो अभी चलते-फिरते भी अपने को आत्मा समझते हर्षित होते रहेंगे। तो हमारा आप सबके प्रति यही शुभ संकल्प है कि आप यहाँ से ठीक होके ही जायेंगे। होना ही है, होंगे नहीं होंगे, यह कभी नहीं सोचो। होना ही है तो हो ही जायेंगे।
हमारी जीवन अभी दु:ख से खत्म होके सदा सुख में, शान्ति में, खुशी में बदल गयी। कोई चिंता नहीं क्योंकि जिसका साथी है भगवान, उसको क्या रोकेगा आंधी और तूफान! तूफान, तोहफा में बदल गया। ‘मैं’ मेरा बाबा को दे दिया माना सब दु:ख दूर। मेरापन आया माना गृहस्थी। तेरा माना शिवबाबा, ट्रस्टीपन। तो ये चेक करो। क्योंकि वायुमण्डल संसार का होता है, इसमें मेरा खत्म होके तेरा हो जाए। मेरा आया तो दु:ख, अशान्ति, खिटखिट और तेरा तो सब दु:ख दूर।
‘खुश रहना’ यह है सबसे बड़े ते बड़ी दवाई
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