जैसे हमारे संकल्प… वैसी हमारी स्थिति – ब्र. कु. सूर्य

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अच्छे संकल्प हैं मन में तो ब्रेन की स्थिति अच्छी और पॉवरफुल, जितने पॉवरफुल थॉट्स हमारे मन में होंगे ब्रेन उतना ही पॉवरफुल होगा। और वैसे ही हमारे वायब्रेशन होंगे।

संसार में जहाँ अनेक रोग बढ़ते दिखाई दे रहे हैं, वहीं अभी प्रकोप नज़र आ रहा है मानसिक रोगों का। बहुत लोग इसको समझ नहीं पाते कि मानसिक रोग आखिर बढ़ क्यों रहे हैं। चिंतायें पहले भी थीं। समस्यायें पहले भी बहुत होती थीं। लेकिन अब अधिकतर लोग मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं। किसी को रात को नींद नहीं आती है। किसी को डिप्रेशन हो गया है। मेडिकल साइंस में कई नाम हैं ऐसे जो सिजोफ्रेनिया हो गया, ओसीडी। और ऐसे कई नाम जो युवकों को खास 40 साल तक की आयु वालों को काफी परेशान कर रहे हैं। कई लोगों ने, कई युवकों ने कमरे में बंद कर लिया है। आइसोलेटेड कर लिया है। कईयों को ज्य़ादा सोचने की आदत पड़ गई है। और भी कई चीज़ उदास रहना, कहीं भी मन न लगना। ये सब लक्षण दिखाई दे रहे हैं मानसिक रोगों के।
आप ज़रूर जानना चाहेंगे गुह्य रहस्यों को जो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जो भगवान के द्वारा कही गई बातें हैं, जो एकदम सत्य हैं। सबसे पहले तो हमें ये बात जाननी चाहिए कि मैं इस शरीर में रहने वाली चैतन्य आत्मा हूँ। आत्मा ब्रेन के बीच में रहती है, प्वाइंट ऑफ एनर्जी है। मैं बहुत सूक्ष्म हूँ। मुझसे चारों तरफ निरन्तर वायब्रेशन्स फैलते रहते हैं। तो पहले तो सभी को इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। अब ये बात तो नहीं कि मैं ये बातें नहीं मानता। अब मानें या न मानें ये तो सत्य है। देखो आत्मा शरीर छोड़ती है, मृत्यु कहते हैं हम उसे। भले डॉक्टर्स कहते हैं ब्रेन फेल हो गया, हार्ट फेल हो गया। परन्तु वास्तव में आत्मा देह छोड़कर चली जाती है। पुर्नजन्म होता है, गर्भ में आत्मा का आगमन होता है। नया शरीर प्रारम्भ होता है। हम सभी आत्मायें हैं। इस संसार के सभी लोग इस सत्य को भूल गये हैं। भौतिकता में बहुत संलग्न हो गये हैं। इसलिए क्या हो रहा है- सांसारिक इच्छाओं के पीछे मनुष्य भाग रहा है। कोई धन-संपदा के पीछे भाग रहा है, कोई पद पॉजिशन के पीछे भाग रहा है। उसको आत्म उन्नति का ख्याल ही नहीं है।
अब इस आत्मा में तीन मुख्य शक्तियां हैं। मन-बुद्धि और संस्कार। संस्कार माना हमारी आदतें, हमारी जो नेचर हो जाती है। मन, इसके द्वारा हम सोचते हैं। माइंड इज़ द पॉवर ऑफ थॉट, पॉवर ऑफ थिंकिंग। ये सोचने
की शक्ति है, संकल्प शक्ति है। और बुद्धि, पॉवर ऑफ विज़डम, पॉवर ऑफ विज़वुअलाइज़ेशन, पॉवर ऑफ जजमेंट। ये हमारी बुद्धि का काम है। मन और बुद्धि दोनों मिलकर काम करते हैं। मन, इसमें संकल्पों की एक गति होती है। किसी का मन धीमी गति से चलता है, किसी का तेज़ गति से चलता है। योगियों का मन धीमी गति से चलते-चलते उसकी गति और स्लो डाउन हो जाती है। और जो चिंताओं में रहते हैं, परेशानियों में रहते हैं, मोबाइल पर ज्य़ादा इनफॉर्मेशन कलेक्ट करते हैं उन सबका मन फास्ट हो जाता है, वो बहुत सोचते रहते हैं। लेकिन एक इम्र्पोटेंट फैक्टर है मानसिक रोगों का। आगे बढऩे से पहले मैं बता दूं, मन और बुद्धि और तीसरी चीज़ है ब्रेन। हमारी मेडिकल साइंस इन तीनों में डिफ्रेंस केवल इतना ही कर पायीं थी कि सोचते रहे कि एक हिस्सा माइंड है, दूसरा हिस्सा बुद्धि है, उसमें सब्कॉन्शियस माइंड, अनकॉन्शियस माइंड, कॉन्शियस माइंड ये सब व्याख्यायें बहुत कर दीं। पर मन आत्मा की शक्ति और ब्रेन शरीर की शक्ति है। अलग-अलग कर लें दोनों को। आत्मा न हो तो शरीर डेड है। अब मन और बुद्धि दोनों का सीधा सम्बन्ध ब्रेन से है। सिम्पल भाषा में जान लें ब्रेन हमारा कंप्यूटर है शरीर को चलाने वाला। लेकिन कंप्यूटर आपे ही तो काम नहीं करते चाहे वो सुपर कंप्यूटर हो, चाहे सुप्रीम कंप्यूटर। उसके लिए एक ऑपरेटर की ज़रूरत पड़ती है। इसी तरह मन-बुद्धि इसको ऑपरेट करते हैं।
बस यहाँ कन्फ्यूज़न हुआ, रोग मन में है और इलाज ब्रेन का किया जा रहा है। थोड़ा फायदा होता है फिर वैसा का वैसा हो जाता है। किसी का तो डल ही हो जाता है। किसी का ब्रेन थोड़ा समय एक्टिव रहता है, कईयों का फिर कुछ साल भी एक्टिव रहता है फिर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। तो हमें मन के इलाज की भी ज़रूरत है। जैसी हमारी मन की स्थिति होती है वैसी ही ब्रेन की स्थिति होती है। यानी जैसा मन वैसा ब्रेन। यानी मन की शक्ति ही ब्रेन का निर्माण करती है। मन ही ब्रेन को अफेक्ट करता है। अच्छे संकल्प हैं मन में तो ब्रेन की स्थिति अच्छी और पॉवरफुल, जितने पॉवरफुल थॉट्स हमारे मन में होंगे ब्रेन उतना ही पॉवरफुल होगा। और वैसे ही हमारे वायब्रेशन होंगे। जितनी निगेटिव थिंकिंग होगी, कमज़ोर विचार होंगे, हताशा-निराशा के विचार होंगे उतना ही ब्रेन भी धीरे-धीरे कमज़ोर होता जायेगा। और इससे बढ़ते हैं मानसिक रोग।
मेडिकल साइंस में भी ब्रेन के डॉक्टर अलग, न्यूरोसर्जन कहते हैं, न्यूरोफिजि़शियन कहते हैं; और मानसिक रोगों के डॉक्टर अलग हैं जो साइकेट्रिक डिजीज को ट्रिट करते हैं। वो उनका अलग सब्जेक्ट, वो उनका अलग सब्जेक्ट, तो दोनों को मिलाकर एक साथ अगर काम करेंगे, तो शायद मानसिक रोगों पर कन्ट्रोल पाया जा सकेगा।

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