परमात्म ऊर्जा

0
236

जो अधीन होता है वह सदैव मांगता रहता है, अधिकारी जो होता है वह सदैव सर्व प्राप्ति स्वरूप रहता है। बाप के पास सर्व शक्तियों का खज़ाना किसके लिए है? तो जो जिन्हों की चीज़ है वह प्राप्त न करें? यही नशा सदैव रहे कि सर्व शक्तियां तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। तो अधिकारी बनकर के चलो। ऐसा सदैव बुद्धि में श्रेष्ठ संकल्प रहना चाहिए। अगर संकल्प श्रेष्ठ है तो वचन और कर्म में भी नहीं आ सकते। इसलिए संकल्प को श्रेष्ठ बनाओ और सदैव सर्वशक्तिवान बाप के साथ बुद्धि का संग हो। ऐसे सदैव संग के रंग में रंगे हुए हो? अनुभव करते हो व अभी जाने के बाद अनुभव करेंगे? सदैव यही समझो कि सोचना है व बोलना है व करना है तो कमाल का, कॉमन नहीं। अगर कॉमन अर्थात् साधारण संकल्प किये तो प्राप्ति भी साधारण होगी जैसे संकल्प वैसी सृष्टि बनेगी ना! अगर संकल्प ही श्रेष्ठ न होंगे तो अपनी नई सृष्टि जो रचने वाले हैं उसमें पद भी साधारण ही मिलेगा। इसलिए सदैव यह चेक करो- हमारा संकल्प जो उठा वह साधारण है व श्रेष्ठ? साधारण संकल्प व चलन तो सर्व आत्मायें करती रहती हैं। अगर सर्वशक्तिवान की सन्तान होने के बाद भी साधारण संकल्प व कर्म हुए तो श्रेष्ठता व विशेषता क्या हुई? मैं विशेष आत्मा हूँ, इस कारण हमारा सभी कुछ विशेष होना चाहिए। अपने परिवर्तन से आत्माओं को अपनी तरफ व अपने बाप के तरफ आकर्षित कर सको; अपने देह के तरफ नहीं, अपनी अर्थात् आत्मा की रूहानियत तरफ। तुम्हारा परिवर्तन सृष्टि को परिवर्तन में लायेगा। सृष्टि का परिवर्तन भी श्रेष्ठ आत्माओं के परिवर्तन के लिए रूका हुआ है। परिवर्तन तो लाना है ना, कि यह साधारण जीवन ही अच्छी लगती है?
यह स्मृति, वृत्ति और दृष्टि अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति व कोई भी वस्तु आकर्षित नहीं कर सकती। अगर आकर्षित करती है तो समझना चाहिए कि स्मृति में व वृत्ति में व दृष्टि में अलौकिकता की कमी है। इस कमी को सेकण्ड में परिवर्तन में लाना है। ऐसी हिम्मत है? सोचने में भी जितना समय लगता है, करने में इतना समय न लगे। ऐसी हिम्मत है? तो जो साहस रखने वाले हैं उन्हों के साथ बाप सदा सहयोगी है, इसलिए कभी भी साहस को छोडऩा नहीं। हिम्मत और उल्लास सदा रहे। हिम्मत से सदा हर्षित रहेंगे। उल्लास से क्या होगा? उल्लास किसको खत्म करता है? आलस्य को। आलस्य भी विशेष विकार है। जो पुरुषार्थी पुरुषार्थ के मार्ग पर चल पड़े हैं उन्हों के सामने वर्तमान समय माया का वार इस आलस्य के रूप में भिन्न-भिन्न तरीके से आता है। तो इस आलस्य को खत्म करने के लिए सदा उल्लास में रहो।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें