कर्मों की गति को हमेशा सामने रखें

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जैसे पाण्डव भवन का महत्त्व है ऐसे अब हमारे जीवन का भी महत्त्व है। स्थान का महत्त्व तो है, लेकिन स्थान के साथ दूसरी बात होती है स्थिति। स्थिति अगर बहुत श्रेष्ठ है तो स्थान का महत्त्व होता है। तो हमको चेक करना है कि स्थान के महत्त्व के हिसाब से स्थिति भी इतनी महान है कि साधारण है? मैजारिटी सेवा के लिए ही सरेण्डर हुए हैं लेकिन सिर्फ कर्मकर्ता हो या कर्म करते हुए जो बाबा स्थिति की बात कहते हैं, वो है? क्योंकि कर्म के बिना तो कोई रह नहीं सकता, इसलिए बाबा तो कहते हैं जितना हो सके बिजी रहो क्योंकि मन सेकण्ड में यहाँ से अमेरिका तक बिना टिकट के पहुंच सकता है। जो भी स्थान आपने देखे होंगे, वहाँ अगर पहुंचने चाहो तो मन से वहाँ एक सेकण्ड में पहुंच सकते हो। तो कर्मणा सेवा जितना रूचि से करेंगे, यज्ञ सेवा समझ करके करेंगे उतना पुण्य का खाता बनता रहेगा। सेवा तो हम सब करते हैं, जो भी डयूटीज़ हैं, वो हर एक की अपनी-अपनी हैं लेकिन सिर्फ सेवा करते हैं या सेवा करते पुण्य जमा करते हैं? अगर कर्म करते हुए हमारे पुण्य का खाता जमा हो रहा है, तो उसकी निशानी तन-मन में बहुत खुशी होगी और भरपूरता का नशा होगा। जैसे कोई साहूकार होता है, तो उनकी शक्ल चाल-चलन से समझ जाते हैं कि यह रॉयल घर का है। तो बाबा भी आजकल हमसे क्या चाहता है? बाबा कहते हैं जितना आगे चलेंगे, समय समीप आता जा रहा है और आता जायेगा। फिर आपको वाणी की सेवा करने का टाइम नहीं होगा। न सुनने वालों को टाइम होगा, न सुनाने वालों को, लेकिन अन्त में आपकी सेवा या तो चेहरे से,चलन से या तो मन की शक्ति यानी मन्सा शक्ति के आधार से होगी।
तो सकाश देने की जो शक्ति है वो पहले हमारे में भरी हुई हो तभी तो हम दूसरों को सकाश दे सकेंगे। तो अभी यह चेक करो कि इतनी शक्तियां हमारे पास जमा हैं, जो हम शक्तियों की सकाश दूसरों को दे सकें? तो यह चेकिंग करते हो? क्योंकि बाबा ने इतना दे दिया है कि समय समीप आ रहा है और आयेगा अचानक, यह बाबा ने स्पष्ट सूचना दे दी है। तो होना अचानक है क्योंकि नम्बरवार माला है, जिसमें एक नम्बर सब तो लेंगे नहीं। तो इतनी हमारी तैयारी है? अचानक कुछ भी हो जाये, लेकिन अपने देहभान का मोह जो है, वो मुश्किल ही कम होता है। तो बाबा ने कहा है अभी अपने चेहरे और चलन से दिखाई दे कि हाँ, यह कुछ विशेष आत्मा हैं। आपके चेहरे से ही पता पड़े कि यह कोई न्यारे हैं। तो हमारी स्थिति कर्म करते हुए, कर्म की गति को जान लें कि यह श्रेष्ठ कर्म हैं, साधारण कर्म हैं या उल्टे कर्म हैं? समझो, हमको यह स्मृति नहीं रहती है कि यह यज्ञ सेवा है, साधारण रीति से जो डयूटी है वो बजा रहे हैं। तो हमारे कर्म का फल क्या मिलेगा? साधारण ही होगा ना! और यज्ञ सेवा है, यज्ञ सेवा का पुण्य कितना है, वो हमारा जमा होगा। तो कर्मों की गति को हमेशा सामने रखना चाहिए, मैं कर्म कर रहा हूँ लेकिन इस कर्म की सफलता क्या है? नहीं तो कर्म की गति ध्यान में न होने से कर्म व सेवा तो कर रहे हैं लेकिन पुण्य नहीं जमा होता है क्योंकि कर्मकर्ता तो दुनिया में भी बहुत हैं। तो जो भी ऐसे काम होते हैं जो नहीं होने चाहिए। अगर कोई ऐसे श्रीमत के विपरित कर्म करता है, तो उसको वरदान नहीं मिल सकता, श्राप मिलता है। भगवान का श्राप जिसके सिर पर आयेगा, तो उसको खुशी कैसे होगी, आगे कैसे बढ़ेगा! उसके जीवन का लक्ष्य पूरा कैसे होगा? तो हमको बहुत सावधानी रखनी चाहिए इसलिए कभी बेकायदे काम नहीं करना चाहिए क्योंकि उससे पुण्य जमा नहीं होगा।

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