कोई भी हो जब तक इस डर के साथ जियेगा, इस भय के साथ जियेगा तो वो कभी भी स्वस्थ नहीं रह सकेगा। न मानसिक रूप से और न ही शारीरिक रूप से। इसीलिए जो कुछ भी आपके अन्दर है, जिसके लिए भी है, भावना को साइड में रखें, बुद्धि और भावना दोनों का बैलेन्स बनाकर बात को उस व्यक्ति के सामने रखने की कोशिश करें ताकि आप उन बातों से फ्री हो जायें जिनसे आपको डर लगता है।
आज बहुत सारे समझदार भगवान के बच्चे हैं। जिन्होंने अपने पूरे जीवन को भगवान के कार्य में समर्पित किया है। चाहे घर में हैं, चाहे सेवाकेन्द्रों पर समर्पित होकर सेवा कर रहे हैं। या फिर अन्य स्थानों से परमात्मा के कार्यों में संलग्न हैं। जब सभी की बातों को हम सुनते हैं, ध्यान से देखते हैं तो पाते हैं कि इनकी भावना और बुद्धि दोनों के बीच में बहुत बड़ा अन्तर है। सभी भावनाओं के कारण अपनी बात किसी के सामने रख नहीं पाते कि शायद इनको बुरा लग जायेगा। लेकिन पीछे हम ये भी बात करते हैं कि हम इनके लिए इतनी भावना रखते हैं कि मेरी बात समझ नहीं पाते। इनसे बात कहना भी है और चुप रहना भी है। सहन भी करना है और परेशान भी रहना है। तो फिर समझ में नहीं आता कि ये ज्ञान फिर हमको कहाँ से ताकत दे रहा है, या कितनी ताकत दे रहा है! क्योंकि जब मैं किसी के सामने अपनी बात को रख नहीं पा रहा हूँ तो मैं कैसा ज्ञानी हूँ, कैसा योगी हूँ? क्योंकि ज्ञान और योग इस बात पर डिपेन्ड करता है कि किस हद तक आप अपने आपको स्पेस देते हैं, खुलापन देते हैं क्योंकि जो जितना खुलेपन के साथ जियेगा उतना हल्का रहेगा।
ये जो आज का विषय है इसी को लेकर चल रहा है कि हम सबको एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी है कि जब तक आप छोटी-छोटी बातों की, छोटे-छोटे मलाल, छोटे-छोटे दर्द, जो हमको किसी न किसी तरह से डिस्टर्ब कर रहे हैं, उसको चाहे कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो उनके सामने न कह पाना हमारी बहुत बड़ी कमज़ोरी है। इस डर से न कह पाना कि बुरा लग जायेगा, बल्कि मैं किसी और कारण से डर रहा हूँ कि कहीं इनके मन में मेरे लिए कोई ऐसी बात न आ जाये। मतलब कहने का भाव ये है कि जो हमारा दुनिया में एक डर था कि किसी से कुछ प्राप्ति हो रही है या इसको दूसरे भाव में कहें तो जहाँ से कुछ मिल रहा है तो उसका सहना भी पड़ता है। लेकिन क्या हम सहके स्थूल चीज़ों से आजतक खुश हो पाये? हमको तो हमेशा स्थूल के साथ सूक्ष्म चाहिए होता है ना और ये सुख ही आज व्यक्ति को दु:खी कर रहा है। स्थूल रूप से तो सबके पास सब आ रहा है लेकिन जो सूक्ष्म है वो किसी को मिल नहीं पा रहा है जैसे खुलापन, अपनी बात रखने की ताकत आदि-आदि। अरे, हम भगवान के बच्चे हैं सो बात आ भी जायेगी तो क्या हुआ? हमारे मन में ये भी डर होता है कि कहीं वो हमें अपने से दूर न कर दें, वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे कि मैं ऐसा सोचता हूँ या सोचती हूँ, ऐसे बहुत से छोटे-छोटे डर के कारण हम अपनी भावना और अपनी बात को पूरी तरह से कह नहीं पाते। इसको अगर दूसरे शब्दों में कहा जाये तो हम बात को कहना तो चाहते हैं लेकिन बात कहने की ताकत हमारे अन्दर नहीं है।
आप सोचो कि हम अपने आपको कितना कमज़ोर करते जा रहे हैं। इन छोटे-छोटे डर के कारण चाहे कोई घर में रहने वाला हो, चाहे सेन्टर निवासी हो, चाहे बाहर कहीं किसी कम्पनी में काम कर रहा हो, कोई भी हो जब तक इस डर के साथ जियेगा, इस भय के साथ जियेगा तो वो कभी भी स्वस्थ नहीं रह सकेगा। न मानसिक रूप से और न ही शारीरिक रूप से। इसीलिए जो कुछ भी आपके अन्दर है, जिसके लिए भी है, भावना को साइड में रखें, बुद्धि और भावना दोनों का बैलेन्स बनाकर बात को उस व्यक्ति के सामने रखने की कोशिश करें ताकि आप उन बातों से फ्री हो जायें जिनसे आपको डर लगता है। और ये स्व परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा है आज। क्योंकि हम ऊपर-ऊपर से बस सबका सम्मान करते हैं अगर अन्दर से रिस्पेक्ट, सच्चाई- सफाई होती तो हम कभी भी डरते नहीं। और आज इन्हीं सब कारणों की वजह से, इन छोटे-छोटे डर की वजह से बड़े-बड़े रोगों का सामना करना पड़ता है। चाहे मैं भी हूँ, ये हम सबके लिए है। अगर मुझे किसी भी बात में थोड़ा भी ऐसा लग रहा है तो हमें अपनी बात स्पष्ट रूप से उनके सामने रखनी चाहिए। इस भावना से रखनी चाहिए कि ये बात समझेंगे। इस बात को कहकर मैं कम से कम हल्का या हल्की तो हो जाऊंगी ना!
तो इस विषय को थोड़ा गम्भीरता से लेकर हम सभी इस पर सोचें। अपने आपके परिवर्तन में इस कड़ी को ज़रूर जोड़ें। इससे आपका जीवन भी अच्छा हो जायेगा। और आपका शरीर भी स्वस्थ होगा, वातावरण भी बहुत हल्का होगा तो वायब्रेशन भी बहुत अच्छे होंगे। तो इस तरह से भावना से ऊपर उठ कर, बुद्धि का बैलेन्स बनाकर अपने आपको फ्री करें उन सारी बातों से, जिनसे हमें दर्द या कष्ट होता है।