कम्बाइण्ड स्वरूप को यूज़ करो तो सदा विजयी बन जायेंगे

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बाबा प्रश्न पूछता है, मेरे बच्चे आप खुश रहते हो? दूसरा प्रश्न यह होता- सदा खुश हो या कभी-कभी, थोड़ा-थोड़ा खुशी होती है? बाबा कहते भगवान के बच्चे वो सदा खुश नहीं रहेंगे तो कौन रहेंगे? क्या है कि कभी-कभी बाबा-बाबा शब्द बोलते भी थोड़ा हल्का हो जाता है। बाबा भगवान है, उसके हम बच्चे हैं। अगर भगवान के रूप में बाबा की स्मृति सदा रहे तो खुशी न रहे, यह हो ही नहीं सकता क्योंकि इस ब्राह्मण जीवन में खुशी अविनाशी ज़रूरी है क्योंकि अविनाशी बाबा की देन है।
बाबा सर्वशक्तिवान है, हम कभी-कभी किसी भी शक्ति में मानो कमज़ोर हो जाते हैं, तो हम सोचते हैं हमारे से यह समस्या हल होना बहुत मुश्किल है। कभी-कभी अलबेले भी हो जाते हैं और कभी-कभी दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। तो बाबा कहते हैं आप में कोई भी शक्ति की कमी है लेकिन मैं जो कम्बाइण्ड हूँ वो तो सर्वशक्तिवान हूँ ना। समय पर सहयोग, वरदान और मदद देने के लिए बाबा कम्बाइण्ड है। तो जो कम्बाइण्ड सर्वशक्तिवान बाबा है, उसकी मदद क्यों नहीं लेते? उस समय क्यों नहीं बाबा को याद करते? और बाबा आया ही है- हिम्मत की मदद देने के लिए, एक कदम आपके हिम्मत का और हज़ार कदम बाबा की मदद के हैं क्योंकि बाबा सर्वशक्तिवान है लेकिन होता क्या है? माया भी बहुत होशियार है, उसी समय हमको अकेला कर देती है। बाबा को भुला देती है और अकेले होने के कारण विजय होने के बजाय कहाँ-कहाँ हार हो जाती है।
तो ध्यान पर रहे कि माया पहले अकेला करेगी लेकिन मुझे अकेला होना नहीं है। सदा बाबा के साथ कम्बाइण्ड रहना है, हम कहें बाबा मेरे साथ है, तो साथ वाला थोड़ा किनारा भी हो सकता है लेकिन कम्बाइण्ड तो सदा ही साथ है। तो बाबा का वायदा अगर आपने दिल से याद किया, मेरा बाबा, मीठा बाबा, प्यारा बाबा तो हज़ूर हाजि़र है। लेकिन एक बाबा के संकल्प के बिना और कोई संकल्प नहीं आवे तब बाबा मेरा है। हम कहते हैं भगवान मेरा है, जहाँ भगवान है वहाँ विजय तो है ही। एक बाबा ही भगवान है और वो हमें मिल गया, इसी निश्चय के खुशी और मस्ती में रहना चाहिए क्योंकि भगवान ने जो कहा वो तो होना ही है।
अभी तो ज्य़ादा मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है, अभी तो ज्ञान इतना स्पष्ट हो गया है और बाबा एक ही शब्द कहता है जो ब्रह्मा बाबा ने किया उसको फॉलो करो। दिनचर्या का भी बता दिया कि सुबह को कितने बजे बैठो, कैसे बैठो तो उसी विधि से बैठना है। फिर मुरली भी ऐसे सुनना है जो अर्जुन समान गीता ज्ञान सुनते-सुनते जैसे कि मन्त्र-मुग्ध स्थिति हो जाये। बाबा मेरे लिए आया है और मुरली द्वारा मेरे से बात कर रहा है, मेरे को पढ़ा रहा है, जैसे मेरा बाबा है, वैसे मेरा टीचर है, मेरे लिए आया है यह नशा होना चाहिए। फिर सिर्फ कर्मकर्ता नहीं, कर्मयोगी बन करके कर्म करो। कर्म और योग दोनों साथ-साथ हों। कर्म में परमात्मा पिता की याद होने के कारण जो भी कर्म करेंगे उसमें सफलता हुई पड़ी है क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति होती है, जैसी स्थिति वैसे कर्म होते हैं।

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