स्वयं ही स्वयं का निरीक्षण कर जीवन में आगे बढ़ते जायें…

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जीवन में पैदा हुए तब से तो हम कहते हैं ना — ‘हर क्षण, जन्म से लेकर मृत्यु की ओर चल रहे हैं।’ तो बीच में कुछ रूक कर देखने की, ऑब्ज़र्व करने की, सोचने की आवश्यकता है कि — ‘हाँ जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं, क्या आवश्यक है, किसमें फायदा है?’

जिस लक्ष्य से हम बाबा के बने हैं, वो लक्ष्य रोज़ याद रखना है। ताकि इधर-उधर न हो जायें। जिस निश्चय और नशे से ज्ञान में चले हैं, जिस उमंग-उत्साह से हम योगी-तपस्वी बने हैं, उसमें ज़रा भी ढीलापन नहीं आना चाहिए। चलते-चलते थोड़ा ढीलापन आ जाता है ना, इधर-उधर अटेंशन जाने लगता है, अलबेलापन आने लगता है। तो बाबा कहते हैं— ‘दुनिया में तो बहुत झंझट हैं, अनुभवी आप सब हैं ही।’ घर-गृहस्थी की कितनी बातें हैं, नौकरी-धन्धे की भी कितनी बातें हैं। जीवन की मूल बातों पर विचार करते हैं कि अंत में तो आत्मा को क्या साथ लेकर जाना है? बेशक जीवन में, यज्ञ में, सेवा में, समाज में, धन, साधन, सुविधायें सबकुछ चाहिए। और उसी के लिए आप मेहनत करते हैं, कमाते हैं। वो तो आवश्यक है। पर दिन-रात केवल उसी में लगे रहेंगे तो हम आत्म-कल्याण, आत्म-उन्नति के लिए और कुछ नहीं कर सकेंगे। बीच-बीच में कुछ समय डिटैच होने से, न्यारे होने से, हम शान्ति से सोच सकते हैं कि जो कुछ दिन-रात हम कर रहे हैं, उसमें से क्या ज़रूरी है? कितना आवश्यक है? बहुत ट्रैफिक जाम हो जाता है तो कुछ भी हौचपौच, संघर्ष होने की सम्भावना हो जाती है। पर ट्रैफिक कंट्रोल क्ररेड सिग्नलञ्ज हो जाता है तो क्रस्टॉपञ्ज हो जाते हैं। फिर चैनलाइज़ कर देते हैं तो परिस्थिति ठीक रहती है। तो जीवन में पैदा हुए तब से तो हम कहते हैं ना — ‘हर क्षण, जन्म से लेकर मृत्यु की ओर चल रहे हैं।’ तो बीच में कुछ रूक कर देखने की, ऑब्ज़र्व करने की, सोचने की आवश्यकता है कि — ‘कहाँ जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं, क्या आवश्यक है, किसमें फायदा है?’ यह हरेक को सोचने की आवश्यकता है। जब तक हम डिटैच होकर अपने आपको नहीं देखते तब तक अपने आप में क्या ठीक करना है वो पता नहीं चलता है।  एक बात मैं आप सभी को बताना चाहती हूँ, एक कम्पनी के मैनेजर्स का ग्रुप यहाँ आया था, मैनेजमेंट ट्रेनिंग के लिए। उसमें एक मैनेजर जो खुद भी बुद्धिवान था। दो-तीन क्लास करने के बाद उसने कहा कि मेरे पास भी ऐसे बहुत अच्छे-अच्छे विचार हैं जैसे आप सब बता रहे हैं, लेकिन मेरी कम्प्लेन है कि मुझे कोई सुनता नहीं है। तो हम सभी ने उनको कहा कि— ‘भाई, नेक्स्ट क्लास में आप हमें भी नहीं सुनिये और बाहर कैम्पस में, साइलेंस में वॉक करिए, गार्डन में जाइये, और स्व-निरीक्षण करिये, अपने आपको आब्ज़र्व करिये, देखिये, कि क्यों लोग आपको सुनते नहीं हैं? शाम को क्लास में वो आये, बड़े खुश नज़र आ रहे थे। हम सबने पूछा कि आपको अपने प्रॉब्लम का सॉल्यूशन मिला? उन्होंने कहा कि— हाँ, जो मैंने एक घंटा साइलेंस में वॉक किया, अपने आपको देखा, तो मुझे समझ में आया कि लोग मुझे क्यों नहीं सुनते हैं? क्योंकि मैं ही किसी की नहीं सुनता हूँ। उनको ये इगो था, इसलिए वो किसी की सुनते नहीं थे। तो जब हम किसी की नहीं सुनेंगे, तो हमारी कौन सुनेगा? हम सभी ज्ञान मार्ग में चल रहे हैं, रोज़ क्लास-योग कर रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, बाबा के मददगार साथी बच्चे हैं, पर हम अपने आपको देखें कि किस लक्ष्य से हम बाबा के बने थे, और उसी लक्ष्य की दिशा में हम चल रहे हैं? ज्ञान-योग करके हम क्या बनना चाहते हैं? बाप समान पतित से पावन बनना और बनाना चाहते हैं ना! पावन बनने का लक्ष्य है? आत्मा की स्थिति हिलती कब है, जब कोई-न-कोई माया का आकर्षण आता है, तो अपसेट होते हैं। अवस्था बिगड़ गयी, माया का तूफान आ गया, संगदोष लग गया, है ना! जब हम कोई-न-कोई विकार के प्रभाव में आते हैं, तो अवस्था हमारी डगमग होती है। मूड ऑफ होता है, खुशी गायब होती है, इच्छायें मन में उत्पन्न होती हैं और आकर्षण में आते हैं। फिर हम लक्ष्य को याद करते हैं कि लक्ष्य क्या है? हमें क्या चाहिए? तो हमें चाहिए — सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान, शक्ति। परन्तु हमें सत्य चाहिए, शुद्ध चाहिए। बनावटी नहीं चाहिए। वहाँ ही तो रिलेशन टूटते हैं, फिर निराशा आती है कि झूठा प्यार निकला, धोखा किया। तो आत्मा ओरिज़नली सत्य है, शुद्ध है, अविनाशी है। इसलिए आत्मा को जो कुछ चाहिए- वो भी कैसा चाहिए? सत्य चाहिए, शुद्ध चाहिए, अविनाशी चाहिए। टेम्पररी या मतलब से नहीं चाहिए। तो बाबा मिले, सत्य ज्ञान मिला, सही मार्ग मिला, तो हम सबने अपने जीवन को परिवर्तन किया। बाबा से हम सत्य, शुद्ध, सात्विक आनन्द प्राप्त कर रहें हैं। क्योंकि जब तक सही ज्ञान बुद्धि में नहीं, जीवन की परिस्थितियों को भी हम यथार्थ समझ नहीं सकते। बिना ज्ञान आप अचल-अडोल नहीं रह सकते। इसलिए हमें स्वयं ही स्वयं को समझाना है। स्वयं ही स्वयं का निरीक्षण कर जीवन में आगे बढ़ते जाना है। हमारा सौभाग्य है कि हमें बाबा रोज़ सत्य ज्ञान देते है। और हम ले रहे हैं। क्ति में क्यों अवस्था नहीं बनीं, बहुत शास्त्र सुनते थे, बहुत कथायें सुनते थे, बहुत गुरुओं के प्रवचन सुनते थे, क्योंकि बेसिक नहंी ना! मूल चीज़ें नहीं पता। कथायें सुनाते है, कहानियायें सुनाते है, मूल्यों के व्यैल्यूज़ कि बातें सुनाते है पर, बिना आध्यात्मिकता, गुण भी टिक नहीं सकते। क्योंकि गुणों का कनेक्शन तो आत्मा से है ना? गुण तो आत्मा में धारण होते है। तो रोज़ सुबह हम बाबा की सुनते है, वो मूल सत्य-ज्ञान बाबा हमें देता है। बिल्कुल सरल शब्दों में, सरल तरिके से बाबा समझाते है। पर? सत्य बातें समझाते है। बाकी और किसी के पास, बाबा कहते है ना कि — जैसे योग है, योग की लम्बीं चौड़ी विधि, रिती, आसन, प्राणायम, साधन ये सब बतायेंगे। पर किसको योग किसके साथ लगाना है वो कोई बता नहीं सकता। वहाँ वो यही बता देते है कि — आप अपने-अपने इष्ट को याद करो। परम कौन है? वह पता ही नहंी। तो जीवन है माना परिस्थितियाँ तो आनी ही है। हम सबको बाबा ने समझा दिया है — क्रक्रयह ‘कलियुग’ अन्त का समय है, जितनी ऑड़, विचित्र परिस्थितियाँ हो सकती है, वो अभी होगी।” है ना! बाबा कहते है ना — ‘अति पर जाकर अन्त होना है’। ‘अति’ का अन्त होता ही है। तो ये भी सब अति पर जायेंगा। तो कहते ना बीज़ खयालों में, ख्वाबों में नहंी होगा ऐसा-ऐसा हो रहा है। और वो आप सब जानते भी है — क्या-क्या संसार में हो रहा है। हम सबके सामने भी ये ‘परिस्थितियॉं’ क्योंकि हम इस दूनिया के बिच में है। इन परिस्थितियों को सामना हमें भी करना होगा। तो ये अन्त का समय है। अति के अन्त का समय है। इसलिये रोज़ की मुरली में आप देखें कोई भी मुरली ऐसी नहीं होगी जिस में बाबा ने विनाश की बात न कहीं हो। रोज़ कुछ-न-कुछ, कुछ-न-कुछ बाबा बताते है। कई भाई बहनें सोचते थे कि बाबा बरसों से कहते है, होता तो कुछ नहीं है। करके अलबेले हो जाते। बाबा कहते है पर होता तो है नहीं। पर कोई पुछ के तो होना नहीं है, करोना जैसी बिमारी आयेंगी और ऐसा लाकडाउन होगा, ऐसी-ऐसी, जीवन की, परिवार की, नौकरी-धन्धें पर असर आयेंगा किसी ने सोचा था? कितने-कितने धनाढ्य देश, कितनी टेक्नोलोजी में एडवान्स देश, कितने साइन्स में मॉडर्न बने हुए देश, पर ‘सारे’ एक लाइन मे आ गये। सबके सामने परिस्थितियाँ। तो परिस्थितियाँ तो आनी ही है। है ना? बाबा के बने तो भी हमारे सामने ऐसी परिस्थितियाँ क्यों आती है, सोचते है ना ऐसा कई? भाई, बाबा के बने तो आपने बहुत बड़ा तीर मार दिया क्या? हम तो अपने सुधार और उद्धार के लिए बाबा के बने है। भगवान के बने है तो हमने जो हिसाब किताब पूर्व जन्मों में बनाये, वो मा$फ कर दिये जायें क्या? हिसाब-किताब तो चुकाने ही है। कर्म का सिद्धान्त तो बहुत अचल-अड़ौल है। इसलिए अचल-अडौल स्थिति रखनी है, तो कर्मं की गति को भी अच्छी तरह समझ के चलना है। कई सोचते है ना — कि भाई मेरे सामने ही ऐसी परिस्थितियाँ क्यों आती है? मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है। वो दूसरो के साथ तो बहुत अच्छा चलता है मेरे साथ ही ऐसा व्यवहार क्यों करता है? उसी में ही उसका जवाब़ है कि मेरे साथ ही क्यों करता है, बताओ? कोई हिसाब है ना तब तो करते है अगर वो मूल रूप से ही खराब़ व्यक्ति होता तो सबके साथ बुरा व्यवहार करता। पर वो दूसरों के साथ अच्छा कर रहा है और मेरे साथ नहीं कर रहा है। मीन्स मेरा और उसका हिसाब़ ठीक नहीं है। तो परिस्थितियों को हम टाल नहीं सकते। हॉ, हम क्रियेट न करें अपने व्यवहार से, अपने कर्म से, नये हिसाब किताब खड़े न करें ये हमारे अन्दर कण्ट्रोल है। और ये तो बाबा ने आपको सिखाया है कि कैसे आपको सोचना है, कैसा बोलना है, कैसा देखना है, कैसा व्यवहार करना है, सबके साथ कैसा चलना है? वो तो बाबा ने विधि हमें सिखाई है। और रोज़ सिखाते है वही। ताकि नये हिसाब किताब हम न बनायें, पर बने हुये हिसाब किताब तो हमें चुकाने ही है। तो अगर ये समझ बुद्धि में है तो कैसा भी कोई उट-पटाँग व्यवहार करें, या कैसी भी बाते आयें, हम घबरायेंगे नहीं। रिअॅक्ट नहीं करेंगे। रिअॅक्ट नहीं करेंगे — कि उसने ऐसा किया तो मैं भी ऐसा करूँगी! दो बोला उसने, मै चार बोलूंगी। है ना! नहीं। हम कौन है और हमे भगवान ने क्या सिखाया, अगर ये रियलाइज़ेशन हर कदम है, तो आपका व्यवहार ऊँचा ही रहेंगा। क्योंकि आप भगवान के बच्चे है। आपको ये महसूसता है। क्यो दादी तीन बार ओम् शान्ति बुलाती थी? हाँ! क्या अर्थ कहती थीं… मैं कोन हूँ? मेरा कौन है? मुझे क्या करना है? यही तो महसूसता चाहिए। लौकिक में जब आप महसूस करते है कि भाई हम फलानें कुल के है, इस जाति के है, इस खानदान के है, हाँ! हमारा तो बहुत बड़ा मान मर्तबा है, ये महसूसता होती है, तो उस रोयाल्टी से व्यक्ति चलती है ना? कि भाई हमारे घर में ऐसा नहीं हो सकता है, हमारे खानदान में ऐसा नहीं चलता है, हमारे समाज में तो ऐसे नियम है। है ना? वो लौकिक महसूसता है। ये अलौकिक महसूसता है। कि हम कोन है, किसके बच्चे है और किस कार्य के लिए अब हम निमित्त बने है। तो अगर ये रियलाइज़ेशन है तो कोई, कोई कैसा भी हो, कैसा भी स्वभाव-संस्कार हो, व्यवहार हो। मुझे कैसे व्यवहार करना है? बेशक् मुझे कोई बुद्धू नहीं बनना है, मूर्ख नहीं बनना है, पर जो जित करना है वो भी ढ़ंग से करना है। है ना? समझदारी से, अलौकिकता से करना है। तो अगर खुद ज्ञान स्वरूप है तो अप इस प्रकार से सोचेंगे। रिअॅक्शन नहीं आयेंगा और आपका व्यवहार ठीक चलेंगा। पर ज्ञान हो। क्यों बाबा, दादीयाँ, बहने कहती है कि — ‘रोज़ क्लास करों, रोज़ मुरली सुनो’। अभी भी सण्डें की मुरली में क्या था? शुभ चिंतक कौन बन सकेंगे? जो ज्ञान-रत्नों से भरपूर होगा। तो हमारी मनसा ठीक रहेंगी। उसने ऐसा-ऐसा बोला मैं डिस्टबऱ् हो गयी, पर क्युँ हो गयी? मुझे क्यों होना है? बोला तो उसने ना, उनकी वाणी खराब थी। मुझे क्यों अवस्था बि$गाडनी चाहिए? मुझे क्यों स्वीकार करना चाहिए। मैने ऐसा किया नहीें है, मै ऐसी हूँ नहीं। है ना! तो मैं क्यों स्वीकार करूँ? बाबा कहते है ना — आपस में आप एक दो को कुछ कहते है, आप तो बिल्कुछ बुद्धू है, कुछ आता नहंी है। तो वो टाइटल एकदम लग जाते है कि— ‘मेरे को बुद्धू कहा!’ क्या समझते है? हाँ! मेरे को मूर्ख कहाँ, मनुष्य का दिया हुआ टाइटिल लग जाता है और बाबा कितने टाइटिल देते है? वो नहीं लगता है। वहाँ कहेंगे मुझे बुरा लग गया, क्योंकि हमने अपना लेवल अभी भी वहीं साधारण, लौकिक रक्खा है। हम आपस में ऊँचे नहीं उठे। आपस में कॉमन ही बने रहते है तो एक दो की बाते लग जाती है। पर आप ज्ञान स्वरूप बन जाओ, सेन्सीबुल बन जाओ, समझदार बन जाओ, आप अपनी रूहानियत में स्थित हो जाओ। भल हमें मिलके पुरुषार्थ करना है, बाबा कहते है — संघटन में रहते हुये, व्यक्तिगत पुरुषार्थ में रहों अपने आपको ज्यादा रूहानी बनाओ, अलौकिक बनाओ, और उसके लिए बाबा ने जो कहा है वो टाइटिल रियलाइज़ करो। कि हम ज्ञानी तू आत्मा है, क्रसत्य-ज्ञानीञ्ज आत्मा है। भल दूनिया में पढ़े लिखे है, पर आत्म-स्थिति को उच्च, शुद्ध, शक्तिशाली, एकरस बनाना वो ज्ञान तो वहा नहीं है ना बेचारों को! हम सत्य-ज्ञानी आत्मायें है। हम परमात्म-योगी है। अब हमारा योग किससे है? किससे है? डायरेक्ट भगवान से। अब हम आत्माओं से, धर्मात्माओं से, देवात्माओं से, मनुष्य आत्माओं से बुद्धि लगा के नहीं बैठे। अब हम अपना योग परमात्मा से लगाकर बैठे है। तो अपनी इस ऊँचाई को, वास्तविकता को, सत्यता को रियलाइज़ करना है। और उस रियलाइज़ेशन में हम रहते है, तो हम अपनी ऊँची अवस्था रख सकते है। कोई आपसे मिलने आते है, आप आत्मअभिमानी है, तो आपको तुरंत उनकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कोई दु:ख की बात करते है, कोई अॅक्सिडेंट की बात करते है, कोई किस प्राब्लेम की आज हरेक के मन में क्या है, बताइयें। यही बाते है ना! वाकही कहेंगे आप अभी कॉमन लेवल पर होंगे तो आपको भी तो वह है, क्या अॅक्सिडेण्ट हुआ, किसको दु:ख हुआ, फलाना हुआ? पर अगर आप आत्मअभिमानी है, बाबा की याद में है, अपने-आपको देहभान से न्यारा रखने की प्रॅक्टिस करते है, तो बात का प्रभाव नहंी आयेंगा। हाँ, जो हुआ उसके लिए हम अच्छा क्या कर सकते है? वो करना है। तो बहुत छोटी-छोटी कॉमन बातों मे हम अपनी स्थिति ऊँची-नीची करते ही रहते है। भाई कोई चीज़ फूट गई, एक चीज़ के पिछे — कैसे फूट गई, क्या हो हुआ, ध्यान नहीं दिया, अरे कितनी व्यॅल्युबुल थी, मै कहाँ से लाई थी। चीज़ के लिए अवस्था बि$गाड देते है। चीज़ व्यॅल्युबुल, या अवस्था व्यॅल्युबुल? ठीक है, हम शान्ति से कह रहे है भाई बहुत अच्छी चीज़ थी, सम्भालने जैसे थी, थोड़ा ध्यान से करिये, है ना! पर अवस्था बि$गाड़ के नहीं। फिर हमारे शब्द भी बिगड़ेगे, उसकी भी अवस्था बिगड़ेगी। फिर घण्टा, दो घण्टा, चार घण्टा प्रभाव चलेंगा; फिर आपस में मुँह चढ़ जायेंगे। बोलना भारी हो जायेंगा, होता है ना ये सब चीज़ें! व्यॅल्युबुल क्या है? हमें हर चीज़ सम्भालनी है। पर चीज़ें हमारे लिए है। हमारी अवस्था उन चीज़ो के लिए नहीं। तो प्रॅक्टिकल, क्योंकि अचल-अडोल बनना है। बाबा कहते है ना तुम्हारा लक्ष्य है, कि अन्त में एक बाबा की याद रहें। है ना! अब जीवनभर जो बातें याद करेंगे, वही अन्त में याद आयेंगा। तो जीवनभर कौन-सी बातें हम याद करते है? देखो अपने आपको। ज्ञान-योग तो रोज़ करते है। पर अन्दर से हमारी लगन, अटेंशन, अटैचमेण्ट कहा है? तो जिस परिवार के साथ हमें दिन-रात उठना है, बैठना है, रहना है, खाना है, जीना है, अवस्था तो वहा ही बिगड़ती है ना ज्यादा! दूसरे तो अच्छे ही लगते है ना! दूसरे तो अच्छे ही लगते है। उनके साथ कहा दिन-रात उठना बैठना है, हर कोई सोचता है, उसका पति अच्छा है, वो कहेंगा उनकी बिवी बहुत अच्छी है। मेरे ही बच्चे ऐसे है, अब वो सोचती उनको क्या पता, मै ही जानती हूँ — कि वो कैसे है। तो अवस्था वैसे तो अच्छी ही रहती है, बिगड़ती कहाँ है? आपसी सम्बन्धों में, घर-परिवार की, और नौकरी-धन्धें की बातों में। तो वहाँ ही हमें लक्ष्य रखना है, अटेंशन रखना है — कि जो हमें मिले है, बिना वजह तो कोई नहीं मिला है, है ना? बाबा कहते है ना — कार्मिक अकाउण्ट से ही मिले है। सोचते है ना मिले तो मिले फिर मत मिलना और कोई जन्म में। हाँ! क्यों? हमारे अपने हिसाब से मिले है। हम सिर्फ उस व्यक्ति को देखते है ना, कि ऐसे है, वेसे है, कैसे है, वहाँ हम भूल जाते है कि हम खुद भी कैसे है? हम खुद भी कैसे है, हमें भी कोई सहन कर रहा है। हम से भी कोई अॅडजस्टमेंण्ट कर रहा है। क्योंकि हम भी परफेक्ट नहीं है ना! मै भी परफेक्ट नहंी हूँ। तो मै दूसरे के लिए कैसे सोच सकती हूँ कि ऐसे है, वैसे है, कैसे है। हम भी तो कुछ है ऐसे टेढ़े-मेढ़े। तो जब सेल्फ रियलाइज़ेशन — कि हम खुद कैसे है? हम भी परफेक्ट नहीं है। हमारे में भी कोई न कोई कमियाँ है। उसमें एक है, मेरे में दूसरी है। तो अगर सेल्फ रियलाइज़ेशन हमें क्लियर है, तो हमें फिर वो विचार नहीं आयेंगे कि ऐसे है, कैसे है। ठीक है। हमें दोनों तर$फ से लक्ष्य रहें क्रअॅडजस्टमेंण्ट काञ्ज। कुछ हम भी अॅडजस्ट करें, कुछ और भी अॅडजस्ट करें। है ना? दोनों तर$फ से होता है तो इज़ीली हम मिल के चल सकते है। पर शुरुआत तो खुद से ही करनी होती है। जिम्मेवार हम अपने ही बन सकते है, दूसरे के तो बन नहीं सकते। तो जितना हम आत्मस्थिति में रहते है, और अपनी वास्तविकता — जो मुझ आत्मा के गुण, स्वभाव-संस्कार, शक्ति है, उसकी क्लियर मुझे महसुसता है तो मै दूसरों को भी अण्डरस्टैण्ड कर सकती हूँ। और मिल के चल सकती हूँ। बाबा ने यह पाठ तो सिखाया है ना हमें? कि वेराइटी ड्रामा है, वेराइटी आत्मायें है, हर आत्मा का स्वभाव-संस्कार अपना-अपना है। तो प्रॅक्टिकली हम अपने-आपको विभिन्न स्वभाव-संस्कार वाली आत्माओं के बीच भी — हम अपने-आपको ठीक, एकरस रख सकते है। हम ज्यादा डिस्टर्ब नहीं होंगे। है ना? ये तो फस्र्ट लेवल है। है ना? उसको तो पहले क्रॉस करना है। फिर परिस्थितियाँ है। गर्वनमेण्ट के तरफ से आती है, प्रकृति की तरफ से आती है। परिस्थितियाँ तो आती है ना, नौकरी में, धन्धें में, बिज़ीनेस में, सब में। तो वहा भी हमें हिम्मत से, धिरज से और योगबल से चलना है। फेस तो इन पॉवर्स से करना है ना? परिस्थिति हर किसी के सामने आती है पर कोई व्यापारी टेन्स हो जाता है, तनाव में आ जाता है, कोई डिप्रेस हो जाते है, कोई हँसी-खुशी से पार कर देते है। परिस्थिति हर किसी के सामने आती है, पर अपनी आन्तरिक, आत्मस्थिति से हम उनको पार करते है। उस समय डिस्टर्ब हो गये, टेन्स हो गये, हील हो गये, तो बाबा कहते है ना — क्रफिर सोल्यूशन नज़र नहीं आयेंगा।ञ्ज जब कोई भी परिस्थिति आती है तो, शान्ति और धीरज़ से हमें उनका सामना करना होता है। हम तो क्रघबरा गये!ञ्ज घबरा गये तो फिर निर्णय नहीं कर पायेंगे। जब घबरा गये, हम तो डिस्टर्ब हो गये, तो फिर डिसीजन कैसे लेंगे? ठीक है, परिस्थिति आई है, इसलिए ये जो रोज़ हमें ये न्यारा रहने कि प्रॅक्टिस बाबा कराते है ना! फिर रोज़ देहभान से न्यारे रहो। रोज़ अपने क्ररोलञ्ज से न्यारे रहो, कि भाई ये ड्रामा में क्ररोलञ्ज है, पार्ट है। तो आप निरिक्षण कर सकेंगे कि क्या बात आई है?, कैसे उनको पार कर सकते है? तो जब ये नोटबंदी और जी.एस.टी. का हुआ था, तो अपने ही बाबा एक बच्चे ने अपना अनुभव सुनाया — कि हर बिज़ीनेस का अपना एक असोसिएशन होता है, फिर वो असोसिएशन गवर्नमेण्ट के सेक्रेटरिज़ से मिलते है, और बात करते है; कहते है कि — सब कैसे, कोई जोर शोर से, डिस्टर्ब होके, चिल्लाके अपनी-अपनी बाते कर रहे थे। अपना भाई शान्ति से बैठे थे। जब उनको पूछा तो उन्होंने शान्ति से बात किया, तो इससे वो सेक्रेटरी इतना प्रभावित हुआ कि — मै देख रहा था कि सब ऊँचे-नीचे हो रहे है, गाली-गलोच् कर रहे है, कैसी बहस बाजी कर रहे है, आप बिल्कुल शान्ति से बैठे थे, तो उसने बताया — कि देखो जो बात कहनी है वो तो आपको कहीं। पर घुस्से हो जाऊँ, डिस्टर्ब हो जाऊँ, चिल्लाऊँ, गाली बोलु, भाषा बिगाडु, आपसे व्यवहार बिगाडु; तो क्या फायदा। तो वो बहुत प्रभावित हुआ कि इस ज्ञान-योग के कारण आपमें ये कितनी शक्ति रहीं और उसकी बात को ध्यान से सुना और महत्व दिया गया। तो बाबा हमें ये सिखाते है — कि रोज़-रोज़ अभ्यास करके अपनी स्थिति बनाओ और उस स्थिति सेे परिस्थिति का सामना करो। बाकी तो फिर अपने ही तन-मन पर असर आता है, खुद का ही दिमाग $खराब हो जाता, या कितनी अवस्था बिगड़ जाती है हमारी। है ना! इन रोज़ कि परिस्थितियों मे हम विजयी बनेंगे तो जो बाबा कहते है कि — अन्तिम क्रपरिस्थितियाँञ्ज मायाजित बनने का जो लक्ष्य है, वहाँ भी हम विजयी बन सकेंगे। हमारा लक्ष्य तो मायाजित बनने का है। दूनिया में देखते है ना कि, कितने लोग, टॉप पर पहुँच जाते है, सफल हो जाते है, शहूरत पा लेते है, मान-मर्तबा पा लेते है। फिर, फिर क्या होता है, उनका ही अपना कोई-न-कोई स्वभाव, संस्कार, कमज़ोरी उस ऊँचाई से उसको गिराती है। तो हमारा लक्ष्य — मायाजीत, कर्मेन्द्रियजीत, प्रकृतिजीत, कर्मातीत बनने का है। और हम बन सकते है, मुश्किल नहीं है। भगवान बना रहें है, सत्य ज्ञान दे रहे है। हमे सिर्फ हिम्मत से मज़बूत रहना है, अचल-अडौल रहना है। अपने पुरुषार्थ में आगे बढ़ते जाना है। देखो शरीर मे स्थिरता न हो, शरीर आपका हिल रहा हो तो आपको चलने में, उठने में, बैठने में, ठीक रहता है? हूँह्! जिनको पार्किन्सन होता है ऐसा-ऐसा होता रहता है। टाँगे थीरकती रहती है, तो जीवन के हर कार्य में आपको अच्छा थोड़ी, सहजता थोड़ी लगेगी? ऐसे ही मन-बुद्धि-संस्कार की स्थिरता, कि जो हमने शुद्धता अपनाई है, हमे अब हिलना नहीं है। इतना जो पुरुषार्थ किया है, उसको हमें सफल करना है। फिर आपको कुछ भी मुश्किल नहीं लगेगा, आप देखना। एक बार अवस्था बना लेते है ना हम! अपनी आत्मस्थिति शक्तिशाली बना लेते है, फिर कोई भी परिस्थिति मुश्किल नहीं लगती। आप सहज पार कर सकते है। और हर कोई जानते है कि अब दिन-प्रतिदिन परिस्थितियाँ अच्छी होती जायेंगी, या बिगड़ती जायेंगी? जनसंख्या बढ़ती जायेंगी, या कम होगी? ट्राफिक जाम होगा, या कम होगा? क्या लगता है, परिस्थितियाँ बिगड़ती जा रही है। तो हमें खुद के लिये ही लक्ष्य रख देना है, कि मुझे इन परिस्थितियों में अपने-आपको अचल-अडौल रखना है। नहीं तो पुरुषार्थ करो फिर डिस्टर्ब हो जाओ, स्थिति ज़ीरो फिर पुरुषार्थ करो, फिर डिस्टर्ब हो जाओ, दिया बुझे-फिर जलाओ, फिर बुझे-फिर जलाओ, वो ठीक है या सेन्सीबुल बन के पहले ही घृत डाल दो ताकि ज्योत स्थिर जलती रहें। किसको सेन्सीबुल कहेंगे? कि बुझने से; लगे कि बुझने लगा है, तो घृत डाल दो, सेफ कर दो उसको। अपने-आपमे भी लगे जब बात आ रही है, और डिस्टर्बन्स हो रहा है, तो पहले ही अपने आपको सावधान कर दो कि नहीं, डिस्टर्ब हो के कोई भी चीज़ ठीक नहीं हो सकती। ठीक रहकर हर चीज़ को ठीक हम कर सकते है। तो भ_ी में आप सब आये है और समय है, फुर्सत है, बैठिये। अकेले-अकेले, शान्ति से एकांत में बैठिये। यहाँ भी झुँड-झुँड नहीं! बाते नहीं! थोडा साइलेंन्स में बैठियें। अकेले-अकेले बैठिये और सोचिये अपनी स्थिति के लिये। जो कोई नहीं कर सकते है, वो धारणायें आप सब ने कि है। बहुत व्यल्युबुल है, पॉवरफुल आप आत्मायें है। घर-गृहस्थ में रहते हुए, भगवान ने कहाँ कमल फुल समान बनो, और आप बने है। बाबा कहते है ना कि — क्रबाकी सब शिक्षाएँ और धर्म सम्प्रदाय, मठ पंथ, गुरू-सन्यासी देते है:- प्रेम से बोलो, सच बोलो, दया करो, धर्म करो, दान करो, पुन्य करो यह सब बाते सब सिखाते है। पवित्र बनो, योगी बनो कोई नहीं सिखाता। वो बाबा सिखाते हे और आप सबने सिखा, वो धारण किया है। अन्न-शुद्धि का नियम आप पालन करते है, स्वादेन्द्रिय पर विजय। वो भी एक बहुत बड़ा संयम है, कण्ट्रोल है। जो भी हमारे नियम-मर्यादायें है, कई लोग आपको कहते होंगे — भाई आप रोज़ जा सकते है हम तो नहीं जा सकते। इतना भी नहंी होता है उनसे। है ना? भाई आप रोज़ क्लास में जाते है बाकी हमारे से तो नहीं होता। रोज़ सुबह जल्दी उठना, निन्द्राजीत बनना, और सुबह का समय ज्ञान-योग में सफल कर अपने आपको शक्तिशाली बना लेना, जागृत बना लेना, है ना? मुरली यही तो हमें देती है हम कौन है, क्या है, क्या करना है, बाबा क्या कहते है, समय क्या कहता है? सुबह-सुबह आत्मा जागृत हो जाती है उसी स्थिति से दिन भर का कारोबार करते है। सिर्फ लक्ष्य रखना है, अब जो आगे का प्रोग्रेस है ना भाई जिस क्षेत्र में हम ने चुना है, उसमें आगे बढऩा होता है ना? कि जहाँ है वही रहना होता है? भाई बताओ व्यापारी है ना सारे मोरबी के तो? हरेक लक्ष्य रखता है ना भाई — छोटी दुकान हो, बड़ी दुकान हो, शोरूम हो, पाँच लाख का इनवेस्टमेंट है तो दस लाख का टर्नओवर हो, ये हो। हर कोई अपने-अपने फिल्ड में आगे बढऩा चाहता है ना? तो हम सबने जीवन के लिए कोनसा फिल्ड चुना है? क्रज्ञान-योगञ्ज का हमने फिल्ड चुना है। तो हमें उसमें आगे बढऩा है। कि हमारे शब्दों में ऊपर निचाई न आवे। हमारे व्यवहार में बिगाड़ न आवे, हमारा चेहरा न बिगड़े, हमारे भाव और भावना न बिगड़े, ये तो अब पर्सनल, इन्टर्नल है ना! वो आपको, हमें खुद दृढ़ता करनी होगी। ये समय है बनने का, यह समय है भगवान बना रहे, सिर्फ और लक्ष्य रखें, हम खुश न हो जाये कि हम ज्ञानी है, योगी है, पवित्र है, सेवाधारी है, सहयोगी है, यह बहुत अच्छी बात है कि अचीवमेन्ट है। पर अल्टीमेंट तो आत्मा के साथ अवस्था जायेंगी। है ना? जिस अवस्था से संगमयुग पुरा करेंगे उसी अवस्था से सतियुग आप शुरू करेंगे। है ना? ज्ञान तो है ही, अटेंशन और पॉवर बस। तो योग करना है और लक्ष्य रखना है। तो कौन-कौन रखेंगे? कि अब हमारा चेहरा नही बिगड़ेगा, वाणी नहीं बिगड़ेगी, भाव नहीं बिगड़ेंगे। लक्ष्य रखना है, हो सकता है! थोड़ा ताकत से हाथ ऊपर करो। मोरबी के भाई बहने तो मुरब्बी भाई बहने है, है ना! बड़े को मुरब्बी कहते है ना? पहले ऐसे पत्र में लिखते थे क्रमुरब्बी भाई, पिताजीञ्ज, हाँ? तो मोरबी माना मुरब्बी भाई-बहने, बाप समान। तो ये रिज़ल्ट भी हमें लाना ही है। ओम् शान्ति।

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