अपने ऊंचे स्वमान में रहो तो हर समस्या व विघ्न तोहफा बन जायेगा

0
366

सभी को रूहानी नशा व स्मृति रहती है कि हमारे जैसा भाग्य तो देवताओं का भी नहीं है, भले हम ही जाकर देवता बनेंगे। सारे कल्प में संगमयुग ही विशेष युग है। संगमयुग में ही बाबा आकर हमें बाप, टीचर, सतगुरू के रूप में मिलता है। सतयुग में ब्रह्मा बाबा हमारे साथ ही होंगे परन्तु शिवबाबा साक्षी होकर देखेंगे। ब्राह्मणों को सदा चोटी पर दिखाते हैं। चोटी क्यों दिखाते हैं? क्योंकि ऊंच ते ऊंच प्राप्तियाँ एवं ऊंच ते ऊंच स्वमान हमें अभी बाप द्वारा मिलते हैं। जैसे ऊंच ते ऊंच भगवान है, ऐसे ही हम बच्चे भी ऊंच ते ऊंच ही हैं। आप सभी बाबा की आशाओं के दीपक हो ना! वैसे राजा बनना कोई बड़ी बात नहीं है परन्तु अभी हरेक बच्चा अपने मन, बुद्धि व संस्कारों का राजा बने। दादी ने भी वतन में बाबा को बताया कि ”मेरा यह लक्ष्य रहा कि मेरा पुरुषार्थ निर्विघ्न व निर्विकल्प रहे”।
आप हरेक के प्रति शुभ भावना व शुभ कामना रखो, अपने स्वमान में रहो तथा निर्विघ्न व निर्विकल्प रहो। तूफान तो आयेंगे ही परन्तु ऐसा पुरुषार्थ करो कि तूफान तोहफा बन जाये। जैसे राजा के पास कन्ट्रोलिंग व रूलिंग पॉवर होती है। अत: कोई भी समस्या आए, विघ्न आए, विकल्प आए, ये सब उसके आगे एक बच्चा है अत: उन पर विजय प्राप्त करनी है। कई बच्चे कहते हैं दादी जी आपको क्या पता बात ही ऐसी थी, ऐसी समस्या तो कभी आई ही नहीं। अरे, आप भगवान के बच्चे मास्टर भगवान, तो भगवान से भी कोई बात ऊंची होती है क्या? जैसे हम हवाई जहाज में यात्रा करते हैं तो पहाड़ आदि सब चीज़ें छोटी दिखाई देती हैं। इसी प्रकार हम भगवान के बच्चे हैं, राजा हैं तो हर समस्या, विघ्न, पुराने संस्कार छोटे दिखाई देंगे। बाबा की हम बच्चों से आश है कि ये पुराने संस्कार न रहें बल्कि अनादि व आदि संस्कार इमर्ज हो जायें।
कई जो अचानक शरीर छोड़कर चले गये हैं बाबा उन्हें वतन में इमर्ज कर मिलाता है और उन्हें देखकर तरस पड़ता है जब वे कहते हैं कि हमने उस समय पुरुषार्थ क्यों नहीं किया? अन्त समय दो लाइन लगेगी। एक पश्चाताप की और दूसरी प्राप्ति वालों की। जब प्राप्ति वाले के आगे पश्चाताप वाला आयेगा तो उसका क्या हाल होगा? अभी तो कई बच्चे खाने-पीने आदि में मस्त हैं। कई कहते हैं कि वह महारथी भी गलती कर रहे हैं। अच्छा महारथी ने गलती की तो उस समय वह महारथी कहाँ रहा? यदि महारथी की स्टेज होती तो गलती ही नहीं होती। अभी देखो किसी के स्वप्न में था कि दादी जी चली जायेंगी! अभी कोई भी कभी जा सकता है, समय बदल गया है। जैसे जब मकान बनाते हैं और सेन्टर पक्का हो जाता है तो बल्लियों आदि का सहारा निकाल देते हैं। इसी प्रकार जब हम सम्पन्न हो जायेंगे तो जो महारथियों की गलतियों की लाठियों के सहारे लिए हुए हैं उन्हें निकाल दो। बाबा-बाबा कहते अपने पर अटेन्शन रखो।

बाबा तो शिक्षा देंगे , करना तो हम बच्चों को ही है ना। जो करेगा सो पायेगा। अपना पुरुषार्थ आपेही करना है। जब धर्मराज पुरी में जायेंगे तो उस समय ब्रह्माबाबा देखता रहेगा, कुछ करना है। अभी जो भाग्य मिला है उस पर पूरा अटेन्शन देना है। अभी जो सेवा मिली हुई है, उसकी चिन्ता नहीं हो। स्थूल यज्ञ में मु_ी भर स्वाहा करते तो उसका भी पुण्य मानते हैं। यज्ञ सेवा का महत्व है। सेवा चाहे दीदी दादी ने दी है, सदा यही समझो कि यज्ञ पिता की आज्ञा मान कर यज्ञ सेवा कर रहा हूँ। इसका भी नशा, निश्चय और उमंग-उत्साह रखो। अटेन्शन देकर अच्छी ते अच्छाी सेवा करते रहो तो हमारा भाग्य जमा होता रहेगा। बाबा चाहते हैं सभी खुश रहें। मन की गति को और कोई नहीं जानता है, आप स्वयं ही जानो। हरेक अपने से पूछो मैं आधा घण्टा योग में बैठा, योग लगाया या युद्ध किया? अपना चेकर खुद बनो। यह नशा रखो कि हम ही कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हैं। महावीर बने हैं और बनेंगे। सुनना तो सहज है, अभी बनना है और तीव्र पुरुषार्थ करना है। व्यर्थ की बातें नहीं सुनो। कोई सुनाये तो उस समय अपने से पूछो कि क्या मैं किचड़े का डिब्बा हूँ जो मुझे सुनाते हैं? ड्रामा की बिन्दी लगाने की प्रैक्टिस करते करते फुलस्टॉप लगाना पक्का हो जायेगा। डबल फारेनर्स ओ.के .। ओ.के. के बीच में लाइन नहीं डालना। सदा यह गीत गाते रहो वाह बाबा वाह! वाह मेरा भाग्य, वाह ड्रामा वाह!

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें