परचिंतन की बजाय करें…स्वचिंतन

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हमारे सुंदर विचार हमारी पर्सनैलिटी को बहुत सुंदर बनाते हैं। हमारे सुंदर विचार समाज में हमारी पहचान बनाते हैं। हमारे सुंदर विचारों के वायब्रेशन सारे संसार में फैलते हैं। हम अपने पर गहरी दृष्टि डालें। हमारा समय दूसरों को देखने में दूसरों का चिंतन करने में तो नहीं जा रहा है?

हमारे व्यर्थ संकल्प हमें बहुत अच्छी-अच्छी बातें तो भुला ही देते हैं। जो व्यर्थ संकल्पों में रहते हैं उनका ज्ञान का चिंतन भी हो नहीं पाता क्योंकि उनकी सारी मन की शक्तियां व्यर्थ चिंतन में बह जाती हैं। बुद्धि का एक एटीट्यूड बुद्धि की जो टेंडेन्सी है जिसमें सद्विवेक भरा है वो ज़रा लोप हो जाता है। इसलिए व्यर्थ संकल्पों को हर फील्ड में अपना शत्रु मानते हुए इन पर हमें अंकुश अवश्य लगाना है। आप सब जानते हैं स्टूडेंट्स अगर व्यर्थ में रहते हैं तो टीचर क्या पढ़ा रहा है, लेक्चरर क्या सुना रहा है तो उनकी समझ में नहीं आएगा, सुनते हुए भी जैसे अंदर कुछ जा ही नहीं रहा है। यदि आप बिज़नेसमैन हैं, आप व्यर्थ में रहते हैं, आपके चारों ओर एक निगेटिव एनर्जी फैलती रहती है तो इसका प्रभाव आपकी ग्रहस्थी पर व आपके बिज़नेस पर अवश्य पड़ेगा।
एक माँ भोजन बना रही है। उसके मन में व्यर्थ संकल्प बहुत चल रहे हैं, तूफान उठ रहा है तो उसका भोजन न तो टेस्टी बनेगा, न उसमें प्यार भर पायेंगी, न अच्छे वायब्रेशन भर पायेंगी तो हर मार्ग के लिए व्यर्थ संकल्प बहुत बुरी चीज़ है। शिव बाबा ने हमें स्वदर्शन चक्रधारी बनाया है। बहुत बड़ा शब्द है यह। शास्त्रों में केवल श्रीकृष्ण को सुदर्शन-सुदर्शन कह दिया है। शिव बाबा ने हमें कहा स्वदर्शन चक्रधारी ऐसा दिखाया है हम अपना दर्शन करते हैं इस पूरे चक्र में, इस सृष्टि चक्र में हम क्या-क्या थे यह दर्शन हमें होने लगता है, इसको स्वदर्शन चक्रधारी होना कहते हैं। लेकिन कई लोग परदर्शन चक्र घुमाते रहते हैं, दूसरों का ही चिंतन करते रहते हैं इसको कहते हैं परचिंतन। देखते भी दूसरों को हैं तो अपने को देखना भूल जाते हैं। सोचते भी दूसरों के बारे में हैं तो अपने बारे में सोचना भूल जाते हैं। हमें संकल्प करना है, सुंदर संकल्प करें कि जन्म-जन्म हम दूसरों को देखते आए अब अपने को देखने का तीसरा नेत्र स्वयं भगवान ने हमें दिया है। क्यों न हम अपने को देखें, अपने को ही चेंज करें! दूसरे चेंज हों यह इंतज़ार हम क्यों करें! पहले हम करेंगे तो हमें
बहुत कुछ प्राप्त हो जाएगा। परचिंतन तो हम युगों से करते हैं। लेकिन अब समय है अपना चिंतन करने का। मुझे अपनी उन्नति कैसे करनी है? मुझे भगवान की सभी आज्ञा का पालन कैसे-कैसे करना है? अब मैं ईश्वरीय पथ पर आ गया हँू, भगवान की संतान बन गई हूँ, अब मुझे उसका शो करना है अपने चरित्र से, अपने जीवन से। हमारे सुंदर विचार हमारी पर्सनैलिटी को बहुत सुंदर बनाते हैं। हमारे सुंदर विचार समाज में हमारी पहचान बनाते हैं। हमारे सुंदर विचारों के वायब्रेशन सारे संसार में फैलते हैं।
हम अपने पर गहरी दृष्टि डालें। हमारा समय दूसरों को देखने में दूसरों का चिंतन करने में तो नहीं जा रहा है? कई मनुष्य तो सुंदर स्थानों पर भी आते-जाते हैं ना तो वहाँ भी न जाने क्या-क्या सोचते हैं! क्या-क्या देखते हैं! जिस लक्ष्य से वहाँ जाते हैं उसे तो भूल ही जाते हैं। कौन क्या कर रहा है एक इच्छा बनी रहती है जानने की और जो दूसरों के बारे में जानने की उत्कंठा में लगा हुआ है वो अपने को कभी नहीं जान सकता। वो अपनी शक्तियों को भी नहीं पहचान सकता। परचिंतन करने वाले का चित्त शांत होता ही नहीं, यह तो बिल्कुल क्लीयर बात है। दिखाई देगा गलती वह कर रहे हैं और नुकसान हम उठा रहे हैं। वो गलती करके भी खुश हैं और हम उन्हें देख-देख के परेशान हो रहे हैं। सम्भालें अपने को।
अब भगवान हमारे पास आ गए हैं, उन्होंने हमें सत्य ज्ञान दे दिया है,अभी हम ये गलती नहीं करेंगे। अभी परम सुख प्राप्त करने का समय है। परदर्शन में अपना अनमोल समय व्यतीत करके इस स्वर्णिम अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं देें। हमारी यात्रा अलग है, हमारी मंजि़ल अलग है, हमारा लक्ष्य अलग है इस चिंतन को बढ़ायें। जैसा दूसरे कर रहे हैं अगर हम भी वैसा ही करें तो हममें और उनमें अंतर ही क्या रह जायेगा! क्योंकि दूसरों को देखने से, परचिंतन करने से हमारी वृत्ति खराब हो जायेगी, दृष्टिकोण बिल्कुल बिगड़ जायेगा। जो गुड फीलिंग हैं, ग्रेट फीलिंग हैं वो दबकर नष्ट हो जायेंगी। तो इसलिए परचिंतन के बजाय हम स्व चिंतन की गहराई में चलें, अपने स्वमानों को बढ़ाएं। देखना है तो अपने को देखें। कितना सुंदर अवसर मिला है ये देखने का भगवान को कि वो कैसे अपना दिव्य कार्य कर रहा है! अनेक फिलॉसफी में चर्चाएं हैं-भगवान ने दिव्य कार्य ऐसे किये, ऐसे किये। हम तो उसे देख रहे हैं। इन चीज़ों में मग्न हों व्यर्थ समाप्त हो जाएगा।

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