परमात्म स्मृतियों को… साक्षात कर साक्षात्कार करायें – बी के सूर्य भाई जी

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मुझे व्यर्थ को छोड़कर ज्ञान के चिंतन में रहना है। ज्ञान के चिंतन से ज्ञान का खज़ाना बढ़ता चलेगा। और ज्ञान के द्वारा मुझे अपने विचारों को, अपने संकल्पों को महान व श्रेष्ठ बनाते चलना है। मुझे योग की शक्ति से अपने को मोस्ट पॉवरफुल, मास्टर सर्वशक्तिवान बनाना है।

हम सभी परम आत्मा के साथ भारत को स्वर्णिम भारत बनाने के दिव्य और अलौकिक कार्य में कार्यरत हैं। सब जानते हैं कि युग बदलने का कार्य किसी मनुष्य के द्वारा सम्भव नहीं है। भारत को स्वर्णिम बनाने का काम केवल परमात्मा का है। हमारी सरकारें भले ही ये ड्रीम देखती हैं, बहुत अच्छा ये ड्रीम है। और वो बाह्य रूप से देश को आगे बढ़ा रही है और बढ़ा सकेगी। लेकिन जब तक मनुष्य देव तुल्य न बनें, जब तक मनुष्य के अन्दर प्युरिटी न आये, जब तक मनुष्य सच्चे अर्थों में मनुष्य न बन जाये उसके अन्दर छिपे मनोविकार- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, देष, तेरा-मेरा ये समाप्त न हो जायें तब तक बाह्य सुख-सुविधाओं का कोई ज्य़ादा महत्त्व नहीं रह जाता।
इसलिए हम सभी को अपने को योग्य बनाकर इस संसार को स्वर्णिम संसार बनाना है। हम एक-एक शिव बाबा के बच्चे उसकी आज्ञाओं पर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाकर अनेक आत्माओं को श्रेष्ठ बनायेंगे। एक-एक राजयोगी सौ को, दस हज़ार को, कोई-कोई तो एक लाख को श्रेष्ठ बनायेंगे। और ये कलम लगते-लगते अनेकों में जो देवत्व छुपा हुआ है वो प्रकट होने लगेगा। उनके मनोविकार छूटने लगेंगे। ये आजतक होता आया है, ये कोई कल्पना नहीं है। भारत में जो गायन है 33 करोड़ देवी-देवता वो फिर से देवत्व को प्राप्त करेंगे। वो अभी मनुष्य रूप में हैं। वो पहले प्रजापिता ब्रह्मा की संतान बनेंगे और फिर मनुष्य देवता बनेंगे।
उनमें से भी जो पहले आठ हैं उनका सबसे ज्य़ादा महत्त्व है। उनकी प्युरिटी संसार को बदलने में सक्षम है। उनकी दिव्यता, उनका मन पर कंट्रोल, वो प्रकृति के मालिक, वो साइलेंस पॉवर से सम्पन्न, वो ऐसी आत्मायें हैं। 108 में से मैं पहली-पहली 25 की बात करूं जिनके लिए बाबा ने कहा, 108 में पहले जो 25 रत्न यानी आत्मायें बहुत-बहुत महान हैं, बहुत बड़े योगी हैं, बहुत-बहुत पवित्र हैं। तो विचार कर लें कि जब ये 25 आत्मायें साक्षात्कारमूर्त बन जायेंगी- साक्षात्कार कराने की चाबी तो शिव बाबा(भगवान) के पास है, मनुष्य के पास नहीं होती। जब साक्षात्कार शुरू होने लगेंगे तब लोग खींच-खींच कर, भाग-भाग कर आने लगेंगे। एक-एक दिन में एक-एक लाख, पाँच-पाँच लाख ब्राह्मण तैयार होने लगेंगे। न कोई ज्ञान की बहस करेगा। जो ज्ञान उन्हें दिया जायेेगा उसे सत्य मानकर उसे अपने जीवन में धारण करने का पुरुषार्थ करेंगे। इसके साथ-साथ ये अष्ट रत्न, ये 25 आत्मायें या कुछ और 108, ये सर्व खज़ानों से सम्पन्न हो जायेंगी। याद रखना है- बाबा के महावाक्य, भगवान के वचन हैैं, क्योंकि वो सबकुछ जानता है और ये उसकी प्लानिंग है कि इस युग को कैसे बदलना है, पुराने युग की कैसे समाप्ति करानी है। क्योंकि पाप बहुत बढ़ गया है। पापियों का जब तक अन्त न हो तो देवयुग भला कैसे आयेगा! तो आने वाले समय में दृष्टि के द्वारा सेवा होगी। जिनके पास ये सर्व ईश्वरीय खज़ाने होंगे,उनके वायब्रेशन्स, उनकी दृष्टि से जो तेज निकलेगा, उनके थोड़े-थोड़े वचन जो वरदानी बनकर प्रभाव डालेंगे उसके द्वारा सेवा की सम्पन्नता होगी।
तो साक्षात्कार किसी एक का हो जाये। मान लो, एक राजयोगिनी बहन के द्वारा लोगों को साक्षात्कार होने लगेंगे कि दुर्गा देवी तो ये है। तो समझ लें दुर्गा देवी के भक्त कितने हैं भारत में- करोड़ भी नहीं, असंख्य हैं। वो सभी भागे-भागे चले आयेंगे।
किसी से विष्णु के भी साक्षात्कार होंगे, किससे हनुमान के होंगे, किससे गणेश के होंगे, जो नौ देवियां हैं उनके अलग-अलग जगह पर साक्षात्कार होंगे। और ये सभी आत्मायें अष्ट शक्तियों से भरपूर होंगी।
कौन-कौन से हैं वो नौ खज़ाने- ज्ञान का खज़ाना, जो खज़ाना स्वयं भगवान ने दिया। दैवी गुणों का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, शक्ति ईश्वरीय शक्ति, श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना, खुशी का खज़ाना, दुआओं का खज़ाना, पुण्य कर्मों का खज़ाना, पवित्रता का खज़ाना, ये सभी हमारे खज़ाने हैं। स्वमान भी हमारे खज़ाने हैं। दुआएं देना और लेना ये भी हमारे खज़ाने हैं। तो ये खज़ाने भरपूर होंगे।
दुआ का एक शब्द बोलेंगे बस उनका उद्धार, उनका कल्याण हो जायेगा। पवित्रता के खज़ाने से सम्पन्न आत्मा एक दृष्टि देगी और कहेगी कि अब समय है ये पवित्र बनने का, अब ये सब विकार छोड़ दो, और आत्मायें विकारों का त्याग करने लगेंगी। तो ऐसा सुन्दर समय तेज़ी से हमारे समीप आता जा रहा है।
रूहानियत, स्पिरिचुअलिटी ही एक मात्र साधन है, ये सबकी समझ में आ जायेगा। हमें स्वयं को अध्यात्म से भरना है। सर्व खज़ानों से सम्पन्न होने का मुख्य संकल्प अभी अपने चित्त में सभी ले लें कि मुझे व्यर्थ को छोड़कर ज्ञान के चिंतन में रहना है। ज्ञान के चिंतन से ज्ञान का खज़ाना बढ़ता चलेगा। और ज्ञान के द्वारा मुझे अपने विचारों को, अपने संकल्पों को महान व श्रेष्ठ बनाते चलना है। मुझे योग की शक्ति से अपने को मोस्ट पॉवरफुल, मास्टर सर्वशक्तिवान बनाना है। तो शक्तियों के वायब्रेशन्स बहुतों का उद्धार करेंगे। अब साक्षात्कार हो रहा है वो समाचार छपने लगेंगे। दिखने लगेंगे तो लोग भागे आयेंगे, प्रिंट मीडिया में भी वो सब बातें छपने लगेंगी तो लोग भागे आने लगेेंगे। तो हम सभी ऐसी महान सेवा के लिए अपने को तैयार करें। तो हम बाप समान रूप से भी प्रसिद्ध हो जायेंगे और संसार के उद्धारकर्ता भी बन जायेंगे।

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