अपनी आत्मस्थिति शक्तिशाली बना लेते हैं, फिर कोई भी परिस्थिति मुश्किल नहीं लगती। आप सहज पार कर सकते हैं। मुझे इन परिस्थितियों में अपने-आपको अचल-अडोल रखना है। नहीं तो पुरुषार्थ करो फिर डिस्टर्ब हो जाओ, स्थिति ज़ीरो। फिर पुरुषार्थ करो, फिर डिस्टर्ब हो जाओ, दीया बुझे-फिर जलाओ, फिर बुझे-फिर जलाओ, वो ठीक है या सेन्सीबुल बन के पहले ही घृत डाल दो ताकि ज्योत स्थिर जलती रहे।
जब ये नोटबंदी और जी.एस.टी. का हुआ था, तो अपने ही बाबा के एक बच्चे ने अपना अनुभव सुनाया था कि हर बिज़नेस का अपना एक एसोसिएशन होता है, फिर वो एसोसिएशन गवर्नमेंट के सेक्रेटरीज़ से मिलते हैं और बात करते है; कहते हैं सब कैसे, कोई ज़ोर-ज़ोर से, डिस्टर्ब होके, चिल्लाके अपनी-अपनी बातें कर रहे थे। अपना भाई शान्ति से बैठे थे। जब उनको पूछा तो उन्होंने शान्ति से बात की, तो इससे वो सेक्रेटरी इतना प्रभावित हुआ कि — मैं देख रहा था कि सब ऊँचे-नीचे हो रहे हैं, गाली-गलोच् कर रहे हैं, कैसी बहसबाजी कर रहे हैं, आप बिल्कुल शान्ति से बैठे थे। तो उसने बताया कि देखो जो बात कहनी है वो तो मैंने आपको कही। पर गुस्से हो जाऊँ, डिस्टर्ब हो जाऊँ, चिल्लाऊँ, गाली बोलूं, भाषा बिगाड़ूं, आपसे व्यवहार बिगाड़ूं तो क्या फायदा! तो वो बहुत प्रभावित हुआ कि इस ज्ञान-योग के कारण आपमें ये कितनी शक्ति रही और उसकी बात को ध्यान से सुना और महत्त्व दिया गया। तो बाबा हमें ये सिखाते हैं कि रोज़-रोज़ अभ्यास करके अपनी स्थिति बनाओ और उस स्थिति सेे परिस्थिति का सामना करो। बाकी तो फिर अपने ही तन-मन पर असर आता है, खुद का ही दिमाग खराब हो जाता, या कितनी अवस्था बिगड़ जाती है हमारी।
इन रोज़ की परिस्थितियों में हम विजयी बनेंगे तो जो बाबा कहते हैं कि अन्तिम परिस्थितियाँ मायाजीत बनने का जो लक्ष्य है, वहाँ भी हम विजयी बन सकेंगे। हमारा लक्ष्य तो मायाजीत बनने का है। दुनिया में देखते हैं ना कि कितने लोग टॉप पर पहुँच जाते हैं, सफल हो जाते हैं, शोहरत पा लेते हैं, मान-मर्तबा पा लेते हैं। फिर, फिर क्या होता है, उनका ही अपना कोई-न-कोई स्वभाव, संस्कार, कमज़ोरी उस ऊँचाई से उसको गिराती है। तो हमारा लक्ष्य — मायाजीत, कर्मेन्द्रियजीत, प्रकृतिजीत, कर्मातीत बनने का है। और हम बन सकते हैं, मुश्किल नहीं है। भगवान बना रहे हैं, सत्य ज्ञान दे रहे हैं। हमे सिर्फ हिम्मत से मजबूत रहना है, अचल-अडोल रहना है। अपने पुरुषार्थ में आगे बढ़ते जाना है।
देखो शरीर में स्थिरता न हो, शरीर आपका हिल रहा हो तो आपको चलने में, उठने में, बैठने में, ठीक रहता है? जिनको पार्किंसन डिजीज हो जाती है, ऐसे में हाथ हिलता रहता है, टाँगें थीरकती रहती हैं, तो जीवन के हर कार्य में आपको अच्छा थोड़े, सहजता थोड़े लगेगी! ऐसे ही मन-बुद्धि-संस्कार की स्थिरता कि जो हमने शुद्धता अपनाई है, हमें अब हिलना नहीं है। इतना जो पुरुषार्थ किया है, उसको हमें सफल करना है। फिर आपको कुछ भी मुश्किल नहीं लगेगा, आप देखना। एक बार अवस्था बना लेते हैं ना हम! अपनी आत्मस्थिति शक्तिशाली बना लेते हैं, फिर कोई भी परिस्थिति मुश्किल नहीं लगती। आप सहज पार कर सकते हैं। मुझे इन परिस्थितियों में अपने-आपको अचल-अडोल रखना है। नहीं तो पुरुषार्थ करो फिर डिस्टर्ब हो जाओ, स्थिति ज़ीरो। फिर पुरुषार्थ करो, फिर डिस्टर्ब हो जाओ, दीया बुझे-फिर जलाओ, फिर बुझे-फिर जलाओ, वो ठीक है या सेन्सीबुल बन के पहले ही घृत डाल दो ताकि ज्योत स्थिर जलती रहे। अपने-आपमे भी जब लगे कि बात आ रही है, और डिस्टर्बेंस हो रहा है, तो पहले ही अपने आपको सावधान कर दो कि नहीं, डिस्टर्ब होके कोई भी चीज़ ठीक नहीं हो सकती। ठीक रहकर हर चीज़ को ठीक हम कर सकते हैं।
हरेक लक्ष्य रखता है ना भाई कि छोटी दुकान हो, बड़ी दुकान हो, शोरूम हो, पाँच लाख का इनवेस्टमेंट है तो दस लाख का टर्नओवर हो, ये हो। हर कोई अपने-अपने फील्ड में आगे बढऩा चाहता है ना! तो हम सबने अपने जीवन के लिए कौन-सा फील्ड चुना है? क्रज्ञान-योगञ्ज का हमने फील्ड चुना है, तो हमें उसमें आगे बढऩा है। हमारे शब्दों में ऊंचाई-निचाई न आये। हमारे व्यवहार में बिगाड़ न आये, हमारा चेहरा न बिगड़े, हमारे भाव और भावना न बिगड़े, ये तो अब पर्सनल, इन्टर्नल है ना! वो आपको, हमें खुद दृढ़ता करनी होगी। ये समय है बनने का, यह समय है भगवान बना रहे, लक्ष्य रखें। हम खुश न हो जायें कि हम ज्ञानी हैं, योगी हैं, पवित्र हैं, सेवाधारी हैं, सहयोगी हैं, यह बहुत अच्छी बात है, ये आपकी अचीवमेन्ट है। पर अल्टीमेट तो आत्मा के साथ अवस्था जायेगी। जिस अवस्था से संगमयुग पूरा करेंगे उसी अवस्था से सतयुग आप शुरू करेंगे। ज्ञान तो है ही, अटेंशन और पॉवर, बस। योग करना है और लक्ष्य रखना है।