अम्बिकापुर, (छ.ग.): ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा आयोजित चैतन्य देवियों के मनोहारी झांकी में दुर्गा के नौ रूपों का चैतन्य देवियों के रूप में साक्षात् दर्शन करने के लिये नवरात्रि के छठवें दिन भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा।
नवभारत के ब्यूरो चीफ भ्राता सुधीर पाण्डे जी, बहन शारदा अग्रवाल, भ्राता सिद्धार्थ अग्रवाल जी, सेवानिवृत ग्रामीण बैंक (छ.ग.) भ्राता अजय विश्वकर्मा जी, सेवानिवृत ग्रामीण बैंक (छ.ग.) तेजपाल शर्मा जी एवं सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी के द्वारा चैतन्य देवियों की झाँकी का द्वीप प्रज्जवलित किया गया।
इस मौके पर नवभारत के ब्यूरो चीफ भ्राता सुधीर पाण्डे जी आदिशक्ति दुर्गा के साक्षात् नौ रूपों का अद्भूत प्रस्तुति की महिमा करते हुये कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ संस्था द्वारा प्रतिवर्ष बहुत लगन और तन्मयता के साथ जीवन्त झाँकी के माध्यम से आने वाले नई पीढ़ी को संदेश दे रही है, कि आज भी महिला अपने त्याग, तप, संयम और योग के कारण सशक्त है। इसी कारण ही मातृशक्ति को जननी कहा जाता है क्योंकि मातृशक्ति अपने हर कर्म से लोगों को प्रेरणा देती रहती है, कि नारी सब कुछ करती है और सम्पूर्ण सशक्त बनकर अपना, समाज व राष्ट्र की रक्षा स्वयं कर सकती है।
सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी शारदीय नवरात्रि पर्व की शुभकामना एवं मंगलकामना देते हुये कहा कि जैसे आदिशक्ति माँ दुर्गा ने अपने त्याग एवं तप के बल से परमात्मा शिव से शक्ति प्रदान कर आदिशक्ति जगदम्बा बन गयी, उसी प्रकार से हम सभी परमपिता परमात्मा शिव के द्वारा सिखाये गये राजयोग की शिक्षा को सीखकर एवं अपने जीवन में सदगुणों रूपी दैवीगुणों को धारण कर, स्वयं को बुराईयों एवं दुर्गुणों से मुक्त करके, परमात्मा से शक्ति प्राप्त करें तो विषम परिस्थितियों में भी अपने मन- बुद्धि को स्थिर, एकाग्र एवं शांत रख सदा खुश रहेंगे यही नवरात्रि पर्व संदेश देता है। आगे उन्होंने आदिशक्ति के विभिन्न रूपों का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुये कहा कि दुर्गा अर्थात् जो परमपिता परमात्मा से सम्बन्ध जोड़कर अपने मन को दुर्गुणों से दूर करें, गायत्री माना मन को सदा हर्षाने वाली अर्थात् सदा खुश रहने वाली, उमा माना अपने मन को सदा उमंग- उत्साह से भरपूर रखना, संतोषी माना हर विषम परिस्थिति में अपने मन को संतुष्ट रखने वाली, काली माना वो महाकाली जो अपने विकारों पर विकराल रूप धारण करके अपने अन्दर के आसुरी शक्ति को समाप्त करें यही काली का वास्तविक रूप है, लक्ष्मी माना ज्ञान धन को धारण करने वाली तथा वैष्णवी माना हमारे अन्दर के जो विकार रूपी विष है काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार इत्यादि विषयों पर परमात्मा शिव से सम्बन्ध जोड़कर समाप्त करना, साथ ही साथ सबसे ऊपर ज्ञान गंगा का प्रतीक है कि परमपिता परमात्मा जो ज्ञान का सागर है, उनसे ज्ञान को अपने जीवन में धारण करके ही विकारों पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।
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