हमारे संकल्प ही हमारे डॉक्टर

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हम दिनभर में कार्यव्यवहार में आते सुबह से शाम तक न जाने कितने और कैसे-कैसे संकल्प हम करते रहते हैं। जिन पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं होता। हम एक के बाद एक संकल्प की परत अपने मन पर चढ़ाते रहते हैं। जिस तरह से हर चीज़ की एक लिमिट होती है चाहे वो कंप्यूटर है, बैंक है, चाहे कोई भी मशीन है, हर एक की एक लिमिट होती है। उसी तरह से इस मन रूपी मशीन में भी संकल्प प्रोडक्शन की एक लिमिट है। किस तरह का मटेरियल हमें इसमें डालना है और कितना डालना है वो हमें ध्यान देना है

अगर घर में कोई बीमार होता है तो कौन-सी एनर्जी होनी चाहिए घर में? हीलिंग के लिए कौन-सी एनर्जी चाहिए? ये हमें पता है। जितना हमारे मन की स्थिति शांत होगी, शक्तिशाली होगी, सही सोच रही होगी, उतना घर की एनर्जी हाई हो जाएगी। वो जिनका शरीर बीमार है, उनका सिर्फ शरीर बीमार है, और शरीर पर किसका असर पडऩे वाला है? मन का। डॉक्टर का रोल क्या है, दवा और इलाज। लेकिन हमारा रोल क्या है? उनके मन की स्थिति को पॉवरफुल करना। उनके मन की स्थिति को ठीक करने के लिए हमें पहले अपने मन की स्थिति को पॉवरफुल बनाना पड़ेगा। हमारा मन नॉर्मल से भी ज्य़ादा शक्तिशाली होना चाहिए। लेकिन हमने कह दिया कि वो बीमार है, तो चिंता होना तो नॉर्मल है, डर लगना तो नॉर्मल है, दु:ख होना तो नॉर्मल है।
घर में सबने चिंता, डर, दु:ख क्रियेट किया, फिर जो मिलने आये, उन्होंने भी चिंता ही ज़ाहिर की। इसलिए चिंता जताने वालों को बीमार व्यक्ति से मिलना ही नहीं चाहिए। हाँ, यदि कोई अंदर से पॉवरफुल थॉट क्रियेट करके जा सकता है, तो बस उन्हें ही जाकर मिलना चाहिए। सिर्फ ऊपर-ऊपर वाले शब्द नहीं चाहिए। हम हॉस्पिटल जाते हैं, लोगों से मिलते हैं, हम कहते हैं, कोई बात नहीं सब ठीक हो जाएगा और अंदर से सोचते हैं, क्या अचानक इस उम्र में ये बीमारी हो गई, बिचारे का अब क्या होगा, बच्चों को कौन सम्भालेगा? हम ये किधर की किधर दुआएं देकर चले आते हैं! ये हर विचार असर करते हैं।
इसलिए अपना ध्यान रखना है कि हम ऐसे टाइम पर कौन-सी ऊर्जा को आमंत्रित कर रहे हैं, जब हमें शक्ति की ज़रूरत है। ऐसे समय पर हमारी थॉट सिर्फ पॉजि़टिव होनी चाहिए। चिंता करना उस बीमारी को और बढ़ाता रहेगा और ठीक नहीं होने देगा। अगर ये याद रहे तो हम गलती से भी चिंता नहीं कर सकते, हम गलती से भी एक निगेटिव थॉट क्रियेट नहीं कर सकते। क्योंकि वो सबकुछ क्रियेेट करके, उसपर असर डाल के हम डॉक्टर को कहते कि ये ठीक क्यों नहीं हो रहे! डॉक्टर कहते कि इलाज तो परफेक्ट ही चल रहा है। लेकिन हम दूसरे का उदाहरण देते कि वो तो चार दिन में ही ठीक हो गए थे, लेकिन ये क्यों नहीं ठीक हो रहे! क्योंकि उन्होंने इतनी ज्य़ादा चिंता नहीं क्रियेट की होगी। आप किसी भी डॉक्टर से जाकर पूछियेगा, सेम बीमारी, सेम हॉस्पिटल, सेम डॉक्टर, सेम इलाज, अलग-अलग लोग अलग-अलग टाइम लगाते हैं ठीक होने में। क्योंकि उनको ठीक करने वाला एक फैक्टर है उनका मन और उनके परिवार का मन।
तो अगर कोई बीमार है तो कौन-सा इमोशन नॉर्मल है…। यहाँ तक कि ये शब्द बोलना भी कि… ये बीमार है, ये शब्द कौन-सी एनर्जी क्रियेट करेगा! अब दिन में पाँच थॉट ही क्रियेट कर दो कि ये बीमार है, फिर कोई आकर पूछे कि ये ठीक है, तो कहेंगे कि नहीं अभी भी दर्द है, तो कहेगा अच्छा अभी भी दर्द है, अभी भी ठीक नहीं हुए! ये कौन-सी दुआएं मिल रही हैं? फिर डॉक्टर को कहते कि पता नहीं अचानक कैसे मेरा दर्द बढ़ गया! क्योंकि इतने लोगों ने थॉट दिया था, दर्द है, दर्द है, दर्द है। अब इसका उल्टा क्रियेट करते हैं। जो हम संकल्प क्रियेट करते हैं वो वायब्रेट करते हैं। वो ऊर्जा है, संकल्प सिद्ध होते जाते हैं। अब अगर किसी के शरीर में थोड़ा कुछ है और हमें उन्हें ठीक करना है तो हमें कौन-सी थॉट देनी चाहिए? जो चाहते हैं कि ये हो, वही थॉट क्रियेट करना चाहिए।
जो दिख रहा है वो थॉट नहीं क्रियेट करना चाहिए। जब हम अपनी सोच से अपनी समस्या को बढ़ा सकते हैं तो अपनी सोच से ही उसे कम भी तो कर सकते हैं। लेकिन हम इस पॉवर को यूज़ करें ना फिर!

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