मर्यादा की लकीर में रहकर ही ग्रहचारी छूटेगी

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रहमदिल आत्मा भी बनो, किसी को मदद करने की भावना भी रखो तो भी मर्यादा के अन्दर रहकर मदद करना, ये बाबा ने सिखाया है। मर्यादा का उल्लंघन करके किसी को मदद करने का प्रयत्न नहीं करना। क्योंकि जहाँ कहीं पर भी मर्यादा का उल्लंघन करके किसी को मदद करने का प्रयत्न किया, तो रावण ज़रूर उठा कर ले जायेगा

पिछले अंक में बताया गया था कि आज के समय में सबसे बड़ा प्रलोभन कौन-सा है, मोबाइल। इस प्रलोभन के कारण हम बाबा को भूल जाते हैं, बाबा से दूर हो जाते हैं…
अब वो हमसे दूर हुए तो मन का लक्ष्य विचलित हुआ। और मन का लक्ष्य विचलित होने कारण लक्ष्मण को भी उट-पटांग बातें बोलना शुरू कर दिया। तो कई बार हमारे मुख से भी जब मन परेशान है, उस प्रलोभन के पीछे है, नहीं मिल रहा है; तो मन का लक्ष्य विचलित होने कारण कुछ भी उट-पटांग बातें बोलना हम शुरू करते हैं। तो लक्ष्मण भी कहता है— ”अच्छा मैं भी जाता हूँ”’। ”धारणा” कमज़ोर हो गयी। तो वो लक्ष्मण रेखा खींच के गये, कि माँ इस रेखा से बाहर नहीं निकलना। भले मैं जाता हूँ लेकिन तुम अन्दर रहना। सीता ने भी कहा कि ठीक है मैं अन्दर रहूंगी। लेकिन जब रावण की एंट्री होती है, और रावण ने जब देखा कि लक्ष्मण रेखा इतनी पॉवरफुल है; रावण ने सोचा कि मैं तो अन्दर नहीं जा सकूँगा लेकिन इसको कैसे भी करके बाहर निकालना है। और इसलिए कहा — ”भिक्षां देदे माई”, थोड़ा कुछ दे दो, मदद कर दो। सीता मदद करने के लिए आती है कि ठीक है। कहा मैं तो अन्दर नहीं आ सकता हूँ आपको बाहर आना पड़ेगा। भावार्थ यह है कि बाबा हमें रहमदिल बनने के लिए ज़रूर कहते हैं, लेकिन रहमदिल आत्मा भी बनो, किसी को मदद करने की भावना भी रखो तो भी मर्यादा के अन्दर रहकर मदद करना, ये बाबा ने सिखाया है। मर्यादा क्रॉस करके किसी को मदद करने का प्रयत्न नहीं करना। क्योंकि जहाँ कहीं पर भी मर्यादा क्रॉस करके किसी को मदद करने का प्रयत्न किया, तो रावण ज़रूर उठा कर ले जायेगा।
तो रावण की एंट्री माना ”कोई-न-कोई मर्यादा का उल्लंघन कराना”। अमृतवेले से लेकर रात्रि तक जो बाबा ने हम बच्चों मर्यादायें दी हैं, उन मर्यादाओं का उल्लंघन करते हैं, तो रावण आता है। इसीलिए अगर किसी को मदद भी करना हो तो मर्यादा की लकीर में रहकर करो।
रावण जब सीता को उठाकर ले गया, तो फिर सीता ने क्या किया? जटायु भी आया मदद करने के लिए, लेकिन उसको भी रावण घायल कर देता है। माना मदद करने नहीं देता है। ऐसे ही, जैसे ही हम परवश हुए, मर्यादा की लकीर को क्रॉस करके मदद करना माना परवश हो जाना। और परवश होना माना, कोई-न-कोई ग्रहचारी हमारे ऊपर बैठ जाना। तो ग्रहचारी जैसे ही बैठती है माना हमारा पुण्य क्षीण हुआ। तो उसके लिए क्या करना पड़ेगा? तो सीता माता ने भी क्या किया? अपने आभूषण उतार-उतार कर फेंकना चालू किया। अर्थात् जब भी जीवन में कोई ग्रहचारी आये, तो ग्रहचारी के लिये यही कहा जाता है — ”दे दान तो छूटे ग्रहण”। दान करना शुरू करो।
चाहे क्रज्ञानञ्ज दान करो, चाहे ”योग” दान करो, चाहे सहयोग दो, चाहे स्थूल दान करो, जो भी दान कर सको आप। तो वो ग्रहचारी हल्की होने लगेगी। फिर भी सम्पूर्ण रीति से नहीं उतरेगी। इसीलिए रावण लेके गया ज़रूर, लेकिन अपने महल में नहीं रख सका। बगीचे में रखना पड़ा उसको। और उसके बाद स्पर्श तक नहीं कर सका। क्योंकि वो पवित्रता में वापिस मजबूत हो गयी। लेकिन जो दान किया, चीज़ें फेंकना शुरू किया, उस दान से इतना ज़रूर होता है कि कोई भी आत्मा गलत कर्म नहीं करा सकती हमसे। और कम से कम वहाँ त्रिजटा ज़रूर मिल जायेगी। कोई न कोई ऐसी आत्मा मिलेगी हमें जो हमारी सहयोगी या सहारा ज़रूर बन जायेगी। पुण्य करने से कम से कम ये प्राप्ति ज़रूर होगी।
उसके बाद राम ढूंढते हुए कहाँ जाते हैं? जैसे ही जंगल में आगे बढ़ते हैं, तो उन तक वो आभूषण आदि पहुँचते हैं। माना हमारा दान किया हुआ बाबा तक भी ज़रूर पहुँचता है, इसीलिए पुण्य मिलता है। लेकिन वहाँ से जाते-जाते शबरी मिलती है। और शबरी माना — जिसने झूठे बेर इकट्ठे कर के रख दिए, राम आयेेंगे तब खिलायेंगे, राम आयेंगे तब खिलायेंगे इतनी राम की याद में उसने झूठे बेर इकट्ठे किए। बाबा भी गरीब निवाज़ है। तो बाबा के बच्चे भी साधारण हैं। और इसलिए साधारण बाबा के बच्चे भी कुछ न कुछ इकठ्ठा करके बाबा के लिए, बाबा के पास जायेंगे तो वहाँ ज़रूर दे देंगे। बाबा के यज्ञ में काम आयेगा, बाबा को मिले। तो अन्दर से बाबा की लगन वाली आत्मायें और जैसे ही उन लगन वाली आत्माओं के सामने भगवान प्रकट होते हैं, कितनी खुशी उनको मिलती है और उनके एक-एक बेर को राम स्वीकार करते हैं। कभी अपमान नहीं करते।

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