तन की बीमारी में मन को बीमार होने न दें…

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घर के माहौल को खुशनुमा रखें, पीसफुल रखें, पॉजि़टिव रखें यह सबका परम कत्र्तव्य है। बातें तो आयेंगी और चली जायेंगी, लेकिन हमें अपनी मनोस्थिति को नहीं बिगाडऩा है।

मनुष्य का तन उसके लिए सबसे अधिक मूल्यवान है। तन आत्मा का व्हीकल है, साधन है। इसके द्वारा ही आत्मा सम्पूर्ण पुरुषार्थ और साधनायें करती है। तन अगर बीमार हो जाए तो मनुष्य बहुत निगेटिव हो जाता है, घबरा जाता है। तो आज हम बीमारियों पर अपनी चर्चा को फोकस कर रहे हैं। बीमारी तो सभी को आती है। थोड़े लोग हैं संसार में जो बिल्कुल स्वस्थ हैं, क्योंकि बीमारियों के बहुत सारे कारण डॉक्टर्स भी गिनाते हैं। खान-पान, सब्जी और अन्न में डालने वाली खाद आदि। मन के तनाव, लाइफ स्टाइल गलत, टेन्शन में रहना, ज्य़ादा सोचना और पूर्व जन्मों के कर्मों का इफेक्ट भी इसमें इम्र्पोटेंट(महत्त्वपूर्ण) भूमिका निभाता है। किस मनुष्य के साथ कितनी दुआएं हैं और कितनी बद्दुआएं हैं यह भी इम्र्पोटेंट फेक्टर है। बीमारी आ गई है तो पहला संकल्प करेंगेे आई है तो जायेगी। ज्य़ादा न सोचें, चेक करेंगे अपने को। कोई बीमारी बहुतों को कोई एक गंभीर बीमारी लगी हुई है और डॉक्टर्स के मतानुसार वह जीवन भर चलने वाली है। आप इस संकल्प को भी चेंज करें। कईयों ने क्योंकि मान लिया होता है जीवनभर यह बीमारी चलेगी। घुटने दर्द हो गये ये तो रहेंगे, हाई बीपी हो गया अब तो रहेगा, हार्ट की बीमारी हो गई अब तो रहेगी। कई हैं ऐसी बीमारियां माइग्रेन हो गया तो चलता रहेगा, नहीं। जो आया है सो जायेगा। एक ही हमारा संकल्प हमें अनेक व्यर्थ के तूफानों से मुक्त करेगा, क्योंकि अगर हम ज्य़ादा सोचते हैं तो उसका बुरा इफेक्ट हम पर आता है। हम ठीक होने वाले होते हैं उसमें बाधा पड़ जाती है। दवाइयां भी ठीक से अपना असर नहीं डालती क्योंकि हमारा निगेटिव फोर्स दवाइयों के पॉजि़टिव फोर्स को काटने लगता है। सावधान रहें, हमने बहुत सारे प्रयोग किये और कराए हैं। हमको भी बीमारियां आती हैं, सबको आ रही हैं, लेकिन कभी यह सोचना ही नहीं कि जीवन भर चलेगी। समाप्त होगी, हम बहुत पॉजि़टिव हो जायेंगे, हम बहुत खुश रहेंगे, हम किसी भी तरह के तनाव को, परेशानी को मन मंदिर में प्रवेश नहीं होने देंगे। एक आत्मा घर से चली गई और आप मानसिक रोगी बन गए। और कुछ बीमारी ऐसी आ जाती है युवकों में आई है, बच्चों में आई है। हम देखते हैं बच्चों के हार्ट में छेद है, छोटा बच्चा उसको कैंसर है, डायबिटीज़ है, वो कुछ कर ही नहीं पा रहा। माँ-बाप शुरू से ही चिंतित हो जाते हैं। बच्चे होने की खुशी समाप्त हो जाती है। उसको जीवनभर सम्भालना है। कईयों के घर में दिव्यांग बच्चे पैदा हो जाते हैं, लेकिन कई लोग हिम्मत नहीं हारते, सोचते हैं भगवान ने भेजा है इसकी हमें सम्भाल करनी है। इसकी सम्भाल करना ही हमारे लिए पुण्य का कर्म होगा। खुश रहते हैं, प्यार देते हैं, बच्चे की संभाल करते हैं और व्यर्थ संकल्प नहीं आने देते। नहीं तो उसे देख-देखकर कैसा लगता है लोगों को या माँ-बाप को, निगेटिविटी भी बढ़ती जाती है, घर में कमज़ोरी और कुछ उलझन भरा वातावरण होता जाता है। मैं सभी को यह बात कहता आता हँू कि घर के माहौल को खुशनुमा रखें, पीसफुल रखें, पॉजि़टिव रखें यह सबका परम कत्र्तव्य है। बातें तो आयेंगी और चली जायेंगी, लेकिन हमें अपनी मनोस्थिति को नहीं बिगाडऩा है। घर के माहौल को ज़हरीला बनने नहीं देना है। मान लो बीमारी ऐसी आ गई कि जिसका इलाज नहीं मिल रहा या जिसमें खर्च बहुत है और आपके पास उतना पैसा भी नहीं है। अब जो नहीं हैं उसमें तो आप क्या करेंगे! जितना अपने को पॉजि़टिव रखेंगे उतना हमारा मार्ग साफ होता जाएगा। कई मुझे बताते हैं पैसा तो था नहीं हॉस्पिटल में गए तो कई लोग मदद करने वाले आ गए। रास्ता बता दिया और हमारा यह इलाज बहुत थोडे पैसे में हो गया। ठीक होकर घर आ गये। बहुत खुशी हुई, भगवान को भी धन्यवाद देते रहे। इसीलिए हमें कभी भी किसी बीमारी में निगेटिव तो बिल्कुल नहीं होना है। लेकिन कुछ चीज़ों को हम स्वीकार लें, ऐसे में यही सोचना है कि मेरी लाइफ बहुत इम्र्पोटेंट है। अपने बच्चों को भी बहुत पॉजि़टिव करें। उन्हें हिम्मत दें, साहस दें तो हमेशा पॉजि़टिव रहेंगे और बीमारियों पर इसका बहुत सुंदर इफेक्ट दिखाई देगा। बीमारियां भागती नज़र आयेंगी। तो सभी भाई-बहनें अपने को व्यर्थ से मुक्त करने का एक श्रेष्ठ संकल्प रखें। हमारी एकाग्रता हमें परमात्म सुखों का अनुभव कराती है। मनोबल को बढ़ाएगी, हर चीज़ आपको सहज प्राप्त होने लगेगी। आयु को बढ़ाएगी तो आपकी बीमारियों को भी समाप्त करने में मदद करेगी।

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