हम मांगने वाले नहीं अधिकारी बच्चे हैं

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जितना लूटेंगे-लुटायेंगे उतना भरतू होते जायेंगे। वह सागर है, कोई तालाब नहीं जो सूख जायेगा। ऐसा निरन्तर खुद को स्वमान में रखो, नशे में रहो तो स्थिति कभी डगमग नहीं होगी।

जब मैं किसी के मुख से सुनती हूँ कहते हैं बाबा आप शक्ति देना… मैं कहती शक्ति भी क्यों मांगते! क्या मेरे मांगने से वह देगा! हम मांगने वाले भक्त नहीं हम तो अधिकारी बच्चे हैं। अधिकारी बच्चों के मुख से जब ऐसे बोल निकलते तो मैं यह बोल कानों से सुनना नहीं चाहती। अरे लुटाने वाला कहता तू लूट… जितना चाहे उतना लूट। जितना लूटेंगे-लुटायेंगे उतना भरतू होते जायेंगे। वह सागर है, कोई तालाब नहीं जो सूख जायेगा। ऐसा निरन्तर खुद को स्वमान में रखो, नशे में रहो तो स्थिति कभी डगमग नहीं होगी। रोज़ सवेरे एक ही धुन लगाओ – मुझे मेरा बाबा मिल गया। यह शिवबाबा की भांग पी लो, घोट-घोट कर नशा चढ़ा दो, बस इसी मस्ती में रहो तो बाकी दुनिया की सब मस्तियां खत्म हो जाएं। मुझे तो कई बार हंसी भी आती तो तरस भी पड़ता – कहते हैं मैं सच कहती हूँ मुझे इतना निश्चय नहीं बैठता। मुझे वह भगवान, वह ईश्वर मिल गया है, यह अन्दर से नहीं आता, मुझे तरस पड़ता है, कहती हूँ बाबा आप कितने न प्यारे हो, लेकिन गुप्त हो। बाबा इनके सामने तू बादल रख क्यों बैठे हो, तो बादलों के बीच आप सूर्य को यह नहीं जान सकते। बाबा को कहती – बाबा इनके सामने से यह बादल हटा दो तो यह देख लें, तू है कौन। तेरी इतनी शक्तियों की किरणें क्यों नहीं यह देखते! क्या इन्हें यह दिव्य बुद्धि नहीं मिली है? वास्तव में यह है सूक्ष्म में अपने देह-अभिमान का नशा, इसलिए सूर्य की शक्ति को पहचान नहीं सकते। कई बार मन में जो यह संकल्प चलता कि जीवन का सौदा है, मालूम नहीं जीवन चल पायेगी या नहीं, मालूम नहीं मेरा भविष्य उज्जवल रहेगा। सोच समझकर कदम लेना चाहिए। पता नहीं जीवन का कैसा मोड़ आये… वह शादी तो क्या करनी, शादी तो बर्बादी है, बाबा का बनकर रहें तो ठीक है। परन्तु पता नहीं मेरे संस्कार किस तरह के हों, दूसरे के किस तरह के हों, सर्विस में कदम रखें सफलता न मिले तो… ऐसा न हो इस दुनिया से भी जावें उस दुनिया से भी जावें! दादियाँ तो कहेंगी तुम्हें ब्रह्माकुमारी बनना है। वह तो ठीक है। ब्रह्माकुमारी तो ठीक परन्तु अपने पांव पर तो खड़ा होना चाहिए, कोई का बोझ नहीं बनना चाहिए, मैं सेन्टर पर रहूँ, कभी कुछ चाहिए फिर मांगू… यह तो मेरे से नहीं होगा। किसी के दान से मैं खुद की जीवन कैसे पालूंगी। दूसरे के दान से मैं रोटी खाऊं यह तो मेरे से नहीं हो सकता। मैं कमाऊंगी तो धन तो लग जायेगा… पता नहीं सेन्टर पर रहूँ, फिर आपस में बने, बैठकर मन खराब करूं, इससे तो दूरबाज खुशबाज रहना ही ठीक है, कम से कम परतन्त्र तो नहीं रहूंगी, स्वतंत्र रहना ठीक है। बाबा को ही तो याद करना है। बाबा की मुरली ही तो सुननी है, बाकी यह सर्विस में रहना, झंझटों में आना, इससे तो अपने को न्यारा रखना ही ठीक है। बाबा कहते न्यारे रहेंगे तो प्यारे बनेंगे, इससे ही आपे ही प्यारी बन जाऊंगी। अपनी शान में रहना चाहिए। आज की दुनिया में तो पैसे के सिवाए कुछ भी नहीं है, लोग भी पैसे की इज्जत करते, मैं ब्रह्माकुमारी तो बनी लेकिन पैसा होगा तो इज्जत तो मिलेगी। इसलिए कमाना ठीक है। बहुत हैं जो ऐसी भाषा बोलती हैं। मैं भी कहती हूँ – बिल्कुल ठीक है, सही बात है… लेकिन प्रवृत्ति वालों के लिए तो बाबा ने कहा है तुम दोनों को निभाओ। कुमारियों को किस मुरली में कहा, वह मुरली तो मैंने कभी सुनी नहीं है।

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