हम सभी बाबा के लवलीन बच्चे, सदा बाबा के लव में, प्यार में खोये हुए हैं। यह परमात्म प्यार कोटों में कोई को प्राप्त होता है क्योंकि हम डायरेक्ट बाबा की पहली रचना हैं। हमें सदा बाबा याद रहता है, बाबा के बिना तो संसार ही नहीं है। फिर है सूक्ष्म वतन और मूलवतन। उसका भी हम सबने अनुभव किया है, सिर्फ सुना व समझा नहीं है, अनुभवी मूर्त बन गये हैं। बाबा के लव में लीन होने से कितनी मीठी, प्यारी लाइफ का अनुभव होता है। बाबा हम बच्चों को कहते हैं तुम मेरे बच्चे बेफिक्र बादशाह हो क्योंकि हमारी जि़म्मेवारी लेने वाला भगवान है। अगर हमने मन से अपने जीवन की जि़म्मेवारी बाबा को दे दी, तो भगवान से बड़ा और कोई है क्या! लेकिन यह ज़रूर देखना है कि सचमुच हमने अपने जीवन की जि़म्मेवारी बाबा को दी है! या कभी बाबा को दी है, कभी थोड़ी जो भी सांसारिक बातें होती हैं, उनमें भी बुद्धि जाती है। हमारे सामने माया ही पेपर लेने वाली है। जब बाबा को जि़म्मेवारी दे दी, तो उसके आगे माया कुछ नहीं कर सकती। तो बाबा को जि़म्मेवारी दी है या कभी-कभी मैंपन आ जाता है? मैं और मेरापन, यह दो बातें ही इस ईश्वरीय जीवन में, सम्पन्न बनने में विघ्न रूप बनती हैं। हद का मैंपन या मेरापन, यह बाबा से दूर कर देता है। जब आप कहते हो बाबा मेरे से कम्बाइंड है, तो कम्बाइंड अलग हो ही नहीं सकता। जिसके साथ सर्वशक्तिवान कम्बाइंड हो उसके आगे माया की हिम्मत ही कैसे होगी!
शुरू में बाबा कहता था बच्ची, इतना मास्टर सर्वशक्तिवान बनो जो माया दूर से ही भाग जाये। दूर से माया को भगाने के लिए कम्बाइंड की स्मृति में रहें। कई कहते हैं हम कम्बाइंड तो हैं परन्तु समय पर उससे सहयोग नहीं लेते हैं। कोई को भी जब वार करना होता तो पहले वह अकेला करता है फिर वार करता है। हम कम्बाइंड से अलग होंवे ही क्यों! अगर कम्बाइंड रूप में सदा रहें तो माया कुछ नहीं कर सकती। हम युद्ध करें फिर मायाजीत बनें, उसमें भी हम टाइम क्यों खराब करें। अगर किसी को बार-बार बीमारी आती है, तो भले हम दवाई से बीमारी खत्म करें लेकिन बार-बार बीमारी आने से कमज़ोरी तो आ ही जाती है।
बाबा की आशायें पूर्ण करने वाले कौन! हम बच्चे ही हैं। हम बाबा की आशाओं के दीपक हैं। बाबा की आश हम बच्चों के प्रति क्या है! बाबा कहते हैं मेरे समान बनो। ऐसे नहीं, मेरे समान थोड़ा-थोड़ा तो बनो। नहीं, मेरे समान पूरा बनो। आजकल तो बाबा ने विशेष कहा है कि मैं एक-एक बच्चे को राजा बच्चा बनाता हूँ। स्वराज्य अधिकारी बनाता हूँ। तो हम अपने आप से पूछें हम राजा बच्चे हैं? क्योंकि राजा माना, जिसमें कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर हो। पहले हम पूछें कि हमारा मन के ऊपर कन्ट्रोल है? क्योंकि मन जीते जगतजीत कहा जाता है, जो भी फीलिंग आती है, तो पहले मन में फील होता है। तो मन के राजा बने हैं? सदा ही मन के राजा बनकर रहें, लिंक जुटा रहे इसके लिए बाबा ने बहुत अच्छी ड्रिल सुनाई है।
बाबा की मुरली में ”सदा” शब्द यूज़ होता है, कभी-कभी शब्द तो ब्राह्मण जीवन की डिक्सनरी में है ही नहीं। हम भी अपने से पूछें, हम जो भी कर्म करते हैं, जो बाबा कहते हैं सदा लिंक जुटी रहे, ऐसे नहीं टूटे फिर हम जोड़ें, दुबारा जोडऩे से फर्क तो पड़ता है ना! तो मन हमारा ऑर्डर में चलता है? बाबा मन, बुद्धि, संस्कार की कचहरी लगाता था क्योंकि कई बार सूक्ष्म संकल्प इतना चेक करने में तो सूक्ष्म चेकिंग चाहिए कि सारा दिन मन का मालिक बनके मन को चलाया? हम सबका लक्ष्य है कि सम्पूर्ण, बाप समान बनना ही है। तो यह चेकिंग ज़रूरी है कि मन, बुद्धि, संस्कार सब कन्ट्रोल में हों। हाथ-पांव तो स्थूल कर्म कर्ता निमित्त हैं। लेकिन कभी संस्कार टक्कर में आ जाते हैं, बुद्धि भी कभी हाँ के बजाय ना की तरफ चली जाती है। यह चेकिंग जितनी अपनी कर सकते हैं, दूसरा नहीं कर सकता है।