मुख पृष्ठदादी जीदादी जानकी जीबाबा के नज़दीक आओ तो शीतल बनने का अनुभव हो…

बाबा के नज़दीक आओ तो शीतल बनने का अनुभव हो…

शिव पिता का ध्यान करना, यही ज्ञान है। ज्ञान कहता है, अपने ऊपर पूरा ध्यान रखो। बाबा का ध्यान तब रहेगा जब अपने पर ध्यान रहेगा। हमारी याद कहाँ तक है, हरेक अपने आपको टेस्ट कर रहा है। सबकी टेस्ट चल रही है। बुद्धि एक मिनट तो क्या, एक सेकण्ड में शान्त हो जाए। बाबा ने देखा बच्चे अभी तक मिनट-मिनट का ध्यान नहीं रखते हैं। समय थोड़ा है, जाना उस पार है लेकिन अभी तक किनारा ही नहीं छोड़ा है तो पार कैसे पहुंचेंगे? नैया को हमेशा पानी में रखते, गैरेज में नहीं रखते हैं, वह पानी में हिलती रहती है। हमारी नैया भी सागर के बीच है, माया की लहरें जबरदस्त हैं। वह किसी का साथ भी लेने नहीं देती हैं। बाबा यह सब अनुभव कराता है, जिन्होंने किनारा छोड़ा ही नहीं है, तो भले समझते रहें कि हम जा रहे हैं लेकिन वहीं के वहीं खड़े हैं। कर्मबन्धन की जो बड़ी रस्सियाँ हैं, यहाँ आते हैं मुरली सुनते हैं तो अच्छा लगता है, पर आगे बढऩे का कोई लक्ष्य ही नहीं है। याद ही नहीं है कि घर जाना है। इतना पार करके आये हैं, बाकी अभी थोड़ा रहा है। शरीर पुराना है। तन, मन, धन, जन चारों ही स्वस्थ हों। स्थिति ऐसी हो चारों का साथ हो, अधीनता न हो। जब नैया पर बैठे हैं तो और कोई सहारा ले नहीं सकते हैं। हिलने वाले का साथ कभी नहीं लेना चाहिए।
इतनी अच्छी दवाई है, टाइम पर ले लो। याद में रहने के लिए हर टाइम की विधि अपनी है। सवेरे उठते ही निर्वाणधाम का उठाने वाला शान्ति में खींचता है। खींचने वाला शान्ति का सागर है। वह शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर जब यहाँ आता है, हमको अपना बनाता है तब हमें पता चलता है। सागर नाम क्यों पड़ा है? गहराई में लेकर जाता है। सागर के किनारे भी आये तो वन्डरफुल ठण्डक होती है। बाबा के नज़दीक आओ तो शीतल बनने का अनुभव हो जाता है। शीतलता का अनुभव होता है, ज्ञान, प्रेम और शान्ति में। सागर को देखते-देखते कितना अच्छा है, कितना मीठा है, लोगों के लिए खारा है। नदी में नहाना आसान है, पर सागर में! सागर को समझना, उसकी गहराई में जाना, बिल्कुल प्युरिफाय हो जाना, तभी कहते हैं पतित-पावन हैं। सागर की गहराई में वो जायेंगे जो समझेंगे पतित हूँ, मुझे पावन बनना है। देवताएं सम्पूर्ण निर्विकारी पूज्य थे, महात्माएं वैसे नहीं हैं।
एक पूज्य, दूसरा पुजारी। अगर कोई न पूज्य है, न पुजारी है माना एकदम विकारी है। वह कभी मन्दिर-मस्जिद में भी नहीं जायेगा। बस खाया-पिया, पैसा कमाया, गंवाया। परंतु बाबा हमको पुजारी से पूज्य बना रहा है। हम जल्दी मानने लग पड़ते हैं, यह हमारा धर्म प्राय: लोप हो गया था, तभी तो कहता है फिर से एक धर्म की स्थापना करता हूँ। कल्प पहले बाबा के बच्चे को स्मृति जल्दी आती है। बाबा के सामने आया तो स्मृति आई, ज्ञान सुना तो ब्राह्मण बन गया।

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