मोहित एक रनर था, इसका सपना ओलंपिक में जाना था। वह हर मैराथन में हिस्सा लेता था। लेकिन आज तक कोई भी मैराथन पूरा नहीं कर पाया और इस बात पर उसे बहुत अफसोस था। वह खुद में ही खुद से हारने लगा था, पर उसने अभी तक हार नहीं मानी थी, वह कोशिश पे कोशिश किए जा रहा था। हर साल मोहित मैराथन में हिस्सा लेता, पर उसे पूरा नहीं कर पाता था। वह मैदान में जाते ही अपने प्रतियोगी को देख होपलेस हो जाता। उनके सामने खुद से खुद की कमी निकालता, खुद में वो भरोसा नहीं रख पाता। लेकिन हर साल की भांति इस साल मैराथन होने पर सिर्फ 2 महीने ही बचे थे। मोहित ने रोज़ कसरत और दौड़ लगाना शुरू कर दिया और उसने खुद से वादा किया कि इस बार मैं मैराथन ज़रूर पूरा करूँगा। इस फैसले के बाद उसने कड़ी मेहनत भी चालू कर दी और रोज़ कुछ ज्य़ादा वह अपनी क्षमता को बढ़ाने लगा। महीनों की मेहनत थी और वो दिन आ गया जिसका मोहित को बेसब्री से इंतज़ार था। हाँ,आप सही सोच रहे हैं-मैराथन। मोहित मैदान पहुंचा और हर बार की भांति इस बार भी होपलेस होने लगा मगर अंदर से आवाज़ आई मैं कर सकता हूँ, आसान है।
बाकी सब रनर्स के साथ मोहित ने भी दौडऩा शुरू किया, लेकिन कुछ दूर तक दौड़ लगाने के बाद उसके पैरों में दर्द होने लगा और उसे लगा इस बार भी नहीं हो पाएगा, लेकिन खुद को उसने काबू किया और बोला मोहित अगर दौड़ नहीं पा रहे हो तो जॉगिंग ही कर लो। लेकिन आगे बढ़ो, मोहित ने जॉगिंग करना शुरू किया मतलब पहले के मुकाबले ज़रा मैराथन पूरा करना नामुमकिन-सा लगने लगा। मगर अंदर से आवाज़ आई जॉगिंग नहीं कर पा रहे हो तो चलते हुए रेस पूरा करो। चलते रहो रूको मत मैराथन ज़रूर पूरा करना है और फिर वह चलने लगा।
उसकी काफी धीमी गति हो गई थी। सारे रनर्स उससे एक-एक करते आगे निकलते जा रहे थे और मोहित उन्हें आगे निकलते हुए देखने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था। तभी अचानक लडख़ड़ा कर वो ज़मीन पर गिर पड़ा। ज़मीन पर पड़े-पड़े उसके दिमाग में ख्याल आने लगा कि इस बार भी मैं मैराथन पूरा नहीं कर पाया। तभी मोहित के अंदर से आवाज़ आई, जिसने कहा उठो मोहित चल नहीं पा रहे थे तो लडख़ड़ाते हुए फिनिश लाइन को पार कर लो। फिनिश लाइन अब बहुत सामने है। मोहित लडख़ड़ाते हुए आगे बढ़ा और फिनिश लाइन को किसी तरह पार कर लिया। और जो खुशी, जो संतुष्टि उसने महसूस की वो इससे पहले उसने कभी नहीं की थी।
शिक्षा : किसी भी काम को करने से पहले हज़ार बार सोचिए, लेकिन जब एक बार फैसला ले लिया हो तो उसे पूरा करके ही छोडऩा।