एक ऐसा उत्सव जो भाग्य जगा दे

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विकारों पर विजय प्राप्त करने पर दीवाली का ये त्योहार ऐसा है जिसे विजयोत्सव के रूप में मनाते हैं। क्योंकि आत्मा में ज्ञान की रोशनी भरने से तीनों शक्तियां मन, बुद्धि और संस्कार दिव्य बन जाते हैं और स्वराज्य प्राप्त कर लेती है।

हावत कुछ इस तरह की है कि अंधेरों को मिटाने के लिए लोग चिरागों को जलाते हैं लेकिन दिल के अंधेरे तो सिर्फ प्यार से रोशन होंगे। इस बात को हम दीपावली के साथ और इसके मर्म के साथ जोड़कर समझ सकते हैं। बहुत काल से ये त्योहार हम सबके ज़हन में रहता है। इसमें साल में एक बार कहते हैं कि आप अपने आवास या घर के कोने-कोने की सफाई करते हैं और उसमें लक्ष्मी का आह्वान करते हैं। अब लक्ष्मी का आह्वान एक दिन ही क्यों करें! हमेशा क्यों न करें! लेकिन एक खास मौके पर ही श्री लक्ष्मी का आह्वान करते हैं। ज्य़ादातर आप सबको ज्ञात ही होगा कि यहां लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ धन के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन आज तक जो भी प्रार्थनाएं लिखी गईं, उसमें कहते हैं, हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये, शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये। अर्थात् हमने परमात्मा से तो कभी भी धन नहीं मांगा या लक्ष्मी नहीं मांगी। हमने तो ज्ञान मांगा, आनंद मांगा, दुर्गुणों को दूर करने की विधि मांगी। लेकिन एक दिन सिर्फ लक्ष्मी का आह्वान क्यों करते! आपको पता है, कहते हैं कि अमावस्या पर घोर काली रात्रि होती है दीपावली पर। जिसमें कहते हैं कि मनुष्य, मनुष्य को नज़दीक से नहीं देख सकता। अब वो तो रात की बात है, रात को तो लोग सोते हैं, उसमें देखने की क्या आवश्यकता! तो ज़रूर कहीं न कहीं इसमें कोई आध्यात्मिक रहस्य होगा। तो आध्यात्मिक रहस्य कुछ इस प्रकार ज़रूर है कि जब मनुष्य को मनुष्य के एक भी गुण न दिखाई दें, इतना ज्य़ादा हमारे अंदर अंधकार भर जाये तो उस समय अंतरात्मा के चराग को जलाने की आवश्यकता पड़ती है। कहा जाता है कि मनुष्य स्वयं को तो खुद ही नहीं देख पाता, जो आँखें इस संसार को देखती हैं उन आँखों को देखने के लिए आईने की ज़रूरत पड़ती है। तो अब आप बताओ कि जब इन आँखों से हम खुद को ही नहीं देख पा रहे, तो दुनिया में हम इससे क्या देख पायेंगे! तो ज़रूर दीपावली का त्योहार हमारे पुरुषार्थ के साथ जुड़ा हुआ है। और पुरुषार्थ ये है कि अपनी आत्मा की आँख, उसकी ज्योति को जगाने से मेरे चारों तरफ जो भी अंधियारा छाया हुआ है वो सब मिट जाता है।
दीपावली पर सब अपनी दुकान में, घर में, ऑफिस में, हर जगह शाम को लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं और उसके बाद दीप जलाते हैं। कहते हैं, लक्ष्मी धन का प्रतीक है और गणेश जी विघ्नविनाशक कहे जाते हैं। इसका मतलब निर्विघ्न बनाना खुद को और निर्विघ्न बनने के बाद हमारे घर में जो धन आयेगा वो भी हमारे अच्छे कार्य में इस्तेमाल होगा। इसलिए जो स्थूल धन है, ये आज सबके पास आ ज़रूर रहा है लेकिन विघ्नों के साथ आ रहा है। सब सुबह से लेकर शाम तक अपनी उलझनों के साथ, परेशानियों के साथ, दु:ख-दर्द के साथ, लोभ-लालच, मोह के साथ पैसा ज़रूर कमा रहे हैं लेकिन इसका ज्य़ादातर इस्तेमाल भी इसी तरह से ही होगा ना! इसलिए पैसा भले कम हो, लेकिन इस्तेमाल सही जगह हो उसके लिए तो एक ही चीज़ की आवश्यकता है, ज्ञान धन की, समझ की। जितना ज्ञान धन या समझ हमारे पास होगा उतना जो भी स्थूल धन आयेगा हमारे पास, तो हमारी बुद्धि सटीक काम करेगी और उसका इस्तेमाल जहाँ भी होगा वहां पर बरकत होगी। इसीलिए पैसे कमाना ज्य़ादा ज़रूरी नहीं है लेकिन पैसे की बचत और किस स्रोत से पैसा आ रहा है, इसका ध्यान देना ज्य़ादा ज़रूरी है।

इसीलिए बार-बार इस बात पर ज़ोर देने की आवश्यकता है कि हमें अपनी समझ की ज्वाला या समझ की ज्योति को जगाना है ताकि अंदर के तम या अंधकार या विकार को समझकर उसका ज्ञान रोशनी के साथ सही इस्तेमाल कर सकें। तब जाकर दीपावली पर्व के साथ न्याय होगा। और तभी हम दीपों के त्योहार को सही अर्थ दे पायेंगे।

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