मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीयज्ञ बाबा का, कार्य बाबा का, करन-करावनहार बाबा तो हम चिन्ता क्यों...

यज्ञ बाबा का, कार्य बाबा का, करन-करावनहार बाबा तो हम चिन्ता क्यों करें…!

कई लोग मेरे से यह सवाल पूछते हैं कि दादी आपको कोई फिकर होता है? क्योंकि जानते तो हैं कि आखिर इतने बड़े कार्य-व्यवहार की कई बातें होती हैं। रोज़ की अनेक बातें हर मिनट में आती जाती हैं। कई बार तो एक में दूसरी, दूसरी में तीसरी बात आती तो फिकर तो रहना चाहिए ना! परन्तु बाबा का मुझे यह सचमुच पर्सनल वरदान है कि हमें न कोई भी फिकर होता, न कोई चिन्ता होती, न कोई चिन्तन चलता- इसका कारण है कि हम निमित्त हैं। फिकरात करने वाला करे, मैं क्यों करूँ? मेरी कोई रचना है क्या जो मैं फिकर करूँ! तेरी रचना है तू उनका फिकर करो, मुझे आप कहते हो कि यह कार्य करो तो मैं करती हूँ। तू कराने वाला है, हम निमित्त हैं। अच्छा है तो भी आप बैठे हो, रॉन्ग हुआ तो भी जवाबदार हो। तो फिकरात किसकी? कोई बात है प्लैन करो, राय करो- कैसे करें, क्या करें लेकिन चिन्ता किस चीज़ की! चिन्ता चिता के बराबर है। हम कभी चिन्ता करते नहीं। आप लोगों ने कभी देखा है? फिकर से फारिग कींदा स्वामी सद्गुरु। तो फिकर वह करे, हम क्यों करें!

आप सभी बापदादा के दिलतख्त पर बैठ जाओ तो किसी चीज़ का फिकर नहीं होगा। जो खिलावे वो खाना है, जो पहनावे वो पहनना है, अगर उसे हमें बेगरी पार्ट में रखना होगा तो भी हम उसमें राज़ी, अगर हमें राजकुमारों की तरह पालेंगे तो भी राज़ी हैं। बाकी किस चीज़ की चिन्ता! बाबा कहता है सर्विस करो, हम कहते हैं हाँ जी। आप करावनहार हैं, जो भी कराएं हम सदा तैयार हैं।

हम सबका एक ही मंत्र है- जी हुज़ूर हम हाजि़र हैं। वह हुज़ूर है, जो हुक्म करे। बाकी चिन्ता क्या करूँ! अधिक से अधिक बस यही कहेगा ना सूखा रोटला खाओ तो भी खायेंगे, कहेंगे 36 प्रकार का खाना खाओ तो भी खायेंगे। हमारे लिए दोनों बराबर हैं। ऐसे भी कई योगी होते हैं गुफा में रहते हैं, एक-एक मास पानी पर रहते हैं, कोई टाइम आएगा तो हम भी पानी पर रह लेंगे।

समर्पित वह है जो कदम-कदम श्रीमत के फरमान पर चलता है। यही हमारा धर्म है, मार्यादा है, श्रीमत ही आज्ञा है। तो बाबा की आज्ञा में सदैव चलो। मैं कदम-कदम श्रीमत पर चल रहा हूँ- इसका चार्ट नोट करो। श्रीमत कहती है रोज़ मुरली सुनो, सवेरे उठो, ज्ञान-स्नान करो, मर्यादाओं में चलो, पवित्र रहो, ब्राह्मण कुल की लाज रखो। दूसरों की सर्विस करो, सभी को बाबा का परिचय दो, सेवा करो यह सब श्रीमत है। अब बाबा ने हम सबको यही अन्तिम श्रीमत दी है कि बच्चे तुम्हारे जो पुराने संस्कार हैं, उन्हें खत्म करने के लिए याद की यात्रा में रहो। एकाग्रता का अभ्यास करो, अशरीरी बनो। यह अभ्यास कमी-कमज़ोरियों को खत्म करेगा। हम समर्पित बच्चों के मुख से सदैव रत्न निकालने चाहिए, कभी कुवचन नहीं निकलें। क्रोधमुक्त होकर रहो। दृष्टि, वृत्ति सदा पावन रहे तो हर चलन से, बोल से बापदादा का नाम बाला कर सकेंगे।

समर्पित माना एक बाबा ही मेरा संसार है। बाकी न कोई मेरा, न कोई मेरी…। मेरे दिल में भी तू है, नयनों में भी तू है, सिर पर भी तू है… बांहों में भी तू है… तेरे सिवाए मेरा कोई नहीं। तुम्हीं से सुनूं, तुम्हीं से बोलूं, तुम्हीं से हर संबंध निभाऊं…। ऐसा नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप रहने वाला ही अन्त समय के सेकण्ड के पेपर में पास विद ऑनर बन सकेगा।

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