विश्व बंधुत्व दिवस कार्यक्रम में अयोध्या से आए संतों ने किया संबोधित तथा राइस कैंपेन जेक्ट की लांचिंग

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आदर्श जीवन जीने वाला इस धरती का प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है: जगतगुरु रामानंदाचार्य श्रीरामदिनेशाचार्य महाराज
– महाराज बोले- ब्रह्माकुमारीज़ का कोई जाति-धर्म, पंथ नहीं यह तो खुशबू बिखेरता है
– विश्व बंधुत्व दिवस कार्यक्रम में अयोध्या से आए संतों ने किया संबोधित
– शिक्षा प्रभाग के राइस कैंपेन के नए प्रोजेक्ट की संतों ने की लांचिंग

आबू रोड (राजस्थान)। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के शांतिवन परिसर के डायमंड हॉल में विश्व  बंधुत्व दिवस को लेकर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें अयोध्या से आए संत, महामंडलेश्वर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए शिक्षा प्रभाग द्वारा चलाए जा रहे राइस कैंपेन के तहत नेशनल एजुकेशन कैंपेन की लांचिंग की। इस कैंपेन के तहत अलग-अलग राज्यों में मूल्यनिष्ठ शिक्षा को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
समारोह में अयोध्या से आए अंतरराष्ट्रीय श्रीराम कथा एवं श्रीमद भगवत कथा प्रवक्ता जगतगुरु रामानंदाचार्य श्रीरामदिनेशाचार्य महाराज ने शिव द्रोही मम दास कहावा विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि त्याग, पवित्रता और समर्पण की त्रिवेणी ब्रह्माकुमारीज़ में बह रही है। आज यहां इतने पुष्प दिखाई दे रहे हैं जो अध्यात्म के उस शिखर पर जाकर बिखर चुके हैं जिनकी सुंगध  भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में प्रसारित हो रही है। जब इतने संसाधन और व्यवस्थाएं नहीं थीं तब दादीजी ने स्वयं को स्वर्ण की भांति तपाया है। स्वर्ण की आभा तो सबको दिखती है लेकिन इसके लिए वह कितना तपा है, कितना जला है वह कोई नहीं जानता है।  
जगतगुरु रामानंदाचार्य महाराज ने कहा कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सुनक ने मुरारी बापू के मंच पर जाकर कहा कि मैं एक हिंदू हूं। हिंदू का अर्थ एक जाति, एक संप्रदाय नहीं है। हिंदू का अर्थ है आदर्श जीवन जीने वाला इस धरती का प्रत्येक व्यक्ति। यदि आप त्याग, तपस्या, समर्पण की बात करते हैं तो यह किसी एक जाति, मजहब का नहीं होता है, इसलिए हम कहते हैं वसुधैव कुटुम्बकम्। आज यूनाइटेड नेशन बात करता है कि संपूर्ण विश्व को एक किया जाए। हमारे संतों, मनीषियों ने उस अध्यात्म को कितने वर्षों पहले कहा वसुधैव कुटुम्बकम्। उन्होंने कहा विश्व का कल्याण हो, सर्वे संतु निरामया। हम केवल भारत से संतुष्ट नहीं हैं, हम तो संपूर्ण विश्व के मंगल की बात करते हैं। हम हिंदू जीवनशैली त्याग, समर्पण, बंधुत्व, एकता को संपूर्ण विश्व में देखना चाहते हैं। यही विचारधारा हमें विश्व गुरु बनाने का कार्य करती है। ब्रह्माकुमारीज़ में जिसके भी चेहरे देखों निर्लेप, निष्पक्ष फूल की तरह खिले हुए हैं। क्योंकि यहां किसी से कोई जाति-धर्म नहीं पूछा जाता। ब्रह्माकुमारीज़ का कोई जाति-धर्म, पंथ नहीं यह तो खुशबू बिखेरता है। यहां सुधार से ज्यादा स्वीकार्यता को मान्यता दी जा रही है। आज सुधार से ज्यादा आवश्यक है स्वीकार्य करना। अच्छे लोगों को तो सब स्वीकार्य करते हैं लेकिन स्वीकार्य उसे कहते हैं जो खराब को अच्छा बना दे। यहां अध्यात्म का जूस पिलाया जाता है।

दादीजी का जीवन चरित्र नष्टोमोहा स्मृतिलब्धा था-
अयोध्या से आए निर्मोही घाट के महामंडलेश्वर महंत आशुतोष महाराज ने कहा कि इस संसार में भ्रांति को मिटाने के लिए ओम शांति में क्रांति की आवश्यकता है। दादीजी का जीवन चरित्र नष्टोमोहा स्मृतिलब्धा था। आप संसार में सब त्याग कर देंगे, साधु-संत बन जाएंगे लेकिन मोह का त्याग करना सबसे कठिन होता है। दादीजी के जीवन में लेश मात्र मोह नहीं था। मोह के त्यागने के बाद ही हम बिंदु में समां सकते हैं। आज भारत विश्वगुरु बनने के करीब में है। आज अराजक तत्व धर्म, वेश-भूषा, टीका के आधार पर बंटकारा कर रहे हैं लेकिन ऐसे तत्वों को पछाड़ने का कार्य दादीजी ने किया है। 1893 में शिकागो की यात्रा में स्वामी विवेकानंद ने सिर्फ इतना ही कहा कि भाई और बहनों। सिर्फ इतने में ही तालियों की गड़गड़ाहट नहीं रुकी। जो समर्पण नारदजी के जीवन में था वह समर्पण आज ब्रह्माकुमारीज़ के जीवन में दिख रहा है।

यहां कोई दिव्य शक्ति विराजमान है-
अयोध्या से आए निर्मोही अखाड़ा के महामंडलेश्वर महंत गिरीश दास महाराज ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ में आकर ऐसा महसूस हुआ कि यहां कोई दिव्य शक्ति विराजमान है। कोई शक्ति खींच रही है। यहां भाई-बहनों के व्यवहार, आचार-विचार को जानकर ऐसी अनुभूति हुई जो रामराज्य के लिए अनुभूति होती है। ब्रह्माकुमारीज़ पूरे विश्व में जोड़ने का कार्य कर रही है। श्रीराम ने भी जोड़ने का कार्य किया था। पीड़ित, शोषित, वंचित लोगों को लेकर उन्होंने एक किया था। ऐसे ही संस्था द्वारा समाज सुधार, नशामुक्ति आदि के जो प्रकल्प चलाए जा रहे हैं उनका मकसद भी लोगों को जोड़ना है। यहां से समाज को प्रत्येक वर्ग के लोगों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया जा रहा है। इसी प्रकार की व्यवस्था चलती रही तो वह दिन दूर नहीं जो पूरे विश्व में रामराज्य स्थापित होगा।  

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