हर बाबा का बच्चा ड्रामा में अपना यादगार खुद बनाता है। जैसे कर्म करता है, जैसे सम्बन्ध रखता है। कर्म-सम्बन्ध का कनेक्शन है, उसमें जितना दिव्यता, अलौकिकता है वैसा यादगार बनता है। बाबा ने सच्चा और पक्का ब्राह्मण बनाया है। सच्चा ब्राह्मण सच्ची दिल से बाबा को राज़ी करेगा। बाबा जिसमें राज़ी फिर क्या करेगा काज़ी, यानी धर्मराज कुछ नहीं कर सकता। थोड़ा भी मिक्सचर होगा तो हाफ कास्ट ब्राह्मण हो जाएगा। यह टाइटल कौन-सा हो गया! अधूरा ब्राह्मण कैसा होगा! उसको इतनी खाने की परहेज नहीं होगी, सवेरे अमृतवेला ठीक नहीं होगा, क्लास में बहाना देगा। सच्चा ब्राह्मण मजाल है जो बहाना देवे!
पहले जब बाबा दृष्टि देता था तो अन्दर कम्पन्न होता था, समझते थे शरीर छोड़ रहे हैं। अभी यह नहीं कहते हैं, पर शरीर से न्यारे, अशरीरी हो रहे हैं। जैसे बाबा अशरीरी है, सर्व आत्माओं में एक परमात्मा ही अशरीरी है। परमपिता है, धर्म पिताओं का पिता है, वो दृष्टि देता है तो आँख खुल जाती है। आँख खुली तो बुद्धि भी बदल गई। बुद्धि है अन्दर, मन-बुद्धि-संस्कार। आत्मा में मन-बुद्धि-संस्कार हैं। समझते थे कि आत्मा शरीर धारण करती है पर मुझारा था कि आत्मा निर्लेप है, आत्मा ही परमात्मा है। अभी बाबा ने कितनी गहरी बात समझाई है कि आत्मा कर्म शरीर द्वारा करती है। शरीर आत्मा के बगैर कोई कर्म नहीं कर सकता है। उसमें कर्म और सम्बन्ध का कितना हिसाब-किताब है, यह बाबा ने आकर बुद्धि दी। दृष्टि देकर ध्यान खिंचवाया अपनी तरफ, कौन आया परदेशी। तो जिसका ध्यान दिव्य दृष्टिदाता की तरफ चला गया, वो जीते जी मर गया। वो जीता है पर मरे के बराबर। दुनिया वाले भी समझते हैं ये तो जैसे मरे के बराबर है। अन्दर देह से न्यारा, स्वभाव-संस्कार से भी न्यारा हो गया। बाबा की दृष्टि से शान्तिधाम का भी अनुभव हो जाता है। खुद शान्ति का सागर है, आत्मा को इशारा करता है तुम भी वहाँ की रहने वाली हो। मेरी संतान हो, यहाँ तुम मेरे से बिछुड़ी हो, रावण के चम्बे में आ गई हो। मैं उससे छुड़ाने आया हूँ। कितनी जीवन बदल गई है, कहाँ दुनिया, कहाँ हम रात-दिन का अन्तर हो गया।
ज़माना बहुत खराब है, बचो और बचाओ। जो बचता है वो औरों को भी बचा सकता है। सच्चे बनकर रहो। सच्चे बच्चे की बुद्धि पॉवरफुल होगी माना योग अच्छा होगा। वाणी में कम बोलेंगे और कर्म से दिखाई पड़ेगा। कर्म का कनेक्शन बुद्धि के साथ है। बाबा ने हमारी बुद्धि चेन्ज कर दी है। कभी क्षत्रिय की बुद्धि हो तो साक्षी होकर देखो। शुद्र बुद्धि वाला तो बाबा के घर में आएगा ही नहीं। अभी मन को अच्छा खाना मिलता है। पहले मन बिचारा भूखा था, शान्ति चाहिए, शान्ति चाहिए। अभी अच्छा खाना मिला तो शान्ति तो आ गई, फिर चिन्ता काहे की करें! तो अपनी बुद्धि पर बर्डन न रखो, न किसी पर आपका बर्डन हो। हमारे ऊपर केवल अपने को सुधारने की जि़म्मेवारी है। दुनिया भले पीछे माने, पर हमें बाबा की बात पहले माननी है। जिससे मेरी जीवन बदल जाए, बस और कोई इच्छा नहीं है। बदलने शुरू होती है तो निश्चय अपने में और बाबा में बैठ जाता है। निश्चय रखा, संकल्प रखा तो बाबा मदद करता है।
मदद मिलने से शक्ति आ जाती है। खुशी आ गई, सिर हल्का हो गया। तो कभी यह ख्याल न आए कि क्या करूँ, कैसे करूँ, यह क्षत्रिय के ख्याल हैं। यह कर, ऐसे कर वो बन गया ब्राह्मण। फिर करता है तो ऐसे नहीं लगता कि मैं करता हूँ, पर बाबा मदद करता है। पुरानी दुनिया में रहते हो तो अपने को बचाके रखो, जो उसका असर आपके ऊपर न हो जाए, जो दु:ख सहना पड़े। अपने को बिल्कुल डिटैच रखो। अटैचमेंट को समझना, डिटैच रहकर कितना सुखी रहते यह समझना। कुदरत का नियम है यह पांच अंगुली बराबर नहीं हैं। पर आदत ऐसी हो गई है जो नैचुरल को छोड़ अननैचुरल बन गए हैं। काँ-काँ करके सिर खपाने वाली बात करेंगे। अरे अब अच्छा करते हैं ना। मन को धीरज सिखाना, यह हाथ हमको सिखाता है, हाथ में हाथ मिलाकर चलो।
जो प्राचीन भारत की सभ्यता है, इंसान जाति है, परमात्मा के बच्चे हैं, सभ्यता और नम्रता ने यहाँ तक पहुंचाया है। नम्रता जब तक व्यवहार में नहीं आई है, ब्राह्मण से फरिश्ता कैसे बनेंगे! बाबा की शक्ल हमको हमारा फ्यूचर दिखाती है। खुली आँख से बाबा को देखो तो बाबा हमारा फ्यूचर है। तुम अपने को देख चेंज करो।



