अपने को स्टूडेंट समझ हरेक से सीखते चलें

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मुझे हर एक से स्टूडेन्ट बन गुण ग्रहण करने हैं, स्टडी करनी है, इतना होशियार होना है चाहे कोई छोटा काम करता, चाहे बड़ा करता है। चाहे कोई भाषण करता, चाहे कोई कर्मणा सेवा करता लेकिन वह कितना उस बात में परफेक्ट है, मुझे उसकी परफेक्शन अपने में लानी है।

हमको नॉलेज मिली है कि तुम आत्मा इस मस्तक पर मणि की तरह चमकती हुई बिन्दु हो। तुम उस मणि अर्थात् बिन्दु को ही देखो और उस बिन्दु में कितने विशेष गुण हैं, कितनी उसमें रूहानियत की शक्ति है, वही देखो। क्योंकि कोई भी बात पहले बुद्धि में आती फिर वृत्ति में चली जाती है। तो वह वृत्ति फिर दृष्टि से काम करेगी। तो यह वृत्ति और दृष्टि दूसरों को कितना प्रेम देती, रिस्पेक्ट देती, दूसरों के प्रति कितनी सद्भावना है! यह सब नॉलेज से रियलाइज़ हो जाता है। यदि अन्दर से कुछ और भावना हो और बाहर से दिखावटी भावना हो – तो भी फील होगा। दिल से हम किसको कितना लव देते हैं या कॉमन रूप से लव रखते हैं – इन दोनों का अन्तर यह नॉलेज ही स्पष्ट करती है। इसीलिए ये नॉलेज हमको हरेक बात में निर्णय शक्ति देती है। तो आत्मिक स्मृति और परमात्म स्मृति का यही आधार है। क्योंकि बुद्धि के क्लीयर होने से ही स्मृति पॉवरफुल होती जाती है – ये दो सब्जेक्ट(ज्ञान और योग) जीवन के मूल आधार हैं। जितना-जितना इसकी गहराई में जाते हैं, स्टडी करते हैं, कॉन्शियस में रहते हैं, उतना दैवी गुणों की धारणा होती है, सूक्ष्म संस्कार परिवर्तन होते हैं क्योंकि रियलाइज़ेशन की शक्ति आ जाती है। अत: सबसे पहले यह नॉलेज खुद को बहुत फायदा देती है।
आज प्रत्येक मनुष्य जीवन में अपनी-अपनी समस्याओं में उलझा रहता है। कभी तबियत ठीक नहीं होगी तो प्रॉब्लम, परिवार की समस्या आई तो प्रॉब्लम, आपसी कोई बात हुई तो भी प्रॉब्लम, जिसकी लाइफ में जितनी प्रॉब्लम आती, उतना वह मनुष्य मूँझा रहता है। कईयों की लाइफ ऐसी है- ठीक हैं चल रहे हैं, उदास हैं, मूंझे हुए हैं, उनको अपनी लाइफ की वैल्यू नहीं, लाइफ का कोई हल नहीं, कोई ऊंचा आदर्श नहीं, कोई उम्मीद नहीं। लेकिन यह ज्ञान हमें जीवन की हर प्रॉब्लम का हल देता है। इसलिए आप लोग जितना-जितना इस ज्ञान-योग की स्टडी करते जायेंगे उतनी सफलता मिलती जायेगी। जैसे वैज्ञानिक खूब स्टडी करते, नई नई खोजें करते, सफल होते जाते, अनेक साधन तैयार करते जाते तो जितनी उसकी गहराई है उतनी इस साइलेन्स की शक्ति व योग की शक्ति की भी गहराई है। यह बहुत बड़ी शक्ति है, इस शक्ति के आधार से हम अपनी जीवन को जैसा दिव्य बनाना चाहें वैसा बना सकते हैं।
श्रेष्ठ कर्म के लिए सबसे पहले चाहिए दैवी गुणों की धारणा। दैवीगुणों की धारणा में कमी आने का मूल कारण है इगो(अहंकार)। अनुभव कहता है ज्ञान बहुत सुन लो, योग बहुत अच्छा लगाओ, बाबा को प्यार करो परन्तु अगर अन्दर में इगो है तो वह सब बातों को ढक देगा, नुकसान कर देगा। सबसे पहले हमने देखा कि पिताश्री जिनके पास नॉलेज की इतनी बड़ी अथॉरिटी थी, इतनी हम बच्चों से मेहनत करते, समझाते लेकिन मैंने कभी उनके व्यवहार में इगो नहीं देखा। इगो अभिमान पैदा करता। ईष्र्या भी पैदा करता क्योंकि देह अभिमान से इगो आता, नशा चढ़ता है। हमें कभी इगो न आये उसकी अनेेक युक्तियां बाबा ने बताई हैं। पहले तो हमारी बुद्धि में रहता इस ज्ञान की पढ़ाई में सदैव स्टूडेंट हूँ, जितना हम पढ़ाई करें उतनी थोड़ी है। दूसरे सब समझते हम सब स्टूडेन्ट पढ़ाई पढ़ रहे हैं। मैं होशियार हूँ यह मैं कभी नहीं सोचती। मेरे से बहुत होशियार हैं। जितना जो होशियार है मुझे उनसे सीखना है। हर एक कोई किसमें होशियार हैं, कोई किसी बात में होशियार है। मुझे हर एक से स्टूडेन्ट बन गुण ग्रहण करने हैं, स्टडी करनी है इतना होशियार होना है चाहे कोई छोटा काम करता, चाहे बड़ा करता है। चाहे कोई भाषण करता, चाहे कोई कर्मणा सेवा करता लेकिन वह कितना उस बात में परफेक्ट है, मुझे उसकी परफेक्शन अपने में लानी है। जब मैं बुद्धि में रखती कि हर बात में मुझे परफेक्ट होना है तो कौन किस बात में परफेक्ट है, वह मुझे देखना है। तो हर एक से मैं विशेषता उठाती हूँ। ऐसा नहीं सोचती कि यह ऐसा है, वैसा है। मैं होशियार हूँ या मैं यह नहीं सोचती दादी हूँ। हम सदैव स्टूडेंट हैं।
कोई का कैसा भी व्यवहार है, चलन है, दृष्टि-वृत्ति है, हमें उनसे सीखना है। बाप शिक्षक है पर हम हर एक से शिक्षा लें तो हमारी दृष्टि ऐसी रहती जिससे न खुद में इगो आता, न कभी किसी के लिए नफरत।

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