आप के तीन रूप कौन-से हैं? एक है ब्राह्मण रूप, जिससे स्थापना का कार्य करते हो। और दूसरा शक्ति रूप, जिससे विनाश का कर्त्तव्य करते हो और जगत माता व ज्ञान गंगा व अपने को महादानी, वरदानी रूप समझने से पालना करते हो। वरदानी रूप में जगत पिता का रूप आ ही जाता है। तो यह तीनों रूप सदैव स्मृति में रहें तो आपके कर्त्तव्य में भी वही गुण दिखाई देंगे। जैसे बाप को अपने तीनों रूपों की स्मृति रहती है, ऐसे चलते-फिरते अपने तीनों रूप की स्मृति रहे कि हम मास्टर त्रिमूर्ति हैं। तीनों कर्त्तव्य इकट्ठे साथ-साथ चाहिए। ऐसे नहीं स्थापना का कर्त्तव्य करने का समय अलग है, विनाश के कर्त्तव्य का समय और आना है। नहीं। नई रचना रचते जाओ और पुराने का विनाश करते जाओ। आसुरी संस्कार व जो भी कमज़ोरी है, उनका विनाश भी साथ-साथ करते जाना है। नये संस्कार ला रहे हैं पुराने संस्कार खत्म कर रहे हैं। कईयों में रचना रचने का गुण होता है, लेकिन शक्ति रूप विनाश कार्य रूप न होने कारण सफलता नहीं हो पाती। इसलिए दोनों साथ-साथ चाहिए। यह प्रैक्टिस तब हो सकेगी जब एक सेकण्ड में देही-अभिमानी बनने का अभ्यास होगा। ऐसे अभ्यासी सब कार्य में सफल होते हैं। अपने को महादानी व वरदानी, जगत माता व जगत पिता व पतित पावनी के रूप में स्थित होकर किसी भी आत्मा को अगर आप दृष्टि देंगी तो दृष्टि से भी उनको वरदान की प्राप्ति करा सकती हो। वृत्ति से भी प्राप्ति करा सकती हो अर्थात् पालना कर सकती हो। लेकिन इस रूप की सदा स्मृति रहे। ब्राह्मण कथा व ज्ञान सुना कर स्थापना तो बहुत जल्दी कर लेते हो, लेकिन विनाश और पालना का जो कर्त्तव्य है उसमें और अटेन्शन चाहिए। पालना करने के समय कल्याणकारी भावना व वृत्ति रख कर कोई भी आत्मा की पालना करो तो कैसी भी अपकारी आत्मा पर अपनी पालना से उनको उपकारी बना सकते हो। कैसी भी पतित आत्मा, पतित पावन के वृत्ति से पावन हो सकते हैं। अगर उनका पतितपना देखेंगे तो नहीं हो सकेगा। जैसे माँ कब बच्चे की कमज़ोरियों को व कमियों को नहीं देखती है, उनको ठीक करने का ही रहता है। तो यह पालना करने का कर्त्तव्य इस रूप में सदा स्थित रहने से यथार्थ चल सकता है। जैसे माँ में दो विशेष शक्तियां सहन करने की और समाने की होती है। वैसे ही हर आत्मा की पालना करते समय भी यह दोनों शक्तियां यूज़ करें तो सफलता ज़रूर हो। लेकिन अपने को जगत माता व जगत पिता के रूप में स्थित रह करेंगे तो। अगर भाई-बहन का रूप देखेंगे तो उसमें संकल्प आ सकता है। लेकिन माँ बाप के समान समझो। माँ बाप बच्चे का कितना सहन करते हैं, अन्दर समाते हैं तब उनकी पालना कर उसको योग्य बना सकते हैं। तो सदैव हर कर्त्तव्य करते समय अपने यह तीनों रूप भी स्मृति में रखने चाहिए। जैसी स्मृति, वैसा स्वरूप और जैसा स्वरूप वैसी सफलता।