भोराकलां : मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती का 58 वां स्मृति दिवस बड़ी श्रद्धा और भावना के साथ मनाया गया।

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ज्ञान और पवित्रता की साक्षात प्रतिमूर्ति थी मां जगदम्बा
बड़ी श्रद्धा से मनाया गया मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी का 
58 वां स्मृति दिवस
ओम शांति रिट्रीट सेंटर में हुआ भव्य आयोजन
हजारों की संख्या में इकट्ठे हुए संस्था के सदस्य

भोराकलां गुरुग्राम,हरियाणा:
ब्रह्माकुमारीज के गुरुग्राम, भोराकलां स्थित ओम शांति रिट्रीट सेंटर में मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती का 58 वां  स्मृति दिवस बड़ी श्रद्धा और भावना के साथ मनाया गया। मां जगदम्बा सरस्वती जिन्हें ओम राधे के नाम से भी जाना जाता था। दिव्य गुणों, श्रेष्ठ आचरण एवं मातृत्व स्नेह के कारण सभी उन्हें प्यार से मां कहते थे। ओम राधे ने मात्र 17 वर्ष की आयु में अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वरीय मार्ग में समर्पित कर दिया। विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति ममता और करुणा की भावना से पूर्ण मां जगदम्बा ब्रह्माकुमारीज संस्था की प्रथम प्रशासिका बनी।

मातेश्वरी जगदम्बा धैर्यता की अवतार थी –

ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अतिरिक्त महासचिव राजयोगी बृजमोहन ने कहा कि मातेश्वरी जी धैर्यता की देवी थी। उन्होंने कहा कि मैंने मातेश्वरी जी को कभी जल्दबाजी करते हुए नहीं देखा। उनके साथ के अनुभव व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि शांति का अवतार थी। कोई भी उनके सामने आते ही शांत हो जाता था। मातेश्वरी जी अपने से छोटों को भी बहुत सम्मान सूचक शब्दों से संबोधित करती थी। मां जगदम्बा का जीवन सादगी और सरलता संपन्न था।

मातेश्वरी जी की स्मृति मात्र से ही होता है मन भाव विभोर –

ओआरसी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने अपने बाल्यकाल की यादों को ताजा करते हुए बताया कि उनके मन पर मातेश्वरी जी के आदर्शो की अमिट छाप पड़ी है। उन्होंने कहा कि आज भी उनकी स्मृति मात्र से मन भाव विभोर हो जाता है। मातेश्वरी जी का हर बोल प्रेरणादायक होता था। मातेश्वरी जी का यही कहना था कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो। उनकी मुख्य शिक्षा यही थी कि हर घड़ी अंतिम घड़ी समझो।

मातेश्वरी जी को देखते ही मिली उनके जैसा बनने की प्रेरणा –

ब्रह्माकुमारीज संस्था के फरीदाबाद सेवाकेंद्रों की निदेशिका बीके उषा दीदी ने कहा कि मातेश्वरी जी को देखते ही मुझे उनके जैसे बनने की प्रेरणा मिली। जगदम्बा सरस्वती जी के साथ के अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि मातेश्वरी जी के जीवन को देखकर यही लगता था कि जीवन है तो यही है।

कार्यक्रम में बीके जय प्रकाश एवं बीके मधु ने भी मातेश्वरी जी के साथ के अनुभव साझा किए। कार्यक्रम में मातेश्वरी जी के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंग गीत, कविता एवं नाटक के माध्यम से व्यक्त किए गए। कार्यक्रम में दिल्ली एवं एनसीआर से संस्था के हजारों सदस्यों ने शिरकत की।

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