आज हम आपको एक ऐसे आयाम की तरफ ले चलते हैं मनुष्यों की जो हमेशा हमको एक सीख दे जाती है, लेकिन वो सीख लेने के बाद भी हम बदलते नहीं हैं। इस दुनिया में हर एक मनुष्य की अपनी-अपनी विशेषता है। और सभी अपनी-अपनी विशेषताओं के आधार से कार्य भी कर रहे हैं। लेकिन उस विशेषता को पूरी तरह से अपनाना, अब यहां हम उसे अपना तो लेते हैं लेकिन बार-बार उस चीज़ का उदाहरण देते हैं, उस व्यक्ति का उदाहरण देते हैं कि ये चीज़ मैंने इनसे सीखी। बहुत अच्छी बात है, अगर हमने एक बात किसी से सीखी है तो सीखने का एवजा ये है कि मैं एक-दो बार मिलूं तो उसकी तारीफ करूं। लेकिन बार-बार जिससे सीखी है अगर उसकी तरफ मेरी बुद्धि जाये या हमारा मन उस बात को बार-बार सोचता है तो इसका मतलब ये हुआ कि मैंने जो आज तक सीखा है, वो उसके प्रभाव से है और उसे जिससे सीखा है उससे हमारा लगाव भी है। तो हमेशा आप उससे मिलना चाहेंगे, उसको देखना चाहेंगे, उससे बात करना चाहेंगे, उससे बात कर-करके अपने आप को मेंटेन भी करना चाहेंगे। तो इससे एक बात और जग-ज़ाहिर हो जाती है कि जिस चीज़ से हम सब इतने समय से दूर रहे, इतने समय तक जिसको हमने नहीं समझा, नहीं जाना, नहीं पहचाना, उस चीज़ पर हम सभी इतना ज्य़ादा क्यों आमादा हैं, क्योंकि आज तक हमको किसी ने बताया नहीं कि सभी जिससे भी गुण लेते हैं, वो गुण परमात्मा के दिये हुए हैं। आज जो परमात्मा ने गुण और विशेषताएं दी हुई हैं उसको किसी व्यक्ति का मान लेना हमारी कमज़ोरी सिद्ध करता है। और जब उस कमज़ोरी को बार-बार सोचते हैं तो हमारा व्यर्थ भी चलता है। जैसे एक उदाहरण ले लें कि जिस व्यक्ति से आपने जो कुछ सीखा, कुछ भी सीखा है, कुछ भी सुना है, कुछ भी देखा है, उसकी आप ऐसी कोई हरकत देख लो जिससे आपका मन डिस्टर्ब हो जाये, मन परेशान हो जाये, तो उस समय आप क्या करोगे? जो कुछ आपने सीखा है ना, उसको आप छोडऩा चाहेंगे। कि मैंने पता नहीं क्यों इसको अपना आदर्श बनाया, क्यों इसको अपने साथ जोड़ा! इसीलिए परमात्मा एक बात हम सबको सिखाते हैं कि व्यर्थ चलने का मात्र एक कारण है, वो है लगाव या प्रभाव या झुकाव। क्योंकि जिसके प्रति हमारा झुकाव होता है ना, उसकी याद हमको बहुत आती है। और साइंस के नियम अनुसार जिस व्यक्ति की हमको याद आती है, उसके सारे गुण-अवगुण, उसकी परिस्थिति, उसकी हर एक बात कुछ दिन में हमारी हो जायेगी। क्योंकि साइंस कहता है कि सकारात्मक, नकारात्मक को अट्रैक्ट करता है, लेकिन आध्यात्मिकता कहती है कि सकारात्मकता तो सकारात्मकता को अट्रैक्ट करती है और नकारात्मकता, नकारात्मकता को अट्रैक्ट करती है। तो जब हम किसी भी व्यक्ति के प्रभाव में होते हैं तो कुछ दिनों में हम वैसे ही बनने लग जाते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हम उस चीज़ को पूरी तरह से अपना लेते हैं। और अपनायेंगे ही, ये नियम है। ये विज्ञान का नियम है। ये आध्यात्मिकता का भी नियम है। तो इसलिए हम क्यों ना अपने आप को सम्भालें। उन गुणों और शक्तियों को परमात्मा से लें, परमात्मा से महसूस करें। सिर्फ एक बल और एक भरोसे के साथ परमात्मा से जुड़ें और उससे सारे गुण लेकर अपनायें ताकि हमारे अंदर जो बल आये, उसका जो आधार हो, वो हमेशा शक्तिशाली हो। उसका प्रभाव भी हमारे ऊपर पड़े तो हमको हमेशा पॉवर मिले, शक्ति मिले। कमज़ोरी फील न हो। किसी भी तरह से हम खुद को परेशान फील न करें। तब जाकर कहा जायेगा कि हमने कुछ कार्य किया। तो इस तरह से व्यर्थ और समर्थ संकल्पों की सोच को बदलना है तो सबसे पहले हमको इस बात का ध्यान रखना है कि कहीं मेरा कोई छोटा-सा भी लगाव तो नहीं है। जहाँ लगाव है वहाँ व्यर्थ है। पक्का व्यर्थ है। इसीलिए शक्तियां हमारी क्षीण होती जा रही हैं। क्योंकि कहीं न कहीं, किसी न किसी को हमने अपना आदर्श बनाया हुआ है। तो सम्भालो खुद को और निकलो इस प्रभाव से।