माँ-बाप अपने बच्चे को छोटे से बड़ा कर पढ़ाते हैं, सिखाते हैं और समझाते हैं। और जब बच्चा तैयार हो जाता तो उनकी भी कुछ उससे अपेक्षायें होती हैं कि वो अपने पिता का कार्य सम्भाले, उसको आगे बढ़ाये। इसी तरह परमपिता परमात्मा भी बच्चों को एडॉप्ट कर सिखाते हैं, पढ़ाते हैं, समझाते हैं और उसको लायक बनाते हैं। जब बच्चे तैयार हो जाते हैं तो उनकी भी कुछ अपेक्षायें होती हैं। परमपिता परमात्मा की भी अपने बच्चों से चाहना है कि वे उनके कत्र्तव्य को सम्भालें और आगे बढ़ाएं।
वर्तमान में परमपिता परमात्मा की हम बच्चों से आश है, जैसे साकार रूप में हमने ब्रह्मा बाबा को देखा, उन्हें जब शिव बाबा से सत्य ज्ञान मिला, तो वे मन सहित सर्वस्व समर्पण होकर शिव पिता के कत्र्तव्य को आगे बढ़ाने में लग गये और उसे करके दिखाया। वे पूर्ण रूप से बेहद के वैराग्य की स्थिति में स्थित हो गये। मेरा कुछ भी नहीं, ये सब परमात्मा की देन है। मुझे सम्पूर्ण रूप से निमित्त बन साकार रूप में उदाहरण बनना है। जो कि हम सब जानते हैं कि ब्रह्मा बाबा ने ऐसा करके दिखाया। उनके सानिध्य में रहते हुए हमने भी ब्रह्मा बाबा और परमपिता शिव बाबा की पालना ली, उनसे सीखा, उन्होंने समझाया, मार्गदर्शन किया। तो हम बच्चों का भी ये कत्र्तव्य है कि हम भी उनके जैसा बन संसार के सामने उदाहरण पेश करें। ये उनकी हमारे प्रति शुभ कामना है।
वर्तमान समय भौतिक चकाचौंध में साधनों का बोलबाला है। सुख के साधन उपलब्ध हैं। किंतु सभी के जीवन में शांति, खुशी और चैन का अभाव है। जहाँ देखो चाहे सम्बंधों में, व्यवहार में, परिवार में और वातावरण में शांति और खुशी की कमी दिखाई देती है। ऐसे में हम सबको वैराग्य वृत्ति को धारण करना है। वैराग्य वृत्ति एकमात्र ऐसा टूल है जिससे ही मन-इच्छित सुख, शांति प्राप्त होती है। जब हम दिल से वैराग्य वृत्ति में स्थित होकर व्यवहार में आते हैं तो हमें कुछ लेने या पाने की कामना नहीं रहती। बल्कि हमें रहम भाव आता कि जो भी दु:खी हैं, अशांत हैं, इच्छाओं के वशीभूत हैं, उन सबको भी इनसे छुड़ाएं।
वैराग्य वृत्ति दिल से जब होती है तभी दिल खुश होता है। जब हम ऐसी स्थिति में होते हैं तो दिल की खुशबू दूसरे के दिल तक पहुंचती है। मन से वैराग्य वृत्ति होने पर वो चैन दूसरे के मन तक भी पहुंचता है। जैसे ब्रह्मा बाबा ने कहा और दिल से समर्पण किया, सबकुछ तेरा और वो ट्रस्टी होकर रहे। मन से भी उसको स्वयं के प्रति यूज़ नहीं किया। ऐसी वैराग्य वृत्ति हम बच्चों में जब नयन में, मन में, चैन में, चलन में दिखाई देगी तब ही हम भी दूसरे को दु:ख से मुक्त कर सकेंगे। आज के समय की मांग है, हम इस तरह की पॉवरफुल तपस्या कर मंसा सेवा के निमित्त बनें। अभी हमारे मन से ऐसे भाव निकलें जो दूसरों के मन को भी स्पर्श हो, अनुभव हो, उसकी आवश्यकता है। निरंतर इस स्थिति में स्थित रहकर वायुमण्डल बनाने की ज़रूरत है। जैसे हमने ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के साकार संस्थापक पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा बाबा को देखा, वे आदि से अंत तक उसी स्थिति में स्थित रहे, उसका वायब्रेशन आज भी मधुबन में महसूस होता है, सबको आकर्षित करता है। सभी को शांति स्तम्भ पर पहुंचने पर शांति का अनुभव होता और उन जैसा बनने की इच्छा प्रखर होती है, सुकून मिलता है। ऐसे ही हमें भी वैराग्य वृत्ति धारण कर सच्ची साधना व तपस्या करनी है। कहते हैं, सन शोज़ फादर। तब और लोग कहेंगे, इन्हों के जीवन में खुशी और शांति झलकती है, इन्हों को ऐसा किसने बनाया! तब वे भी अपनी व्यर्थ की इच्छाओं से मुक्त होकर अच्छा बनने की हिम्मत करेंगे। ब्रह्मा बाबा ने हमें सिखाया, हमारा जीवन सुखमय, शांतिमय और खुशियों से भरा बनाया, तो हमारा दायित्व है, हम भी उनके उसूलों को धारण कर दूसरे जो दु:ख, अशांति से ग्रस्त हैं उनपर रहम करें और उन्हें उनसे मुक्ति दिलायें। तब दु:ख का खात्मा होगा और ये संसार सुखमय बनेगा।