सदा खुश रहने का तरीका- अवस्था को अचल-अडोल बनायें

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अब हम आत्माओं से,धर्मात्माओं से, देवात्माओं से, मनुष्यात्माओं से बुद्धि लगा के नहीं बैठे। अब हम अपना योग परमात्मा से लगाकर बैठे हैं। तो अपनी इस ऊँचाई को, वास्तविकता को, सत्यता को रियलाइज़ करना है, और उस रियलाइज़ेशन में हम रहते हैं तो हम अपनी ऊँची अवस्था रख सकते हैं।

लौकिक में जब आप महसूस करते हैं कि हम फलाने कुल के हैं, इस जाति के हैं, इस खानदान के हैं, हमारा तो बहुत बड़ा मान-मर्तबा है। ये महसूसता होती है तो उस रॉयल्टी से व्यक्ति चलता है ना, कि भाई हमारे घर में ऐसा नहीं हो सकता है, हमारे खानदान में ऐसा नहीं चलता है, हमारे समाज में तो ऐसे नियम हैं। वो लौकिक महसूसता है। ये अलौकिक महसूसता है कि हम कौन हैं, किसके बच्चे हैं और किस कार्य के लिए अब हम निमित्त हैं। तो अगर ये रियलाइज़ेशन है तो कोई, कोई कैसा भी हो, कैसा भी स्वभाव-संस्कार हो, व्यवहार हो तो मुझे कैसे व्यवहार करना है? बेशक मुझे कोई बुद्धू नहीं बनना है, मूर्ख नहीं बनना है, पर जो भी करना है वो भी ढंग से करना है। समझदारी से, अलौकिकता से करना है। तो अगर खुद ज्ञान स्वरूप हैं तो आप इस प्रकार से सोचेंगे। रिएक्शन नहीं आयेगा और आपका व्यवहार ठीक चलेगा। पर ज्ञान हो। क्यों बाबा, दादियां, बहनें कहती हैं कि — क्ररोज़ क्लास करों, रोज़ मुरली सुनोञ्ज। क्योंकि जब हम ज्ञान-रत्नों से भरपूर होंगे तो हमारी मन्सा ठीक रहेगी। उसने ऐसा-ऐसा बोला मैं डिस्टर्ब हो गयी, पर क्यों हो गयी? मुझे क्यों होना है? बोला तो उसने है ना, उनकी वाणी खराब थी। मुझे क्यों अवस्था बिगाडऩी चाहिए? मुझे क्यों स्वीकार करना चाहिए? मैंने ऐसा किया नहीं है, मैं ऐसी हूँ नहीं। तो मैं क्यों स्वीकार करूँ? बाबा कहते हैं ना — आपस में कुछ भी एक-दो को कहते हैं, आप तो बिल्कुछ बुद्धू हैं, कुछ आता नहीं है। तो वो टाइटल एकदम लग जाते हैं कि— क्रमेरे को बुद्धू कहा!ञ्ज क्या समझते हैं? मेरे को मूर्ख कहा! मनुष्य का दिया हुआ टाइटल लग जाता है और बाबा कितने टाइटल देते हैं? वो नहीं लगता है! वहाँ कहेंगे मुझे बुरा लग गया, क्योंकि हमने अपना लेवल अभी भी वही साधारण, लौकिक रखा है। हम आपस में ऊँचे नहीं उठे। आपस में कॉमन ही बने रहते हैं तो एक-दो की बातें लग जाती हैं। पर आप ज्ञान स्वरूप बन जाओ, सेन्सीबुल बन जाओ, समझदार बन जाओ, आप अपनी रूहानियत में स्थित हो जाओ। भल हमें मिलके पुरुषार्थ करना है, बाबा कहते हैं — संगठन में रहते हुए, व्यक्तिगत पुरुषार्थ में रहो, अपने आपको ज्य़ादा रूहानी बनाओ, अलौकिक बनाओ, और उसके लिए बाबा ने जो कहा है वो टाइटल रियलाइज़ करो कि हम ज्ञानी तू आत्मा हैं, क्रसत्य-ज्ञानीञ्ज आत्मा हैं। भल दुनिया में बहुत पढ़े-लिखे हैं, पर आत्म-स्थिति को उच्च, शुद्ध, शक्तिशाली, एकरस बनाना वो ज्ञान तो वहाँ नहीं है ना बेचारों के पास! हम सत्य-ज्ञानी आत्मायें हैं। हम परमात्म-योगी हैं। अब हमारा योग किससे है? डायरेक्ट भगवान से। अब हम आत्माओं से,धर्मात्माओं से, देवात्माओं से, मनुष्यात्माओं से बुद्धि लगा के नहीं बैठे। अब हम अपना योग परमात्मा से लगाकर बैठे हैं। तो अपनी इस ऊँचाई को, वास्तविकता को, सत्यता को रियलाइज़ करना है, और उस रियलाइज़ेशन में हम रहते हैं तो हम अपनी ऊँची अवस्था रख सकते हैं। कोई आपसे मिलने आते हैं, आप आत्मअभिमानी हैं, तो आपको तुरंत उनकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कोई दु:ख की बात करते हैं, कोई एक्सीडेंट की बात करते हैं, कोई किस प्रॉब्लम की। आज हरेक के मन में क्या है, बताइये? यही बाते हैं ना! अगर आप भी कॉमन लेवल पर हैं तो आपको भी ये होगा क्या हुआ, किसका एक्सीडेंट हुआ, फलाना हुआ? अगर आप आत्माभिमानी हैं, बाबा की याद में हैं, अपने-आपको देहभान से न्यारा रखने की प्रैक्टिस करते हैं, तो बात का प्रभाव नहीं आयेगा। हाँ, जो हुआ उसके लिए हम अच्छा क्या कर सकते हैं, वो करना है। तो बहुत छोटी-छोटी कॉमन बातों में हम अपनी स्थिति ऊँची-नीची करते ही रहते हैं। कोई चीज़ फूट गई, एक चीज़ के पीछे- कैसे फूट गई, क्या हुआ, ध्यान नहीं दिया, अरे कितनी वैल्युएबल थी। चीज़ के लिए अवस्था बिगाड़ देते हैं। चीज़ वैल्युएबल या अवस्था वैल्युएबल? ठीक है, हम शान्ति से कह रहे हैं कि बहुत अच्छी चीज़ थी, सम्भालने जैसे थी, थोड़ा ध्यान से करिये। हम ऐसे भी तो कह सकते हैं ना! पर अवस्था बिगाड़ के नहीं कहें। फिर हमारे शब्द भी बिगड़ेंगे, उसकी भी अवस्था बिगड़ेगी। फिर घण्टा, दो घण्टा, चार घण्टा प्रभाव चलेगा, आपस में मुँह चढ़ जायेंगे। बोलना भारी हो जायेगा, होती है ना ये सब चीज़ें! वैल्युएबल क्या है? हमें हर चीज़ सम्भालनी है। पर चीज़ें हमारे लिए हैं। हमारी अवस्था उन चीज़ों के लिए नहीं। तो प्रैक्टिकल में हमें अचल-अडोल बनना है। बाबा कहते हैं ना तुम्हारा लक्ष्य है कि अन्त में एक बाबा की याद रहे। अब जीवनभर जो बातें याद करेंगे, वही अन्त में याद आयेंगा। तो जीवनभर कौन-सी बातें हम याद करते है? देखो अपने आपको। ज्ञान-योग तो रोज़ करते है। पर अन्दर से हमारी लगन, अटेंशन, अटैचमेण्ट कहा है? तो जिस परिवार के साथ हमें दिन-रात उठना है, बैठना है, रहना है, खाना है, जीना है, अवस्था तो वहा ही बिगड़ती है ना ज्यादा! दूसरे तो अच्छे ही लगते है ना! दूसरे तो अच्छे ही लगते है। उनके साथ कहा दिन-रात उठना बैठना है, हर कोई सोचता है, उसका पति अच्छा है, वो कहेंगा उनकी बिवी बहुत अच्छी है। मेरे ही बच्चे ऐसे है, अब वो सोचती उनको क्या पता, मै ही जानती हूँ — कि वो कैसे है। तो अवस्था वैसे तो अच्छी ही रहती है, बिगड़ती कहाँ है? आपसी सम्बन्धों में, घर-परिवार की, और नौकरी-धन्धें की बातों में। तो वहाँ ही हमें लक्ष्य रखना है, अटेंशन रखना है — कि जो हमें मिले है, बिना वजह तो कोई नहीं मिला है, है ना? बाबा कहते है ना — कार्मिक अकाउण्ट से ही मिले है। सोचते है ना मिले तो मिले फिर मत मिलना और कोई जन्म में। हाँ! क्यों? हमारे अपने हिसाब से मिले है। हम सिर्फ उस व्यक्ति को देखते है ना, कि ऐसे है, वेसे है, कैसे है, वहाँ हम भूल जाते है कि हम खुद भी कैसे है? हम खुद भी कैसे है, हमें भी कोई सहन कर रहा है। हम से भी कोई अॅडजस्टमेंण्ट कर रहा है। क्योंकि हम भी परफेक्ट नहीं है ना! मै भी परफेक्ट नहंी हूँ। तो मै दूसरे के लिए कैसे सोच सकती हूँ कि ऐसे है, वैसे है, कैसे है। हम भी तो कुछ है ऐसे टेढ़े-मेढ़े। तो जब सेल्फ रियलाइज़ेशन — कि हम खुद कैसे है? हम भी परफेक्ट नहीं है। हमारे में भी कोई न कोई कमियाँ है। उसमें एक है, मेरे में दूसरी है। तो अगर सेल्फ रियलाइज़ेशन हमें क्लियर है, तो हमें फिर वो विचार नहीं आयेंगे कि ऐसे है, कैसे है। ठीक है। हमें दोनों तर$फ से लक्ष्य रहें क्रअॅडजस्टमेंण्ट काञ्ज। कुछ हम भी अॅडजस्ट करें, कुछ और भी अॅडजस्ट करें। है ना? दोनों तर$फ से होता है तो इज़ीली हम मिल के चल सकते है। पर शुरुआत तो खुद से ही करनी होती है। जिम्मेवार हम अपने ही बन सकते है, दूसरे के तो बन नहीं सकते। तो जितना हम आत्मस्थिति में रहते है, और अपनी वास्तविकता — जो मुझ आत्मा के गुण, स्वभाव-संस्कार, शक्ति है, उसकी क्लियर मुझे महसुसता है तो मै दूसरों को भी अण्डरस्टैण्ड कर सकती हूँ। और मिल के चल सकती हूँ। बाबा ने यह पाठ तो सिखाया है ना हमें? कि वेराइटी ड्रामा है, वेराइटी आत्मायें है, हर आत्मा का स्वभाव-संस्कार अपना-अपना है। तो प्रॅक्टिकली हम अपने-आपको विभिन्न स्वभाव-संस्कार वाली आत्माओं के बीच भी — हम अपने-आपको ठीक, एकरस रख सकते है। हम ज्यादा डिस्टर्ब नहीं होंगे। है ना? ये तो फस्र्ट लेवल है। है ना? उसको तो पहले क्रॉस करना है। फिर परिस्थितियाँ है। गर्वनमेण्ट के तरफ से आती है, प्रकृति की तरफ से आती है। परिस्थितियाँ तो आती है ना, नौकरी में, धन्धें में, बिज़ीनेस में, सब में। तो वहा भी हमें हिम्मत से, धिरज से और योगबल से चलना है। फेस तो इन पॉवर्स से करना है ना? परिस्थिति हर किसी के सामने आती है पर कोई व्यापारी टेन्स हो जाता है, तनाव में आ जाता है, कोई डिप्रेस हो जाते है, कोई हँसी-खुशी से पार कर देते है। परिस्थिति हर किसी के सामने आती है, पर अपनी आन्तरिक, आत्मस्थिति से हम उनको पार करते है। उस समय डिस्टर्ब हो गये, टेन्स हो गये, हील हो गये, तो बाबा कहते है ना — क्रफिर सोल्यूशन नज़र नहीं आयेंगा।ञ्ज जब कोई भी परिस्थिति आती है तो, शान्ति और धीरज़ से हमें उनका सामना करना होता है। हम तो क्रघबरा गये!ञ्ज घबरा गये तो फिर निर्णय नहीं कर पायेंगे। जब घबरा गये, हम तो डिस्टर्ब हो गये, तो फिर डिसीजन कैसे लेंगे? ठीक है, परिस्थिति आई है, इसलिए ये जो रोज़ हमें ये न्यारा रहने कि प्रॅक्टिस बाबा कराते है ना! फिर रोज़ देहभान से न्यारे रहो। रोज़ अपने क्ररोलञ्ज से न्यारे रहो, कि भाई ये ड्रामा में क्ररोलञ्ज है, पार्ट है। तो आप निरिक्षण कर सकेंगे कि क्या बात आई है?, कैसे उनको पार कर सकते है? तो जब ये नोटबंदी और जी.एस.टी. का हुआ था, तो अपने ही बाबा एक बच्चे ने अपना अनुभव सुनाया — कि हर बिज़ीनेस का अपना एक असोसिएशन होता है, फिर वो असोसिएशन गवर्नमेण्ट के सेक्रेटरिज़ से मिलते है, और बात करते है; कहते है कि — सब कैसे, कोई जोर शोर से, डिस्टर्ब होके, चिल्लाके अपनी-अपनी बाते कर रहे थे। अपना भाई शान्ति से बैठे थे। जब उनको पूछा तो उन्होंने शान्ति से बात किया, तो इससे वो सेक्रेटरी इतना प्रभावित हुआ कि — मै देख रहा था कि सब ऊँचे-नीचे हो रहे है, गाली-गलोच् कर रहे है, कैसी बहस बाजी कर रहे है, आप बिल्कुल शान्ति से बैठे थे, तो उसने बताया — कि देखो जो बात कहनी है वो तो आपको कहीं। पर घुस्से हो जाऊँ, डिस्टर्ब हो जाऊँ, चिल्लाऊँ, गाली बोलु, भाषा बिगाडु, आपसे व्यवहार बिगाडु; तो क्या फायदा। तो वो बहुत प्रभावित हुआ कि इस ज्ञान-योग के कारण आपमें ये कितनी शक्ति रहीं और उसकी बात को ध्यान से सुना और महत्व दिया गया। तो बाबा हमें ये सिखाते है — कि रोज़-रोज़ अभ्यास करके अपनी स्थिति बनाओ और उस स्थिति सेे परिस्थिति का सामना करो। बाकी तो फिर अपने ही तन-मन पर असर आता है, खुद का ही दिमाग $खराब हो जाता, या कितनी अवस्था बिगड़ जाती है हमारी। है ना! इन रोज़ कि परिस्थितियों मे हम विजयी बनेंगे तो जो बाबा कहते है कि — अन्तिम क्रपरिस्थितियाँञ्ज मायाजित बनने का जो लक्ष्य है, वहाँ भी हम विजयी बन सकेंगे। हमारा लक्ष्य तो मायाजित बनने का है। दूनिया में देखते है ना कि, कितने लोग, टॉप पर पहुँच जाते है, सफल हो जाते है, शहूरत पा लेते है, मान-मर्तबा पा लेते है। फिर, फिर क्या होता है, उनका ही अपना कोई-न-कोई स्वभाव, संस्कार, कमज़ोरी उस ऊँचाई से उसको गिराती है। तो हमारा लक्ष्य — मायाजीत, कर्मेन्द्रियजीत, प्रकृतिजीत, कर्मातीत बनने का है। और हम बन सकते है, मुश्किल नहीं है। भगवान बना रहें है, सत्य ज्ञान दे रहे है। हमे सिर्फ हिम्मत से मज़बूत रहना है, अचल-अडौल रहना है। अपने पुरुषार्थ में आगे बढ़ते जाना है। देखो शरीर मे स्थिरता न हो, शरीर आपका हिल रहा हो तो आपको चलने में, उठने में, बैठने में, ठीक रहता है? हूँह्! जिनको पार्किन्सन होता है ऐसा-ऐसा होता रहता है। टाँगे थीरकती रहती है, तो जीवन के हर कार्य में आपको अच्छा थोड़ी, सहजता थोड़ी लगेगी? ऐसे ही मन-बुद्धि-संस्कार की स्थिरता, कि जो हमने शुद्धता अपनाई है, हमे अब हिलना नहीं है। इतना जो पुरुषार्थ किया है, उसको हमें सफल करना है। फिर आपको कुछ भी मुश्किल नहीं लगेगा, आप देखना। एक बार अवस्था बना लेते है ना हम! अपनी आत्मस्थिति शक्तिशाली बना लेते है, फिर कोई भी परिस्थिति मुश्किल नहीं लगती। आप सहज पार कर सकते है। और हर कोई जानते है कि अब दिन-प्रतिदिन परिस्थितियाँ अच्छी होती जायेंगी, या बिगड़ती जायेंगी? जनसंख्या बढ़ती जायेंगी, या कम होगी? ट्राफिक जाम होगा, या कम होगा? क्या लगता है, परिस्थितियाँ बिगड़ती जा रही है। तो हमें खुद के लिये ही लक्ष्य रख देना है, कि मुझे इन परिस्थितियों में अपने-आपको अचल-अडौल रखना है। नहीं तो पुरुषार्थ करो फिर डिस्टर्ब हो जाओ, स्थिति ज़ीरो फिर पुरुषार्थ करो, फिर डिस्टर्ब हो जाओ, दिया बुझे-फिर जलाओ, फिर बुझे-फिर जलाओ, वो ठीक है या सेन्सीबुल बन के पहले ही घृत डाल दो ताकि ज्योत स्थिर जलती रहें। किसको सेन्सीबुल कहेंगे? कि बुझने से; लगे कि बुझने लगा है, तो घृत डाल दो, सेफ कर दो उसको। अपने-आपमे भी लगे जब बात आ रही है, और डिस्टर्बन्स हो रहा है, तो पहले ही अपने आपको सावधान कर दो कि नहीं, डिस्टर्ब हो के कोई भी चीज़ ठीक नहीं हो सकती। ठीक रहकर हर चीज़ को ठीक हम कर सकते है। तो भ_ी में आप सब आये है और समय है, फुर्सत है, बैठिये। अकेले-अकेले, शान्ति से एकांत में बैठिये। यहाँ भी झुँड-झुँड नहीं! बाते नहीं! थोडा साइलेंन्स में बैठियें। अकेले-अकेले बैठिये और सोचिये अपनी स्थिति के लिये। जो कोई नहीं कर सकते है, वो धारणायें आप सब ने कि है। बहुत व्यल्युबुल है, पॉवरफुल आप आत्मायें है। घर-गृहस्थ में रहते हुए, भगवान ने कहाँ कमल फुल समान बनो, और आप बने है। बाबा कहते है ना कि — क्रबाकी सब शिक्षाएँ और धर्म सम्प्रदाय, मठ पंथ, गुरू-सन्यासी देते है:- प्रेम से बोलो, सच बोलो, दया करो, धर्म करो, दान करो, पुन्य करो यह सब बाते सब सिखाते है। पवित्र बनो, योगी बनो कोई नहीं सिखाता। वो बाबा सिखाते हे और आप सबने सिखा, वो धारण किया है। अन्न-शुद्धि का नियम आप पालन करते है, स्वादेन्द्रिय पर विजय। वो भी एक बहुत बड़ा संयम है, कण्ट्रोल है। जो भी हमारे नियम-मर्यादायें है, कई लोग आपको कहते होंगे — भाई आप रोज़ जा सकते है हम तो नहीं जा सकते। इतना भी नहंी होता है उनसे। है ना? भाई आप रोज़ क्लास में जाते है बाकी हमारे से तो नहीं होता। रोज़ सुबह जल्दी उठना, निन्द्राजीत बनना, और सुबह का समय ज्ञान-योग में सफल कर अपने आपको शक्तिशाली बना लेना, जागृत बना लेना, है ना? मुरली यही तो हमें देती है हम कौन है, क्या है, क्या करना है, बाबा क्या कहते है, समय क्या कहता है? सुबह-सुबह आत्मा जागृत हो जाती है उसी स्थिति से दिन भर का कारोबार करते है। सिर्फ लक्ष्य रखना है, अब जो आगे का प्रोग्रेस है ना भाई जिस क्षेत्र में हम ने चुना है, उसमें आगे बढऩा होता है ना? कि जहाँ है वही रहना होता है? भाई बताओ व्यापारी है ना सारे मोरबी के तो? हरेक लक्ष्य रखता है ना भाई — छोटी दुकान हो, बड़ी दुकान हो, शोरूम हो, पाँच लाख का इनवेस्टमेंट है तो दस लाख का टर्नओवर हो, ये हो। हर कोई अपने-अपने फिल्ड में आगे बढऩा चाहता है ना? तो हम सबने जीवन के लिए कोनसा फिल्ड चुना है? क्रज्ञान-योगञ्ज का हमने फिल्ड चुना है। तो हमें उसमें आगे बढऩा है। कि हमारे शब्दों में ऊपर निचाई न आवे। हमारे व्यवहार में बिगाड़ न आवे, हमारा चेहरा न बिगड़े, हमारे भाव और भावना न बिगड़े, ये तो अब पर्सनल, इन्टर्नल है ना! वो आपको, हमें खुद दृढ़ता करनी होगी। ये समय है बनने का, यह समय है भगवान बना रहे, सिर्फ और लक्ष्य रखें, हम खुश न हो जाये कि हम ज्ञानी है, योगी है, पवित्र है, सेवाधारी है, सहयोगी है, यह बहुत अच्छी बात है कि अचीवमेन्ट है। पर अल्टीमेंट तो आत्मा के साथ अवस्था जायेंगी। है ना? जिस अवस्था से संगमयुग पुरा करेंगे उसी अवस्था से सतियुग आप शुरू करेंगे। है ना? ज्ञान तो है ही, अटेंशन और पॉवर बस। तो योग करना है और लक्ष्य रखना है। तो कौन-कौन रखेंगे? कि अब हमारा चेहरा नही बिगड़ेगा, वाणी नहीं बिगड़ेगी, भाव नहीं बिगड़ेंगे। लक्ष्य रखना है, हो सकता है! थोड़ा ताकत से हाथ ऊपर करो। मोरबी के भाई बहने तो मुरब्बी भाई बहने है, है ना! बड़े को मुरब्बी कहते है ना? पहले ऐसे पत्र में लिखते थे क्रमुरब्बी भाई, पिताजीञ्ज, हाँ? तो मोरबी माना मुरब्बी भाई-बहने, बाप समान। तो ये रिज़ल्ट भी हमें लाना ही है। ओम् शान्ति।

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