– आध्यात्मिक सशक्तिकरण से ही सर्व समस्याओं का हल
-शिक्षाविदों की तीन दिवसीय सेमिनार का हुआ समापन
ओम शांति रिट्रीट सेंटर में शिक्षा में सुधार पर हुई चर्चा
– राजयोग के विभिन्न सत्रों के माध्यम से समझाई गई ईश्वरीय ज्ञान की बारीकियां
भोरा कलां, गुरुग्राम, हरियाणा: शिक्षक के सशक्त होने से ही समाज सशक्त हो सकता है। सशक्तिकरण का मूल केंद्र आध्यात्मिकता है। उक्त विचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सलाहकार, परामर्शदाता एवं श्री पदमपत सिंघानिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. श्रीहरि होनवाड़ ने व्यक्त किए। डॉ. होनवाड ब्रह्माकुमारीज के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में शिक्षाविदों के लिए आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार के समापन सत्र में बोल रहे थे। एजुकेटर्स क्रिएटिंग फ्यूचर लीडर्स विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान समय आध्यात्मिक सशक्तिकरण की अत्यधिक आवश्यकता है। यदि हम कल के लिए एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें शिक्षा में मूल बदलाव करने होंगे।
– शिक्षक का कार्य केवल सूचना प्रदान करना नहीं बल्कि अपने आदर्श व्यक्तित्व से प्रेरित करना भी है
गुरुग्राम, नॉर्थ कैप के प्रो वाइस चांसलर प्रेम व्रत ने कहा कहा कि ब्रह्माकुमारीज के सहयोग से उन्होंने विश्वविद्यालय में एक वैचारिक प्रयोगशाला स्थापित की है। जिसके बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक शिक्षक ही नेतृत्व की असली शक्ति प्रदान कर सकता है। शिक्षक का कार्य सिर्फ सूचना देना नहीं बल्कि अपने आदर्श व्यक्तित्व से भी प्रेरित करना है।
– जो भी कार्य करें उसमें ईमानदारी, निष्ठा और पारदर्शिता जरूरी है
हनुमानगढ़, खुशाल दास विश्वविद्यालय की कार्यकारी निदेशक डॉ. शशी मोरोलिया ने कहा कि समाज में शिक्षक की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आचार्य चाणक्य और रामकृष्ण परमहंस इसके बहुत बड़े उदाहरण हैं। शिक्षा में नैतिक मूल्य जरूरी हैं। हमारी सबसे बड़ी लड़ाई खुद से है। हम जो भी कार्य करें, उसमें ईमानदारी, निष्ठा और पारदर्शिता हो। अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र हैं। इसलिए निरंतर अध्ययन जरूरी है।
– अपने मौलिक गुणों और स्वभाव को अनुभव करना ही है आध्यात्मिकता
ब्रह्माकुमारीज के अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन ने कहा कि भारत ही आध्यात्मिकता का जन्मदाता है। उन्होंने कहा कि कुदरत ने किसी भी चीज का मूल्य निर्धारित नहीं किया। लेकिन आज हम पानी को भी बोतल में भरकर बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि मानव चेतना को भूल भौतिक रूप को ही महत्व देता है। जिस कारण ही आज विकृति आई है। हमारा वास्तविक स्वरूप चेतना अर्थात आत्मा है। शरीर उसके द्वारा कार्य करने के लिए मिला हुआ एक माध्यम है। स्वयं को देह समझने से ही आत्मा अपने मूल गुणों का अनुभव नहीं कर सकती। इसलिए आवश्यकता है, आत्मिक दृष्टिकोण अपनाने की। अपने मौलिक गुणों और स्वभाव का अनुभव करना ही आध्यात्मिकता है।
महाराष्ट्र से संस्था के शिक्षा प्रभाग की संयोजिका बीके वसंती दीदी ने कहा कि धर्म का वास्तविक अर्थ धारणा है। आध्यात्मिकता हमारी उन्हीं धारणाओं को जागृत करती है। श्रेष्ठता को बनाए रखने की शक्ति प्रदान करती है। आत्मा के मूल में निहित गुणों की विस्मृति ही धर्म की ग्लानि है। उन्होंने कहा कि शिक्षक उन धारणाओं को स्वयं के जीवन में आत्मसात करके ही छात्रों को प्रेरित कर सकते हैं।
जीडी गोयनका विश्वविद्यालय की डीन डॉ. अनुराधा ने कहा कि यहां आने से ही उन्हें लगा कि वो एक नई दुनिया में आ गई। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यही है कि हम भगवान से संबंध नहीं जोड़ पाते। लेकिन यहां के वातावरण में उन्हें वो आनंद मिला कि जैसे वो ईश्वर से जुड़ गई हों।
एमिटी विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. संजय झा ने कहा कि फ्यूचर लीडर के साथ-साथ फ्यूचर ह्यूमन की चर्चा अधिक जरूरी है। आज हम सब मानव तो हैं लेकिन मानवीय गुणों का अभाव है। इसलिए आवश्यकता है, मानवीय गुणों से युक्त मानव निर्माण करने की। मानव मूल्यों की शिक्षा ब्रह्माकुमारीज संस्थान दे रहा है।
एमएसएमई के निदेशक रवि नंदन सिन्हा ने ब्रह्माकुमारीज संस्थान के साथ का अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता समाज को सशक्त करती है। विश्व योग दिवस के साथ-साथ विश्व आध्यात्मिक दिवस मनाने की भी जरूरत है।
राजयोग विचार प्रयोगशाला का भी किया आयोजन
कार्यक्रम में पैनल डिस्कशन के माध्यम से शिक्षा में गुणवत्ता का समावेश एवं एथिकल डिलेमा जैसे विषयों पर चर्चा हुई। ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अनेक अनुभवी वक्ताओं के द्वारा राजयोग की गहरी जानकारी दी गई।
कार्यक्रम में मुंबई से आए मोटिवेशनल स्पीकर प्रो. ईवी गिरीश ने भी अपने विचार रखे। एथिकल डिलेमा विषय पर हुए पैनल डिस्कशन में मुख्य रूप से रेवाड़ी, इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जयप्रकाश, एआईसीटीई के उप निदेशक डॉ. निखिल कांत, नॉर्थ कैप विश्वविद्यालय की कुलपति नुपुर प्रकाश एवं दिल्ली, ब्रह्माकुमारीज संस्था के करोल बाग सेवाकेंद्र की निदेशिका पुष्पा दीदी ने अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम में एक बहुत ही सुंदर राजयोग विचार प्रयोगशाला भी आयोजित की गई। जिसमें मनोरंजन एवं खेल के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान को स्पष्ट किया गया। आध्यात्मिक अनुभव के लिए बने स्टाल्स में आकर लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। स्टाल्स में मन की एकाग्रता, धैर्यता, प्रेम, शांति और परमधाम की अनुभूति के आधार पर गेम्स बनाए गए। कार्यक्रम का आरंभ बीके पूजा के द्वारा एक सुंदर नृत्य से हुआ। बीके फाल्गुनी के संबोधन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यक्रम का संचालन बीके कोकिला एवं बीके चित्रा ने किया।