परमात्म ऊर्जा

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जैसे सच्चे भक्त लोग जो होते हैं वह भी दुनिया की तुलना में, जो दुनिया वाले नास्तिक, अज्ञानी लोग विकर्म करते हैं, विकारों के वश होते हैं, उनसे काफी दूर रहते हैं। क्यों? कारण क्या होता है कि जो नवधा अर्थात् सच्चे भक्त हैं वह सदैव अपने सामने अपने इष्ट को रखते हैं। उनको सामने रखने कारण कई बातों में सेफ रह जाते हैं और कई आत्माओं से श्रेष्ठ बन जाते हैं। जब भक्त भी भक्ति द्वारा इष्ट को सामने रखने से नास्तिक और अज्ञानी से श्रेष्ठ बन सकते हैं, तो ज्ञानी तू आत्माएं सदा अपने श्रेष्ठ मर्तबे और कत्र्तव्य को सामने रखें तो क्या बन जाएंगी? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ आत्माएं।
तो अपने आप से पूछो, देखो कि सदा अपना मर्तबा और कत्र्तव्य सामने रहता है? बहुत समय भूलने के संस्कारों को धारण किया, लेकिन अब भी बार-बार भूलने के संस्कार धारण करते रहेंगे तो स्मृति स्वरूप का जो नशा व खुशी प्राप्त होनी चाहिए वह कब करेंगे? स्मृति स्वरूप का सुख व स्मृति स्वरूप की खुशी का अनुभव क्यों नहीं होता है? उसका मुख्य कारण क्या है? अभी तक सर्व रूपों से नष्टोमोहा नहीं हुए हो। नष्टोमोहा हैं तो फिर भले कितनी भी कोशिश करो लेकिन स्मृति स्वरूप में आ जाएंगे। तो पहले क्रक्रनष्टोमोहा कहां तक हुए हैंञ्जञ्ज यह अपने आपको चेक करो। बार-बार देह अभिमान में आना यह सिद्ध करता है- देह की ममता से परे नहीं हुए हैं व देह के मोह को नष्ट नहीं किया है। नष्टोमोहा ना होने कारण समय और शक्तियां जो बाप द्वारा वर्से में प्राप्त हो रही हैं, उन्हों को भी नष्ट कर देते हो, काम में नहीं लगा सकते हो। मिलती तो सभी को हैं ना।
जब बच्चे बने तो जो भी आप की प्रॉपर्टी व वर्सा है उसके अधिकारी बनते हैं। तो सर्व आत्माओं को सर्व शक्तियों का वर्सा मिलता ही है लेकिन उस सर्व शक्तियों के वर्से को काम में लगाना और अपने आप को उन्नति में लाना, यह नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार होता है।
इसलिए बेहद बाप के बच्चे और वर्सा हद का लेवें, तो क्या करेंगे? बेहद मर्तबे के बजाय हद का वर्सा व मर्तबा लेना- यह बेहद के बच्चों का कत्र्तव्य नहीं है। तो अभी भी अपने आपको बेहद के वर्से के अधिकारी बनाओ।

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