“श्राद्ध करने से पूर्वजों को मिलती है शांति” – बी.के. राम सिंह, रेवाड़ी

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दुनिया भर में हिंदू श्राद्ध 2023 की शुरुआत हो चुकी है, जिसे वैकल्पिक रूप से श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है।  यह शुभ चरण भारतीय माह भाद्रपद के अंतिम पखवाड़े में आता है, जिसे भादो भी कहा जाता है और 14 अक्टूबर 2023 को इसकी समाप्ति होगी। हिंदूओ को पितृपक्ष के दौरान, अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने और अपने दिवंगत प्रियजनों के प्रति श्रद्धा दिखाने का अवसर मिलता है अर्थात इन दिनों वर्ष की सबसे पवित्र अवधि के रूप में सम्मानित किया जाता है। ये मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध या पित्रों को तर्पण विधि विधान से देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृदोष समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार जो परिजन अपना शरीर त्याग कर चला जाता है, उसकी आत्मा की शांति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है। वर्ष के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को घर के पूर्वज का देहांत हुआ हो, उनका श्राद्ध कर्म, पितृपक्ष की उसी तिथि को किया जाता है। लेकिन जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं रहती या किसी कारण से श्राद्ध नहीं कर पाते, ऐसे ज्ञात अज्ञात अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति के साथ श्राद्ध पितृ आखरी में अमावस्या को किया जा सकता है।

 पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। जब पितरों की आशीर्वाद मिलती हैं अर्थात उनकी कृपा से मनुष्य जीवन में घटने वाली अनेक परेशानियां, रुकावटें दूर हो जाती हैं और पितरों का सम्मान करने वाले व्यक्तियों को अनेक कष्टों से निजात मिलती है। उनका श्रद्धापूर्वक तर्पण करने से वे प्रसन्न होते हैं और हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप से उपस्थिति दर्शाते हैं एवम् तर्पण भी स्वीकार करते हैं। इस तरह हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, तो हमारे घर परिवार में भी सुख, शांति का माहौल बना रहता है।

बुजुर्गो के जीते जी उनसे अच्छा व्यवहार भी श्राद्ध है: श्राद्ध सभी लोग अपने मात-पिता और बुजुर्गों का भले ही मृत्यु के बाद करते आए हैं लेकिन श्रध्दा जीते जी रखी जा सकती है अर्थात अपने माता पिता और बुजुर्गों से अच्छा व्यवहार करना और समय-समय पर उनका दुख सुख पूछते रहना भी उनको पूजना है। इस समयाभाव वाले युग में हमने अपने बुजुर्गों को पूजना तो दूर, उनका हाल चाल पूछना भी छोड़ दिया है।

ऐसे में उनके रहते किया गया प्रेम व्यवहार भी किसी अनुष्ठान, किसी पूजा और किसी सत्कर्म से कम नहीं है।  श्राद इसलिए आवश्यक है कि वह दिवंगतो को तृप्त करता है और श्रध्दा इसलिए जरुरी है क्योंकि वह जीवित लोगों को तृप्त करती है। अतः बुजुर्गों का श्राद्ध व तर्पण करने से तो आपको आशीर्वाद व तृप्ति मिलती ही है परंतु उनके जीते जी उनसे दुआएं प्राप्त कर ले तो सच्चा श्राद्धइससे बढ़कर कुछ नहीं है।

जो व्यक्ति पूर्णमासी के दिन श्राद्ध आदि करता है, उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र पोत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है एवं श्राद्ध करने वाले की प्राप्त वस्तु नष्ट नहीं होती।

श्राद्ध किन पूर्वजो तक सीमित है? शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध केवल तीन पीढियां तक का ही होता है अर्थात देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान,  दादा को रुद्र समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी बताया है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढियां तक ही सीमित रहती है। तर्पण पुत्र, पोत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है। जिनके यहां कोई पुरुष नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में है तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं।

श्राद्ध करना क्यों जरूरी है? श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की संतुष्टि के लिए, उनकी अनंत तृप्ति के लिए,  पूर्वजों का शुभाशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, प्रत्येक मनुष्य को अपने पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। श्राद्ध करते समय हड़बड़ी या जल्दबाजी, क्रोध आदि न करें तथा साफ, सफाई, शांतचित, धैर्य, सम्मानपूर्वक, शांतवृत्ति के साथ श्राद्ध करें। तिल, चावल, जौ, जल, मूल, फल आदि सभी का प्रयोग करें। श्राद्ध के इन दिनों में दान करने से भी पितृपक्ष तृप्त होते हैं और उन्हें शांति मिलती है तथा हमें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पितरों की कोई इच्छा अधूरी तो नहीं रह गई: हम सभी अपने पितरों के श्राद्ध बड़ी शुभ भावनाओं के साथ करते हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के कर्मकांड हमारे जीवन में विशेष स्थान बन कर रहे हैं ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी उनसे जुड़े रहें अर्थात हमारे पितरों से भावनात्मक रूप से जुड़े रहने के लिए पितृपक्ष का या श्राद्धपक्ष में बहुत प्रेरित भी करते हैं। अब हमारे परिवारों में जो भी घर का सदस्य गुजर चुका है, उनके ऐसे कौन-कौन से अधूरे कार्य रह गए, जिनकी उन्होंने इच्छा प्रकट की होगी? परंतु वे अधूरा छोड़ चले गए। यदि हम उनकी इच्छाओं को, इन श्राद्ध के दिनों में पूर्ण करने का संकल्प लेकर अभी करें या फिर बाद में, तो यह भी अपने आप में एक श्राद्ध ही है, जो हमारे पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलेगी और शांति भी, तथा हमारे परिवार में सुख, शांति, आनंद, प्रेम, गुण और शक्तियों का प्रवाह बना रहेगा।

                           

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